संक्षिप्त लिंगपुराण व पड़ने के लाभ



लिंग पुराण

   लिंग पुराण शैव प्रधान पुराण है। यह पुराण दो भागों में विभक्त है। 163 अध्यायों में 11 हजार श्लोकों से संयुक्त इस पुराण में शिव की महिमा का विस्तार से वर्णन है। लिंग शब्द का अर्थ भगवान शिव की जननेन्द्रियों से नहीं अपितु उनकी पहचान चिह्न से है। जो अज्ञात तत्व का परिचय देता है। प्रधान प्रकृति ही लिंग का स्वरूप है।

प्रधानं प्रकृतिश्चेते पदार्हुलिंगयुत्ममं

गन्धवरण रसेहिनं शब्दस्पर्शादिवर्जितं       

      जिसका कोई प्राकृतिक गुण न हो, परिमाण न हो व परिमापन न हो सके वह परमात्मा लिंग (प्रकृति) का मूल है जो अव्यक्त निराकार है एवं अद्वितीय है, वही लिंग है।

        प्रलय के समय जब भगवान विष्णु सो रहे थे तब उनकी नाभि से कमल के फूल में ब्रह्माजी की उत्त्पत्ति हुई तब वे विष्णु जी से बोले, तुम कौन हो जो निश्चिंत होकर सो रहे हो, ब्रह्मा माया से मोहित थे। जब भगवान विष्णु नही उठे तो ब्रह्माजी ने हाथ से धक्का देकर उन्हें जगाया। भगवान हँसते हुये बोले, ‘‘वत्स बैठो’’। वत्स कहते ही ब्रह्माजी को क्रोध आया, कहने लगे तुम जानते नहीं मैं कौन हूँ। मैं सृष्टिकर्ता ब्रह्मा हूँ।

        भगवान विष्णु बोले, ‘‘ब्रह्माजी जगत का कत्र्ता-हत्र्ता मैं हूँ, तुम तो मेरे अंश से उत्पन्न हुये हो, इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है। यह सब माया का खेल है। ब्रह्माजी को यह बात अच्छी नहीं लगी और दोनों में विवाद होने लगा तो दयालु भगवान परब्रह्म शिव ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हुये। इस लिंग का न तो आदि का पता लगता न ही अन्त का। ब्रह्मा एवं विष्णु ज्योर्तिलिंग के बारे में पता करने हेतु चारों दिशाओं में गये लेकिन वे उसका छोर न पा सके। अन्त में वे दोनों थक कर अपने स्थान पर लौट आये एवं ज्योर्तिलिंग को साष्टांग प्रणाम किया। उन्हें ओंकार की ध्वनि सुनायी पड़ी और साथ ही भगवान शंकर ने उन्हें दर्शन दिये। भगवान विष्णु और ब्रह्माजी ने मिलकर ज्योर्तिलिंग की स्तुति की। स्तुति करने पर भगवान शंकर ने कहा कि ‘‘मैं ही लिंग-स्वरूप हूँ, तुम दोनों मेरे ही अंश से उत्पन्न हुये हो एवं चारों ओर मेरी ही माया व्याप्त है।’’ भगवान शंकर ने ब्रह्माजी से कहा कि तुम सृष्टि की रचना करो साथ ही विष्णु को सृष्टि के पालन का आदेश दिया और अन्त में मैं स्वयं सृष्टि का संहार करूंगा।


लिंग पुराण पढ़ने का फल :-

   लिंग पुराण में साक्षात शिव का वास है। इस पवित्र पुराण के श्रवण करने से जीव का कल्याण हो जाता है। जैसे कुल्हाड़ी लकड़ी को काटती है, ठीक उसी प्रकार लिंग पुराण सुनने से मनुष्य के समस्त पाप अपने आप ध्वस्त हो जाते हैं एवं जीव शिवमय हो जाता है। जो लिंग पुराण सुनते हुये शिव अवतारों की कथा, लिंगोद्भव की कथा, रूद्रावतार की कथा, नन्दीश्वर आदि अवतारों को श्रद्धा से सुनता है, उसे मृत्यु के समय कष्ट नहीं भोगना पड़ता एवं शरीर का परित्याग करने के पश्चात् शिव लोक की प्राप्ति होती है।

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