सम्पूर्ण विष्णु पुराण के सभी अध्याय

 

विष्णु पुराण सम्पूर्ण कथा – (Vishnu Puran Katha in Hindi) सभी अध्याय एक ही जगह 


विष्णु पुराण क्या है , विष्णु पुराण में क्या है , विष्णु पुराण सुनने से क्या फल मिलता है ? , विष्णु पुराण करवाने का मुहुर्त , विष्णु पुराण का आयोजन कहाँ करें ? , विष्णु पुराण करने के नियम ,,,,, पड़े ऐसे ही सभी सवालों के जवाब  .....

विष्णु पुराण (Vishnu Puran)   -- 18 puran में विष्णु पुराण (Vishnu Puran Hindi) का आकार सबसे छोटा है, विष्णु पुराण (Vishnu Puran Ki Katha) में भगवान विष्णु के चरित्र का विस्तृत वर्णन है। विष्णु पुराण (Vishnu Puran Katha) के रचियता ब्यास जी के पिता पराशर जी हैं। विष्णु पुराण (Vishnu Puran in Hindi) में वर्णन आता है कि जब पाराशर के पिता शक्ति को राक्षसों ने मार डाला तब क्रोध में आकर पाराशर मुनि ने राक्षसों के विनाश के लिये ‘‘रक्षोघ्न यज्ञ’’ प्रारम्भ किया। उसमें हजारों राक्षस गिर-गिर कर स्वाहा होने लगे। इस पर राक्षसों के पिता पुलस्त्य ऋषि और पाराशर के पितामह वशिष्ठ जी ने पाराशर को समझाया और वह यज्ञ बन्द किया। इससे पुलस्त्य ऋषि बड़े प्रसन्न हुये औरा पाराशर जी को विष्णु पुराण के रचियता होने का आर्शीवाद दिया।

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इस पुराण में भूमण्डल का स्वरूप, ज्योतिष, राजवंशों का इतिहास, कृष्ण चरित्र आदि विषयों को बड़े तार्किक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। खण्डन-मण्डन की प्रवृत्ति से यह पुराण मुक्त है। हिन्दू आध्यात्मिकता का सरल और सुबोध शैली में वर्णन किया गया है।

विष्णु पुराण में सात हज़ार श्लोक (Seven thousand verses in Vishnu Purana) ;-
इस पुराण (vishnu puran) में इस समय सात हज़ार श्लोक उपलब्ध हैं। वैसे कई ग्रन्थों में इसकी श्लोक संख्या तेईस हज़ार बताई जाती है।

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इस पुराण (vishnu puran) के रचनाकार पराशर ऋषि थे। ये महर्षि वसिष्ठ के पौत्र थे। इस पुराण में पृथु, ध्रुव और प्रह्लाद के प्रसंग अत्यन्त रोचक हैं। ‘पृथु’ के वर्णन में धरती को समतल करके कृषि कर्म करने की प्रेरणा दी गई है। कृषि-व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त करने पर ज़ोर दिया गया है। घर-परिवार, ग्राम, नगर, दुर्ग आदि की नींव डालकर परिवारों को सुरक्षा प्रदान करने की बात कही गई है। इसी कारण धरती को ‘पृथ्वी’ नाम दिया गया । ‘ध्रुव’ के आख्यान में सांसारिक सुख, ऐश्वर्य, धन-सम्पत्ति आदि को क्षण भंगुर अर्थात् नाशवान समझकर आत्मिक उत्कर्ष की प्रेरणा दी गई है। प्रह्लाद के प्रकरण में परोपकार तथा संकट के समय भी सिद्धांतों और आदर्शों को न त्यागने की बात कही गई है।

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यह पुराण छह भागों में विभक्त है (This Purana is divided into six part's)


पहले भाग ;- में सर्ग अथवा सृष्टि की उत्पत्ति, काल का स्वरूप और ध्रुव, पृथु तथा प्रह्लाद की कथाएं दी गई हैं।
दूसरे भाग ;- में लोकों के स्वरूप, पृथ्वी के नौ खण्डों, ग्रह-नक्षत्र , ज्योतिष आदि का वर्णन है।
तीसरे भाग ;- में मन्वन्तर,  वेद (ved) की शाखाओं का विस्तार, गृहस्थ धर्म और श्राद्ध-विधि आदि का उल्लेख है।
चौथे भाग ;- में सूर्य वंश और चन्द्र वंश के राजागण तथा उनकी वंशावलियों का वर्णन है।
पांचवें भाग ;- में  भगवान कृष्ण (lord krishna) चरित्र और उनकी लीलाओं का वर्णन है
छठे भाग ;- में प्रलय तथा मोक्ष का उल्लेख है।

(प्रथम भाग)

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (प्रथम अंश) :- पहला व दूसरा अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (प्रथम अंश) :- तीसरा व चौथा अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (प्रथम अंश) :- पांचवा व छठा अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (प्रथम अंश) :- सातवाँ व आठवाँ अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (प्रथम अंश) :- नवाँ व दसवाँ अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (प्रथम अंश) :- ग्यारवाँ व बारवाँ अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (प्रथम अंश) :- तेरहवाँ व चौदहवाँ अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (प्रथम अंश) :- पन्द्रहवाँ व सौलहवाँ अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (प्रथम अंश) :- सतरहवाँ व अठारहवाँ अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (प्रथम अंश) :- उन्नीसवाँ व बीसवाँ अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (प्रथम अंश) :- इक्कीसवाँ व बाईसवाँ अध्याय

(द्वितीय भाग)

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (द्वितीय अंश) :- पहला व दूसरा अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (द्वितीय अंश) :- तीसरा व चौथा अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (द्वितीय अंश) :- पाँचवाँ व छठवाँ अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (द्वितीय अंश) :- सातवाँ व आठवाँ अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (द्वितीय अंश) :- नवाँ व दसवाँ अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (द्वितीय अंश) :- ग्यारहवाँ , बारहवाँ व तेरहवाँ अध्याय

(तृतीय भाग)

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (तृतीय अंश) :- पहला व दूसरा अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (तृतीय अंश) :- तीसरा व चौथा अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (तृतीय अंश) :- पाँचवाँ व छठा अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (तृतीय अंश) :- सातवाँ व आठवाँ अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (तृतीय अंश) :- नवाँ व दसवाँ अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (तृतीय अंश) :- ग्यारहवाँ व बारहवाँ अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (तृतीय अंश) :- तेरह से सत्रहवाँ अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (तृतीय अंश) :- अठराहवाँ अध्याय

(चतुर्थ भाग)

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (चतुर्थ अंश) :- पहला व दूसरा अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (चतुर्थ अंश) :- तीसरा व चौथा अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (चतुर्थ अंश) :- पाँचवाँ व छठा अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (चतुर्थ अंश) :- सातवाँ व आठवाँ अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (चतुर्थ अंश) :- नवाँ व दशवाँ अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (चतुर्थ अंश) :- ग्यारहवाँ, बारहवाँ  व तेरहवाँ अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (चतुर्थ अंश) :- चौदहवाँ  व पंद्रहवाँ  अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (चतुर्थ अंश) :- सोलहवाँ  से तेइसवाँ अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (चतुर्थ अंश) :- चौबीसवाँ अध्याय

(पञ्चम भाग)

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (पञ्चम अंश) :- पहले से पाँचवाँ अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (पञ्चम अंश) :- छठा, सातवाँ व आठवाँ अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (पञ्चम अंश) :- नवाँ, दसवाँ व ग्यारहवाँ अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (पञ्चम अंश) :- बारहवाँ, तेरहवाँ व चौदहवाँ अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (पञ्चम अंश) :- पन्द्रहवाँ, सोलहवाँ व सत्रहवाँ अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (पञ्चम अंश) :- अठारहवाँ, उन्नीसवाँ व बीसवाँ अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (पञ्चम अंश) :- इक्कीसवाँ, बाईसवाँ, तेईसवाँ व चौबीसवाँ अध्याय




सम्पूर्ण विष्णु पुराण (पञ्चम अंश) :- अड़तीसवाँ अध्याय

(षष्ठ भाग)

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (षष्ठ अंश) :- पहला, दुुसरा व तिसरा अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (षष्ठ अंश) :- चौथा, पाँचवाँ व छठा अध्याय

सम्पूर्ण विष्णु पुराण (षष्ठ अंश) :- सातवाँ व आठवाँ अध्याय





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