सम्पूर्ण महाभारत (अनुशासन पर्व) के पन्द्रहवाँ अध्याय (From the 15 chapter of the entire Mahabharata (anushashn Parva))

सम्पूर्ण महाभारत

अनुशासनपर्व (दानधर्मपर्व)

पन्द्रहवाँ अध्याय

(सम्पूर्ण महाभारत (अनुशासनपर्व)  पन्द्रहवें अध्याय के श्लोक 1-11 का हिन्दी अनुवाद)

“शिव और पार्वतीका श्रीकृष्णको वरदान और उपमन्युके द्वारा महादेवजीकी महिमा”

श्रीकृष्ण कहते हैं--भारत! तदनन्तर मनको वशमें करके तेजोराशिमें स्थित महादेवजीको मस्तक झुकाकर प्रणाम करनेके अनन्तर बड़े हर्षमें भरकर मैंने उन भगवान्‌ शिवसे कहा-- ।। १ ।।

“धर्ममें दृढ़तापूर्वक स्थिति, युद्धमें शत्रुओंका संहार करनेकी क्षमता, श्रेष्ठ यश, उत्तम बल, योगबल, सबका प्रिय होना, आपका सांनिध्य तथा दस हजार पुत्र--ये ही आठ वर मैं माँग रहा हूँ! || २ ।।

मेरे इस प्रकार कहनेपर भगवान्‌ शंकरने कहा, “एवमस्तु--ऐसा ही हो।/ तब सबका धारण-पोषण करनेवाली सर्वपावनी तपोनिधि रुद्रपत्नी जगदम्बा उमादेवी एकाग्रचित्त होकर बोलीं--“निष्पाप श्यामसुन्दर! भगवानने तुम्हें साम्ब नामक पुत्र दिया है ।। ३-४ ।।

“अब मुझसे भी अभीष्ट आठ वर माँग लो। मैं तुम्हें वे वर प्रदान करती हूँ।' पाण्डुनन्दन! तब मैंने जगदम्बाके चरणोंमें सिरसे प्रणाम करके उनसे कहा-- ।। ५ ।।

“ब्राह्मणोंपर कभी मेरे मनमें क्रोध न हो। मेरे पिता मुझपर प्रसन्न रहें। मुझे सैकड़ों पुत्र प्राप्त हों। उत्तम भोग सदा उपलब्ध रहें। हमारे कुलमें प्रसन्नता बनी रहे। मेरी माता भी प्रसन्न रहें। मुझे शान्ति मिले और प्रत्येक कार्यमें कुशलता प्राप्त हो--ये आठ वर और माँगता हूँ” ।। ६ ।।

भगवती उमाने कहा--अमरोंके समान प्रभावशाली श्रीकृष्ण! ऐसा ही होगा। मैं कभी झूठ नहीं बोलती हूँ। तुम्हें सोलह हजार रानियाँ होंगी। उनका तुम्हारे प्रति प्रेम रहेगा। तुम्हें अक्षय धनधान्यकी प्राप्ति होगी। बन्धु-बान्धवोंकी ओरसे तुम्हें प्रसन्नता प्राप्त होगी। मैं तुम्हारे इस शरीरके सदा कमनीय बने रहनेका वर देती हूँ और तुम्हारे घरमें प्रतिदिन सात हजार अतिथि भोजन करेंगे || ७-८ ।।

भगवान्‌ श्रीकृष्ण कहते हैं--भरतनन्दन! भीमसेनके बड़े भैया! इस प्रकार महादेवजी तथा देवी पार्वती मुझे वरदान देकर अपने गणोंके साथ उसी क्षण अन्तर्धान हो गये ।। ९ ।।

नृपश्रेष्ठ! यह अत्यन्त अद्भुत वृत्तान्त मैंने पहले महातेजस्वी ब्राह्मण उपमन्युको पूर्णरूपसे बताया था। उत्तम व्रतका पालन करनेवाले नरेश! उपमन्युने देवाधिदेव महादेवजीको नमस्कार करके इस प्रकार कहा ।। १० ।।

उपमन्यु बोले--महादेवजीके समान कोई देवता नहीं है। महादेवजीके समान कोई गति नहीं है। दानमें शिवजीकी समानता करनेवाला कोई नहीं है तथा युद्धमें भी भगवान्‌ शंकरके समान दूसरा कोई वीर नहीं है ।।

(इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्वके अन्तर्गत दानधर्मपर्वमें मेघवाहन (इन्द्ररूपधारी महादेव)-की महिगाके प्रतिपादक पर्वकी कथामें पंद्रहवाँ अध्याय पूरा हुआ)

टिका टिप्पणी - 

  • यहाँ श्रीकृष्णके माँगे हुए आठ वरोंको एवं 'भविष्यति' इस वाक्यके द्वारा देनेके पश्चात्‌ पार्वतीजी अपनी ओरसे आठ वर और देती हैं। इनमें 'अमरप्रभाव” इस सम्बोधनके द्वारा देवोपम प्रभावका दान ही पहला वरदान सूचित किया गया है। “मैं कभी झूठ नहीं बोलती” इस कथनके द्वारा “तुम भी कभी झूठ नहीं बोलोगे” यह दूसरा वर सूचित होता है। सोलह हजार रानियोंके प्राप्त होनेका वर तीसरा है। उनका प्रिय होना चौथा वर है। अक्षय धनधान्यकी प्राप्ति पाँचवाँ वर है। बान्धवोंकी प्रीति छठा, शरीरकी कमनीयता सातवाँ और सात हजार अतिथियोंका भोजन आठवाँ वर है। इससे पहले जो सोलह और आठ वरके प्राप्त होनेकी बात कही गयी थी, उसकी संगति लग जाती है।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें