सम्पूर्ण महाभारत (कर्ण पर्व) के प्रथम अध्याय से पाचवें अध्याय तक (From the first chapter to the fifth chapter of the entire Mahabharata (Karn Parva))



सम्पूर्ण महाभारत  

कर्ण पर्व

प्रथम अध्याय

(सम्पूर्ण महाभारत (कर्ण पर्व) प्रथम अध्याय के श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद)

“कर्णवध का संक्षिप्‍त वृतान्‍त सुनकर जनमेजय का वैशम्‍पायन जी से उसे विस्‍तारपूर्वक कहने का अनुरोध”

‘अन्‍तर्यामी नारायणस्‍वरूप भगवान श्रीकृष्ण, (उनके नित्‍य सखा) नरस्‍वरूप नरश्रेष्ठ अर्जुन, (उनकी लीला प्रकट करने वाली) भगवती सरस्‍वती और (उन लीलाओं का संकलन करने वाले) महर्षि वेदव्यास को नमस्‍कार करके जय (महाभारत) का पाठ करना चाहिये।

     वैशम्पायन जी कहते हैं ;– राजन! द्रोणाचार्य के मारे जाने पर दुर्योधन आदि राजाओं का मन अत्‍यन्‍त उद्विग्न हो गया था। वे सब-के-सब द्रोणपुत्र अश्वत्थामा के पास आये। मोहवश उनका बल और उत्‍साह नष्‍ट सा हो गया था। वे द्रोणाचार्य लिये बारंबार चिन्‍ता करते हुए शोक से व्‍याकुल हो कृपीकुमार अश्वत्थामा के पास उसके चारों ओर बैठ गये। वे शास्त्रानुकूल युक्तियों द्वारा दो घड़ी तक अश्वत्थामा को सान्‍त्‍वना देते रहे। फिर रात हो जाने पर समस्‍त भूपाल अपने अपने शिविर में चले गये।

     कुरूनन्‍दन! शिविरों में भी वे भूपगण सुख न पा सके। संग्राम में जो घोर विनाश हुआ था, उसका चिन्‍तन करते हुए दुःख और शोक में डूब गये। विशेषतः सूतपुत्र कर्ण, राजा दुर्योधन, दुःशासन तथा महाबली सुबलपुत्र शकुनि– ये चारों उस रात को दुर्योधन के ही शिविर में रहे और महात्‍मा पाण्‍डवों को जो बड़े-बड़े क्‍लेश दिये गये थे, उनका चिन्‍तन करते रहे। धूत-क्रीड़ा के समय जो द्रुपदकुमारी कृष्‍णा को सभा में लाया गया और उसे सर्वथा क्‍लेश पहुँचाया गया, उसका बारंबार स्‍मरण करके वे शोकमग्‍न हो जाते और मन ही मन उद्विग्न हो उठते थे। राजन! इस प्रकार पाण्‍डवों को जूए के द्वारा प्राप्‍त कराये गये उन क्‍लेशों का चिन्‍तन करते करते उनकी वह रात सौ वर्षों के समान ब‌ड़े कष्‍ट से व्‍यतीत हुई।

     तदनन्‍तर निर्मल प्रभात काल आने पर दैव के अधीन हुए समस्‍त कौरवों ने शास्‍त्रोक्‍त विधि के अनुसार शौच, स्‍नान, संध्‍या-वन्‍दन आदि आवश्‍यक कार्य पूर्ण किया। भरतनन्‍दन! प्रतिदिन के आवश्‍यक कार्य सम्‍पन्‍न करके आश्‍वस्‍त हो उन्‍होंने सैनिकों को कवच आदि धारण करके तैयार हो जाने की आज्ञा दी तथा कौतुक एवं मांगलिक कृत्‍य पूर्ण करके कर्ण को सेनापति बनाकर वे सब-के-सब दही, पात्र, घृत, अक्षत, गौ, अश्‍व, कण्‍ठभूषण तथा बहुमूल्‍य वस्त्रों द्वारा श्रेष्ठ ब्राह्मणों का आदर सत्‍कार करके सूत, मागध और बन्‍दीजनों द्वारा विजयसूचक आशीर्वादों से अभिवन्दित हो युद्ध के‍ लिये निकले। राजन! इसी प्रकार पाण्‍डव भी पूर्वाह्न में किये जाने वाले नित्‍यकर्मों का अनुष्‍ठान करके तुरंत ही शिविर से बाहर निकले। तदनन्‍तर एक दूसरे को जीतने की इच्‍छा वाले कौरवों और पाण्‍डवों में भयंकर रोमान्‍चकारी युद्ध आरम्‍भ हो गया। राजन! कर्ण के सेनापति हो जाने पर उन कौरव-पाण्‍डव सेनाओं में दो दिनों तक अद्भुत युद्ध हुआ। उस युद्ध में शत्रुओं का महान संहार करके कर्ण धृतराष्‍ट्रपुत्रों के देखते देखते अर्जुन के हाथ से मारा गया। तदनन्‍तर संजय ने तुरंत हस्तिनापुर में जाकर कुरुक्षेत्र में जो घटना घटित हुई थी, वह सब धृतराष्ट्र से कह सुनायी। 

    जनमेजय बोले ;- ब्राह्मन! गंगानन्‍दन भीष्‍म तथा महारथी द्रोण को मारा गया सुनकर ही बूढ़े राजा अम्बिकानन्‍दन धृतराष्‍ट को बड़ी भारी वेदना हुई थी।

(सम्पूर्ण महाभारत (कर्ण पर्व) प्रथम अध्याय के श्लोक 19-24 का हिन्दी अनुवाद)

      द्विजश्रेष्ठ! फिर दुर्योधन के हितैषी कर्ण के मारे जाने का समाचार सुनकर अत्‍यन्‍त दुखी हो उन्‍होंने अपने प्राण कैसे धारण किये? कुरुवंशी राजा ने जिसके ऊपर अपने पुत्रों की विजय की आशा बाँध रखी थी, उसके मारे जाने पर उन्‍होंने कैसे धारण किये? मैं समझता हूँ कि बड़े भारी संकट में पड़ जाने पर भी मनुष्‍यों के लिये अपने प्राणों का परित्‍याग करना अत्‍यन्‍त कठिन है, तभी तो कर्णवध का वृतान्‍त सुनकर भी राजा धृतराष्‍ट्र ने इस जीवन का त्‍याग नहीं किया।

      ब्राह्मन्! उन्‍होंने वृद्ध शान्‍तनुनन्‍दन भीष्म, बाह्लीक, द्रोण, सोमदत्त तथा भूरिश्रवा को और अन्‍यान्‍य सुहृदयों, पुत्रों एवं पौत्रों को भी शत्रुओं द्वारा मारा गया सुनकर भी जो अपने प्राण नहीं छोड़े, उससे मुझे यही मालूम होता है कि मनुष्‍य के लिये स्‍वेच्‍छापूर्वक मरना बहुत कठिन है। महामुने! यह सारा वृतान्‍त आप मुझसे विस्‍तारपूर्वक कहें। मैं अपने पूर्वजों का महान चरित्र सुनकर तृप्‍त नहीं हो रहा हूँ।

(इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में जन मेजय वाक्‍य नामक पहला अध्‍याय पूरा हुआ)

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कर्ण पर्व

द्वितीय अध्याय

(सम्पूर्ण महाभारत (कर्ण पर्व) द्वितीय अध्याय के श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद)

“धृतराष्‍ट और संजय का संवाद”

      वैशम्‍पायन जी ने कहा ;- महाराज! कर्ण के मारे जाने पर गवल्‍गणपुत्र संजय अत्‍यन्‍त दुखी हो वायु के समान वेगशाली घोड़ों द्वारा उसी रात में हस्तिनापुर जा पहुँचे। उस समय उनका चित अत्‍यन्‍त उद्विग्न हो रहा था। हस्तिनापुर में पहुँचकर वे धृतराष्ट्र के उस महल में गये, जहाँ रहने वाले बन्‍धु-बान्‍धव प्रायः नष्‍ट हो चुके थे। मोहवश जिनके बल और उत्‍साह नष्‍ट हो गये थे, उन राजा धृतराष्ट्र का दर्शन करके संजय ने उनके चरणों में मस्‍तक झुकाकर हाथ जोड़ प्रणाम किया। राजा धृतराष्ट्र का यथायोग्‍य सम्‍मान करके संजय ने ‘हाय! बड़े कष्‍ट की बात है’ ऐसा कहकर फिर इस प्रकार वार्तालाप आरम्‍भ किया,

     संजय बोले ;- ‘पृथ्‍वीनाथ! मैं संजय हूँ। आप सुख से तो हैं न? अपने ही अपराधों से विपति में पढ़कर आज आप मोहित तो नहीं हो रहे हैं? विदुर, द्रोणाचार्य, भीष्‍म और श्रीकृष्‍ण के कहे हुए हितकारक वचन आने स्‍वीकार नहीं किये थे। अब उन वचनों को बारंबार याद करके क्‍या आपको व्‍यथा नहीं होती?

      सभा में परशुराम, नारद और महर्षि कण्व आदि की कही हुई बातें आपने नहीं मानी थीं। अब उन्‍हें स्‍मरण करके क्‍या आपके मन में कष्‍ट नहीं हो रहा है? आपके हित में लगे हुए भीष्‍म, द्रोण आदि जो सुहृद युद्ध में शत्रुओं के हाथ से मारे गये हैं, उन्‍हें याद करके क्‍या आप व्‍यथा का अनुभव नहीं करते हैं? हाथ जोड़कर ऐसी बातें कहने वाले सूतपुत्र संजय से दुःखातुर राजा धृतराष्ट्र ने लंबी साँस खींचकर इस प्रकार कहा-

     धृतराष्ट्र बोले ;– संजय! दिव्यास्त्रों के ज्ञाता शूरवीर गजानन्‍दन भीष्म तथा महाधनुर्धर द्रोणाचार्य के मारे जाने से मेरे मन में बड़ी भारी व्‍यथा हो रही है। जो तेजस्‍वी भीष्‍म साक्षात वसु के अवतार थे और युद्ध में प्रतिदिन दस हजार कवचधारी रथियों का संहार करते थे। उन्‍हीं को यहाँ पाण्डुपुत्र अर्जुन से सुरक्षित द्रुपदकुमार शिखण्डी ने मार डाला है, यह सुनकर मेरे मन में बड़ी व्‍यथा हो रही है। जिन महात्‍मा को भृगुनन्‍दन परशुराम ने उत्तम अस्त्र प्रदान किया था, जिन्‍हें बाल्‍यावस्‍था में धनुर्वेद की शिक्षा देने के लिये साक्षात परशुराम जी ने अपना शिष्‍य बनाया था, जिनकी कृपा से कुन्ती के पुत्र राजकुमार पाण्‍डव महारथी हो गये तथा अन्‍यान्‍य नरेशों ने भी महारथी कहलाने की योग्‍यता प्राप्‍त की थीं, उन्‍हीं सत्‍य प्रतिज्ञ महाधनुर्धर द्रोणाचार्य को युद्धस्‍थल में धृष्टद्युम्न के हाथ से मार गया सुनकर मेरे मन में बड़ी पीड़ा हो रही है।

(सम्पूर्ण महाभारत (कर्ण पर्व) द्वितीय अध्याय के श्लोक 16-26 का हिन्दी अनुवाद)

     संसार में चार प्रकार के अस्‍त्रों की विद्या में जिनकी समानता करने वाला दूसरा कोई पुरुष नहीं है, उन्‍हीं द्रोणाचार्य और भीष्म को मारा गया सुनकर मेरे मन में बड़ा दुःख हो रहा है। तीनों लोकों में दूसरा कोई पुरुष जिनके समान अस्त्रवेत्ता नहीं है, उन द्रोणाचार्य को मारा गया सुनकर मरे पुत्रों ने क्‍या किया? महात्‍मा पाण्‍डुपुत्र अर्जुन ने पराक्रम करके संशप्‍तकों की सारी सेना को यमलोक पहुँचा दिया और बुद्धिमान द्रोणकुमार अश्वत्थामा का नारायणास्त्र भी जब शान्‍त हो गया, उस समय अपनी सेनाओं में भगदड मच जाने पर मेरे पुत्रों ने क्‍या किया?

      मैं तो समझता हूँ, द्रोणाचार्य के मारे जाने पर मेरे सारे सैनिक भाग चले होंगे, शोक के समुद्र में डूब गये होंगे, उनकी दशा समुद्र में नाव मारी जाने पर वहाँ हाथों से तैरने वाले मनुष्‍यों के समान संकटपूर्ण हो गयी होगी। संजय! जब सारी सेनाएँ भाग गयी, तब दुर्योधन, कर्ण, भोजवंशी, कृतवर्मा, मद्रराज शल्य, द्रोणकुमार अश्वत्थामा, कृपाचार्य, मरने से बचे हुए मेरे पुत्र तथा अन्‍य लोगों के सुख की कान्ति कैसी हो गयी थी? गवल्‍गणकुमार! मेरे तथा पाण्डु के पुत्रों के पराक्रम से सम्‍बन्‍ध रखने वाला यह सारा वृतान्‍त यथार्थ रूप से मुझे कह सुनाओ। 

     संजय ने कहा ;– माननीय नरेश! आपके अपराध से कौरवों पर जो कुछ बीता है, उसे सुनकर दुःख न मानियेगा; क्‍योंकि दैववश जो दुःख प्राप्‍त होता है, उससे विद्वान पुरुष व्‍यथित नहीं होते हैं। प्रारब्‍धवश मनुष्‍य को अभीष्‍ट वस्‍तु की प्राप्ति हो भी जाती है और नहीं भी होती है। अतः उसकी प्राप्ति हो या न हो, किसी भी दशा में कोई ज्ञानी पुरुष (हर्ष या) कष्‍ट का अनुभव नहीं करता है। 

    धृतराष्ट्र बोले ;– संजय! मुझे इससे अधिक कोई व्‍यथा नहीं होगी, मैं पहले से ही ऐसा मानता हूँ कि यह अवश्‍यंभावी दैव का विधान है; अतः तुम इच्‍छानुसार सारा वृतान्‍त कहो।

(इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्ण पर्व में धृतराष्‍ट- संजय संवाद विषयक दूसरा अध्‍याय पूरा हुआ)

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कर्ण पर्व

तीसरा अध्याय

(सम्पूर्ण महाभारत (कर्ण पर्व) तृतीय अध्याय के श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद)

“दुर्योधन के द्वारा सेना को आश्वासन देना तथा सेनापति कर्ण के युद्ध और वध का संक्षिप्त वृत्तांत”

    संजय ने कहा ;- महाराज! महाधनुर्धर द्रोणाचार्य के मारे जाने पर आपके महारथी पुत्र विषादग्रस्त और अचेत से हो गये। उनके मुख पर अस्वस्थता का चिह्न स्पष्ट दिखायी देने लगा। प्रजानाथ! सभी शस्त्रधारी सैनिक मुँह नीचे किये शोक से व्याकुल हो गये। वे एक दूसरे की ओर न तो देखते थे और न बात ही करते थे। भरतनंदन! उन सबको विषाद में डूबा हुआ देख आपकी अनेक सेनाएँ भी दुःख से संत्रस्त हो ऊपर की ओर ही दृष्टिपात करने लगीं। राजेन्द्र! युद्ध में द्रोणाचार्य को मारा गया देख खून से रँगे हुए सैनिकों के शस्त्र हाथों से छूटकर गिर पड़े। भरतवंशी महाराज! कमर आदि में बँधकर छटकते हुए वे अस्त्र शस्त्र आकाश से टूटते हुए नक्षत्रों के समान दिखायी दे रहे थे। नरेश्वर! इस प्रकार आपकी सेना को प्राण हीन सी निश्चल खड़ी देख राजा दुर्योधन ने कहा-

     दुर्योधन ने कहा ;- ‘वीरो! आप लोगों के बाहुबल का भरोसा करके मैंने युद्ध के लिये पाण्डवों को ललकारा है और यह युद्ध आरम्भ किया है। परंतु द्रोणाचार्य के मारे जाने पर यह सेना विषाद में डूबी हुई सी दिखायी देती है। समरभूमि में युद्ध करने वाले प्रायः सभी योद्धा शत्रुओं के हाथों मारे जाते हैं। रणभूमि में जूझने वाले वीरों को कभी विजय भी प्राप्त होती है और कभी उसका वध भी हो जाता है। इसमें आश्चर्य की कौन सी बात है? अतः आप लोग सब ओर मुँह करके उत्साह पूर्वक युद्ध करें। देखिये, महामना, महाधनुर्धर और महाबली वैकर्तन कर्ण अपने दिव्यास्त्रों के साथ किस प्रकार युद्ध में विचर रहा है? जिसके भय से वह कुन्ती का मूर्ख पुत्र अर्जुन सदा उसी प्रकार मुँह मोड़ लेता है, जैसे सिंह के सामने से क्षुद्र मृग भाग जाता है। जिसने दस हजार हाथियों के समान बल वाले महाबली भीमसेन को मानव युद्ध के द्वारा ही वैसी दुरवस्था में डाल दिया था।

     जिसने रणभूमि में भयंकर गर्जना करने वाले दिव्यास्त्रवेत्ता, शूरवीर मायावी घटोत्कच को अपनी अमोघ शक्ति से मार डाला था। जिसके पराक्रम को रोकना अत्यन्त कठिन है, उस सत्यप्रतिज्ञ बुद्धिमान कर्ण के अक्षय बाहुबल को आज आप लोग समरांगण में देखेंगे। आज पाण्डव भगवान विष्णु और इन्द्र के समान शक्तिशाली द्रोणपुत्र तथा राधापुत्र दोनों के पराक्रम को देखें। आप सभी योद्धाओं में से प्रत्येक वीर रणभूमि में सेना सहित पाण्डवों को मार डालने की शक्ति रखता है। फिर जब आप लोग संगठित होकर युद्ध करें तो क्या नहीं कर सकते हैं? आप पराक्रमी और अस्त्र विद्या के विद्वान हैं; अतः आज एक दूसरे को अपना अपना पुरुषार्थ दिखायें।

     संजय कहते हैं ;- निष्पाप नरेश! ऐसा कहकर आपके महापराक्रमी पुत्र दुर्योधन ने अपने भाइयों के साथ मिलकर कर्ण को सेनापति बनाया। राजन! सेनापति का पद पाकर महारथी कर्ण उच्च स्वर से सिंहनाद करके रणोन्मत्त होकर युद्ध करने लगा। मान्यवर! उसने समसत सृंजयों, पाञ्चालों, केकयों और विदेहों का महान संहार किया। उसके धनुष से सैंकड़ों बाण धाराएँ, जो अग्रभाग और पुच्छ भाग में परस्पर सटी हुई थीं, भ्रमर पंक्तियों के समान प्रकट होने लगीं। यह पाञ्चालों और वेगशाली पाण्डवों को पीड़ित करके सहस्रों योद्धाओं को मारकर अन्त में अर्जुन के हाथों से मारा गया।

(इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में संजय वाक्य नामक तीसरा अध्याय पूरा हुआ)

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कर्ण पर्व

चौथा अध्याय

(सम्पूर्ण महाभारत (कर्ण पर्व) प्रथम अध्याय के श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद)

“धृतराष्ट्र का शोक और समसत स्त्रियों की व्याकुलता”

     वैशम्पायन जी कहते हैं ;- महाराज! यह सुनकर अम्बिकानन्दन धृतराष्ट्र ने यह मान लिया कि अब दुर्योधन भी मारा ही गया। उन्हें अपने शोक का कहीं अन्त नहीं दिखायी देता था। वे अचेत हुए हाथी के समान व्याकुल होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। भरतश्रेष्ठ जनमेजय! राजाओं में सर्वश्रेष्ठ धृतराष्ट्र के व्याकुल होकर जमीन पर गिर जाने से महल में स्त्रियों का महान आर्तनाद गूँज उठा। रोदन का वह शब्द वहाँ के समूचे भूमण्डल में व्याप्त हो गया। भरतकुल की स्त्रियाँ अत्यन्त घोर शोक समुद्र में डूब गयीं, उनका चित्त उद्विग्न हो गया और वे दुःख शोक से कातर हो फूट फूट कर रोने लगीं। भरतभूषण! गान्धारी देवी राजा धृतराष्ट्र के समीप आकर बेहोश होकर भूमि पर गिर गयीं। अन्तःपुर की सारी स्त्रियों की यही दशा हुई। राजन! तब संजय ने नेत्रों से आँसू की धारा बहाती हुई राजमहल की उन बहुसंख्यक महिलाओं को, जो आतुर एवं मूर्च्छित हो रही थीं, धीरे-धीरे धीरज बँधाया। आश्वासन पाकर भी वे स्त्रियाँ चारों ओर से वायु द्वारा हिलाये जाते हुए केले के वृक्षों की भाँति बारंबार काँप रहीं थीं।

      तत्पश्चात विदुर ने भी ऐश्वर्यशाली कुरुवंशी प्रज्ञाचक्षु राजा धृतराष्ट्र के ऊपर जल छिड़ककर उन्हें होश में लाने की चेष्टा की। राजेन्द्र! प्रजानाथ! धीरे-धीरे होश में आने पर धृतराष्ट्र अपने घर की स्त्रियों को वहाँ उपस्थित जान पागल के समान चुपचाप बैठे रह गये। तदनन्तर दीर्घकाल तक चिन्ता करने के पश्चात वे बारंबार लंबी साँस खींचते हुए अपने पुत्रों की निन्दा और पाण्डवों की अधिक प्रशंसा करने लगे। उन्होंने अपनी और सुबलपुत्र शकुनि की बुद्धि को भी कोसा। फिर बहुत देर तक चिन्तामग्न रहने के पश्चात वे बारंबार काँपने लगे। फिर मन को किसी तरह स्थिर करके राजा ने धैर्य धारण किया और गवल्गण के पुत्र सारथि संजय से इस प्रकार पूछा,

    धृतराष्ट्र बोले ;- ‘संजय! तुमने जो बात कही है, वह तो मैंने सून ली, किंतु एक बात बताओ। निरन्तर विजय की इच्छा रखने वाला मेरा पुत्र दुर्योधन अपनी विजय से निराश हो कहीं यमराज के लोक में तो नहीं चला गया? संजय! तुम इस कही हुई बात को भी फिर यथार्थ रूप से कह सुनाओ। जनमेजय! उनके ऐसा कहने पर सारथि संजय राजा से इस प्रकार बोला,

   संजय ने कहा ;- राजन! महारथी वैकर्तन कर्ण अपने पुत्रों तथा शरीर का मोह छोड़कर युद्ध करने वाले महाधनुर्धर सूत जातीय भाईयों के साथ मारा गया। साथ ही यशस्वी पाण्डुपुत्र भीमसेन ने रणभूमि में दुःशासन को मार दिया और क्रोधपूर्वक उसका खून भी पी लिया’।

(इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में धृतराष्ट्र का शोक नामक चैथा अध्याय पूरा हुआ)

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कर्ण पर्व

पाचवाँ अध्याय

(सम्पूर्ण महाभारत (कर्ण पर्व) पंचम अध्याय के श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद)

“संजय का धृतराष्ट्र को कौरव पक्ष के मारे गये प्रमुख वीरों का परिचय देना”

     वैशम्पायन जी कहते हैं ;- महाराज! उपर्युक्त समाचार सुनकर अम्बिकानन्दन धृतराष्ट्र का हृदय शोक से व्याकुल हो गया। वे अपने सारथि संजय से इस प्रकार बोले,

   धृतराष्ट्र बोले ;- ‘तात! अपने अल्पायु पुत्र के अन्याय से वैकर्तन कर्ण के मारे जाने का समाचार सुनकर जो शोक उमड़ आया है वह मेरे मर्मस्थानों को छेदे डालता है। मैं इस अपार दुःख से पार पाना चाहता हूँ। तुम मेरे इस संदेह का निवारण करो के कौरवों तथा सृंजय में से कौनधरत-कौन जीवित है और कौन-कौन मर गये हैं?’

     संजय ने कहा ;- राजन! दुर्जय एवं प्रतापी वीर शान्तनुनन्दन भीष्म दस दिनों में पाण्डव दल के दस करोड़ योद्धाओं का संहार करके मर गये हैं। इसी प्रकार सुवर्णमय रथ वाले दुर्धर्ष वीर महाधनुर्धर द्रोणाचार्य भी पाञ्चाल रथियों के समुदाय का संहार करके मारे गये हैं। भीष्म और महात्मा द्रोण के मारने से जो पाण्डव सेना बच गयी थी, उसके आधे भाग का विनाश करके वैकर्तन कर्ण मारा गया है। महाराज! महाबली राजकुमार विविंशति रणभूमि में सैंकड़ों आनर्तदेशीय योद्धाओं को मारकर मरा है। इसी प्रकार आपका शूरवीर पुत्र विकर्ण क्षत्रियोचित व्रत का स्मरण करके वाहनों और आयुधों के नष्ट हो जाने पर भी शत्रुओं के सामने डटा हुआ था, परंतु दुर्योधन के दिये हुए बहुत से भयंकर क्लेशों और अपनी प्रतिज्ञा को याद करके भीमसेन ने उसे मार गिराया।

      अवन्ती देश के महारथी राजकुमार विन्द और अनुविन्द भी दुष्कर कर्म करके यमलोक को चले गये। राजन! जिस वीर के शासन में सिन्धु सौबीर आदि दस राष्ट्र थे, जो सदा आपकी आज्ञा के अधीन रहा करता था, उस महापराक्रमी जयद्रथ को अर्जुन ने आपकी ग्यारह अक्षौहिणी सेना को हराकर तीखे बाणों से मार डाला। दुर्योधन के रणदुर्मद वेगशाली पुत्र लक्ष्मण को, जो सदा पिता की आज्ञा के अधीन रहता था, सुभद्राकुमार ने मार गिराया। अपने बाहुबल से सुशोभित होने वाला रणोन्मत्त शूर दुःशासनकुमार द्रौपदी के पुत्र से टक्कर लेकर यमलोक में जा पहुँचा। जो सागर-तटवर्ती किरातों के स्वामी तथा देवराज इन्द्र के अत्यन्त आदरणीय प्रिय सखा थे, सदा क्षत्रिय-धर्म में तत्पर रहने वाले वे धर्मात्मा राजा भगदत्त भी अर्जुन के साथ पराक्रम दिखाकर यमराज के लोक में चले गये।

     राजन! कौरववंशी महायशस्वी शूरवीर भूरिश्रवा, जो अपने अस्त्र शस्त्रों का परित्याग कर चुके थे, युद्ध स्थल में सात्यकि के हाथ से मारे गये। अम्बष्ठ देश के राजा क्षत्रिय-धुरंधर श्रतायु भी, जो समरांगण में निर्भय होकर विचरते थे, सव्यसाची अर्जुन के हाथ से मारे गये। महाराज! जो अस्त्र विद्या का विद्वान तथा युद्ध में उन्मत्त होकर लड़ने वाला था, सदा अमर्ष में भरे रहने वाले आपके उस पुत्र दुःशासन को भीमसेन ने मार डाला। राजन! जिसके अधिकार में कई हजार हाथियों की अद्भुत सेना थी, वह सुदक्षिण भी संग्राम में सव्यसाची अर्जुन के बाणों का निशाना बन गया। कोशल नरेश शत्रुपक्ष के अत्यन्त सम्मानित वीरों का वध करके सुभद्राकुमार अभिमन्यु के साथ पराक्रम दिखाते हुए यमलोक के पथिक बन गये।

(सम्पूर्ण महाभारत (कर्ण पर्व) प्रथम अध्याय के श्लोक 22-44 का हिन्दी अनुवाद)

      जो महारथी भीमसेन के साथ भी कई बार युद्ध कर चुका था, ढाल और तलवार लेकर शत्रुओं का भय बढ़ाने वाला वह मद्रराज का शूरवीर तेजस्वी पुत्र सुभद्राकुमार अभिमन्यु के द्वारा मार डाला गया। जो समर भूमि में कर्ण के समान ही पराक्रमी था, शीघ्रता पूर्वक अस्त्र चलाने वाला, सुदृढ़ बल-विक्रम से सम्पन्न और महान तेजस्वी था, वह कर्णपुत्र वृषसेन अभिमन्यु का वध सुनकर की हुई अपनी प्रतिज्ञा को याद रखने वाले अर्जुन के साथ भिड़कर कर्ण के देखते देखते उनके द्वारा यमलोक पहुँच दिया गया। जो पाण्डवों से सदा वैर बाँधे रखता था , उस राजा श्रतायु को कुन्तीकुमार अर्जुन ने उसकी शत्रुता का स्मरण कराकर मार डाला। माननीय नरेश! शल्य का पराक्रमी पुत्र रुक्मरथ, जो सहदेव का ममेरा भाई था, युद्ध में सहदेव के ही हाथ से मारा गया। बूढ़े राजा भगीरथ और केकय नरेश बृहद्रथ ये दोनों अत्यनत बलवान और पराक्रमी वीर थे, जो युद्ध में पराक्रम दिखाते हुए मारे गये। राजन! भगदत्त के विद्वान् और महाबली पुत्र को युद्ध में बाज की तरह झपटने वाले नकुल ने मार गिराया।

       आपके पितामह बाह्लीक भी महान बल-पराक्रम से सम्पन्न थे। वे भीमसेन के हाथ से बाह्लीक योद्धाओं सहित मारे गये। राजन! जरासंध के महाबलवान पुत्र मगधवासी जयत्सेन को महामना सुभद्राकुमार ने युद्ध में मार डाला। नरेश्वर! आपके पुत्र दुर्मुख और महारथी दुःसह ये दोनों अपने को शूरवीर मानने वाले योद्धा थे, जो भीमसेन की गदा से मारे गये। इसी प्रकार दुर्मर्षण, दुर्विषह और महारथी दुर्जय दुष्करकर्म करके यमराज के लोक में जा पहुँचे हैं। युद्ध दुर्मद कलिंग और वृषक ये दोनों भाई भी दुष्कर पराक्रम प्रकट करके यमलोक के अतिथि हो चुके हैं। आपके मन्त्री परमपराक्रमी शूरवीर वृषवर्मा भीमसेन के द्वारा बलपूर्वक यमलोक पहुँचा दिये गये। इसी प्रकार इस हजार हाथियों के समान बलशाली महान राजा पौरव को समरांगण में पाण्डु कुमार सव्यसाची अर्जुन ने मार डाला।

       महाराज! प्रहार कुशल दो हजार वसाति लोग और पराक्रमी शूरसेन - ये सबके सब युद्ध में मार डाले गये हैं। रण में उन्मत्त रथी शिवि- ये सब कलिंगराज सहित मारे गये हैं। जो सदा गोकुल में पले हैं, युद्ध में अत्यन्त कुपित होकर लड़ते हैं और जिन्होंने कभी युद्ध में पीठ दिखाना नहीं सीखा है, वे गोपाल भी अर्जुन के हाथ से मारे जा चुके हैं। संशप्तगणों की कई हजार श्रेणियाँ थीं। वे सभी अर्जुन का सामना करके यमराज के लोक में चले गये। महाराज! आपके दोनों साले राजा वृषक और अचल जो आपके लिये अत्यन्त पराक्रम प्रकट करते थे, अर्जुन के द्वारा मार डाले गये।

