सम्पूर्ण महाभारत (अनुशासन पर्व) के इक्यासीवें अध्याय से चौरासीवें अध्याय तक (From the 81 chapter to the 84 chapter of the entire Mahabharata (anushashn Parva))
सम्पूर्ण महाभारत अनुशासनपर्व (दान धर्मपर्व ) इक्यासीवाँ अध्याय (सम्पूर्ण महाभारत (अनुशासनपर्व) इक्यासीवें अध्याय के श्लोक 1-47 का हिन्दी अनुवाद) “गौओंका माह…
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सम्पूर्ण महाभारत (अनुशासन पर्व) के छिहत्तरवें अध्याय से अस्सीवें अध्याय तक (From the 76 chapter to the 80 chapter of the entire Mahabharata (anushashn Parva))
सम्पूर्ण महाभारत अनुशासनपर्व (दान धर्मपर्व ) छिहत्तरवाँ अध्याय (सम्पूर्ण महाभारत (अनुशासनपर्व) छिहत्तरवें अध्याय के श्लोक 1-31 का हिन्दी अनुवाद) “गोदानकी वि…
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सम्पूर्ण महाभारत (अनुशासन पर्व) के इकहत्तरवें अध्याय से पचहत्तरवें अध्याय तक (From the 71 chapter to the 75 chapter of the entire Mahabharata (anushashn Parva))
सम्पूर्ण महाभारत अनुशासनपर्व (दान धर्मपर्व ) इकहत्तरवाँ अध्याय (सम्पूर्ण महाभारत (अनुशासनपर्व) इकहत्तरवें अध्याय के श्लोक 1-57 का हिन्दी अनुवाद) “पिताके शाप…
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सम्पूर्ण महाभारत (अनुशासन पर्व) के छाछठवें अध्याय से सत्तरवें अध्याय तक (From the 66 chapter to the 70 chapter of the entire Mahabharata (anushashn Parva))
सम्पूर्ण महाभारत अनुशासनपर्व (दान धर्मपर्व ) छाछठवाँ अध्याय (सम्पूर्ण महाभारत (अनुशासनपर्व) छाछठवें अध्याय के श्लोक 1-65½ का हिन्दी अनुवाद) “जूता, शकट, तिल,…
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- प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदय राखि कोसलपुर राजा। गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।। अर्थात ;- अयोध्याजी के राजा श्री रामचंद्रजी को मन में रख कर जो सब काम करता है उसके लिये विष भी अमृत बन जाता है, शत्रु मित्र बन जाते हैं, समुद्र गाय के खुर जितना छोटा हो जाता है, अग्नि में शीतलता आ जाती है। professional website click on this link. click here website demo
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