       जो महान धनुर्धर तथा नाम और कर्म से भी उग्रकर्मा थे, उन महाबाहु शल्वराज को भीमसेन ने मार गिराया। महाराज! मित्र के लिये रणभूमि में पराक्रम प्रकट करने वाले ओघवान और बृहन्त- ये दोनों एक साथ यमलोक को प्रस्थान कर चुके हैं। प्रजानाथ! नरेश्वर! इसी प्रकार रथियों में श्रेष्ठ क्षेमधूर्ति को भी युद्ध स्थल में भीमसेन ने अपनी गदा से मार डाला। राजन! महाधनुर्धर महाबली जलसंघ रणभूमि में शत्रु सेना का महान संहार करके अन्त में सात्यकि के हाथ से मारे गये।

(सम्पूर्ण महाभारत (कर्ण पर्व) पंचम अध्याय के श्लोक 45-60 का हिन्दी अनुवाद)

      घटोत्कच ने पराक्रम करके गर्दभयुक्त सुन्दर रथ वाले राक्षसराज अलम्बुष को यमलोक पहुँचा दिया है। सूतपुत्र राधानन्दन कर्ण, उसके महारथी भाई तथा समस्त केकय भी सव्यसाची अर्जुन के हाथ से मारे गये। मालव, मद्रक, भयंकर कर्म करने वाले द्राविड़, यौधेय, ललित्य, क्षुद्रक, उशीनर, मावेल्लक, तुण्डिकेर, सावित्रीपुत्र, प्राच्य, प्रतीच्य, उछीच्य और दक्षिणात्य, पैदल समूह, दस लाख घोड़े, रथों के समूह और बड़े-बड़े गजराज अर्जुन के हाथ से मारे गये हैं। राजन! पालन निपुण पुरुषों ने जिनका दीर्घकाल से पालन-पोषण किया था, जो युद्ध में सदा सावधान रहने वाले शूरवीर थे, वे सभी अनायास ही महान कर्म करने वाले अर्जुन के हाथ से ध्वज, आयुध, कवच, वस्त्र और आभूषणों सहित समरांगण में मारे गये।

       महाराज! एक दूसरे के वध की इच्छा रखने वाले असीम बलशाली अन्यान्य योद्धा भी मौत के घाट उतर चुके हैं। राजन! ये तथा और भी बहुत से नरेश रणभूमि में अपने दल बल के साथ सहस्रों की संख्या में मारे गये हैं। आप मुझसे जो कुछ पूछ रहे थे, वह सब मैंने बता दिया। राजन! इस प्रकार कर्ण और अर्जुन के संग्राम में यह भारी संहार हुआ है। जैसे देवराज इन्द्र ने वृत्रासुर को, श्रीरामचन्द्र जी ने रावण को, नरक शत्रु श्रीकृष्ण ने नरक और मुरु को तथा भृगुवंशी परशुराम जी ने तीनों लोकों को मोहित करने वाला अत्यन्त घोर युद्ध करके समरांगण में रणदुर्मद शूरवीर कृतवीर्यकुमार अर्जुन को उसके भाई बन्धुओं सहित मार डाला था, जैसे स्कन्द ने महिषासुर का और रुद्र ने अन्धकासुर का संहार किया था, उसी प्रकार अर्जुन ने योद्धाओं में श्रेष्ठ युद्ध दुर्मद कर्ण को द्वैरथ युद्ध में उसके मन्त्री और बन्धुओं सहित मार डाला।

      जिससे आपके पुत्रों ने विजय की आशा लगा रखी थी, जो वैर का मुख बना हुआ था, उससे पाण्डुपुत्र अर्जुन पार हो गये। महाराज! पहले आपने हितैषी बन्धुओं के कहने पर भी जिसकी ओर ध्यान नहीं दिया, वही यह महान विनाशकारी संकट प्राप्त हुआ है। राजन! आपने राज्य की कामना रखने वाले अपने पुत्रों के हित की इच्छा रखते हुए सदा उन पाण्डवों के अहित ही किये हैं; आपके उन्हीं कर्मों का यह फल प्राप्त हुआ है।

(इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में संजय वाक्य विषयक पाँचवाँ अध्याय पूरा हुआ)

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