सम्पूर्ण महाभारत
द्रोण पर्व (द्रोणाभिषेक पर्व)
छियालीसवाँ अध्याय
(सम्पूर्ण महाभारत (द्रोण पर्व) षट्चत्वारिश अध्याय के श्लोक 1-27 का हिन्दी अनुवाद)
“अभिमन्यु के द्वारा लक्ष्मण तथा क्राथपुत्र का वध और सेनासहित छ: महारथियों का पलायन”
धृतराष्ट्र बोले ;– सूत! जैसा कि तुम बता रहे हो, अकेले महामना अभिमन्यु का बहुत से योद्धाओं के साथ अत्यन्त भयंकर संग्राम हुआ और उसमें विजय भी उसी की हुई– सुभद्राकुमार का यह पराक्रम आश्चर्यजनक है। उस पर सहसा विश्वास नही होता परंतु जिन लोगों का धर्म ही आश्रय है, उनके लिये यह कोई अत्यन्त अद्भुत बात नहीं है। संजय! जब दुर्योधन भाग गया और सैकड़ों राजकुमार मारे गये, उस समय मेरे पुत्रों ने सुभद्राकुमार का सामना करने के लिये क्या उपाय किया ? संजय ने कहा–महाराज! आपके सभी सैनिकों के मुंह सूख गये थे, ऑखे भय से चंचल हो रही थी, सारे अंग पसीने-पसीने हो रहे थे और रोंगटे खड़े हो गये थे। वे भागने में ही उत्साह दिखा रहे थे। शत्रुओं को जीतने का उत्साह उनके मन में तनिक भी नहीं था। वे युद्ध में मारे गये भाइयों, पितरों, पुत्रों, सुहृदों, सम्बन्धियों तथा बन्धु-बान्धवों को छोड़-छोड़कर अपने घोड़े और हाथियों को उतावली के साथ हांकते हुए भाग रहे थे। राजन्! उन सबको भागते देख द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, बृहदल, कृपाचार्य, दुर्योधन, कर्ण, कृतवर्मा और शकुनि ये सब अत्यन्त क्रोध में भरकर अपराजित वीर अभिमन्यु पर टूट पडे; परंतु आपके उस पौत्र अभिमन्यु ने उन सबको प्राय: युद्ध से भगा दिया।
उस समय सुख में पला हुआ, धनुर्वेद का ज्ञाता, एकमात्र महातेजस्वी लक्ष्मण अपने बालस्वभाव तथा अभिमान के कारण निर्भय हो अभिमन्यु के सामने आ गया। पुत्र की रक्षा चाहने वाला पिता दुर्योधन भी उसी के साथ-साथ लौट पड़ा। फिर दुर्योधन के पीछे दूसरे महारथी लौट आये। जैसे बादल किसी पर्वत को अपने जल की धाराओं से सींचते हैं, उसी प्रकार वे महारथी अभिमन्यु पर बाणों की वर्षा करने लगे। जैसे चारों ओर से बहने वाली हवा (चौवाई) बादलों को उड़ा देती है, उसी प्रकार अकेले अभिमन्यु ने उन सबको मथ डाला। राजन्! आपका प्रियदर्शन पौत्र लक्ष्मण बड़ा दुर्धर्ष वीर था। वह धनुष उठाये अपने पिता के ही पास खड़ा था। अत्यन्त सुख में पला हुआ वह वीर कुबेर के पुत्र के समान जान पड़ता था। जैसे मतवाला हाथी किसी मदोन्मक्त गजराज से भिड़ जाय, उसी प्रकार अर्जुनकुमार ने लक्ष्मण पर आक्रमण किया। लक्ष्मण से भिड़ने पर उसके द्वारा शत्रुवीरों का संहार करने वाले सुभद्राकुमार की भुजाओं और छाती में अत्यन्त तीखे बाणों द्वारा प्रहार किया। महाराज! उस प्रहार से लाठी की चोट खाये हुए सर्प के समान अत्यन्त क्रोध में भरे हुए आपके पौत्र अभिमन्यु ने आपके दूसरे पौत्र लक्ष्मण से कहा। लक्ष्मण! इस संसार को अच्छी तरह देख लो। अब शीघ्र ही परलोक की यात्रा करोगे। इन बान्धव-जनों के देखते-देखते मैं तुम्हें यमलोक पहॅुचाये देता हूँ। ऐसा कहकर शत्रुवीरों का संहार करने वाले महाबाहु सुभद्राकुमार केचुल से निकले हुए सर्प के समान एक भल्ल को तरकस से निकाला। अभिमन्यु के हाथों से छूटे हुए उस भल्ल ने लक्ष्मण के देखने में सुन्दर, सुघड़ नासिका, मनोहर भौंह, सुन्दर के शान्तभाग और रुचिर कुण्डलों से युक्त मस्तक को धड़ से अलग कर दिया। संजय कहते हैं- राजन! अभिमन्यु द्वारा लक्ष्मण को मारा गया देख सब लोग जोर-जोर से हाहाकार करने लगे। अपने प्यारे पुत्र के मारे जाने पर क्षत्रिय शिरोमणि दुर्योधन कुपित हो उठा और समस्त क्षत्रियों से बोला – अहो! इस अभिमन्यु को मार डालो। तब द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण,अश्वत्थामा, बृहदल और ह्रदिकपुत्र कृतवर्मा – इन छ: महारथियों ने अभिमन्यु को घेर लिया। यह देख अर्जुनकुमार ने अपने पैने बाणों द्वारा उन सबको घायल करके भगा दिया और क्रोध में भरकर बड़े वेग से जयद्रथ की विशाल सेना पर धावा किया।
उस समय कलिग देशीय सैनिक, निषादगण तथा पराक्रमी क्राथपुत्र – इन सबने कवच धारण करके गजसेना के द्वारा अभिमन्यु का रास्ता रोक दिया। प्रजानाथ! तब वहाँ अत्यन्त निकट से घोर युद्ध आरम्भ हो गया। अर्जुनकुमार ने पैने बाणों द्वारा उस धृष्ट गजसेना को उसी प्रकार नष्ट कर दिया, जैसे सदागति वायु आकाश में सैकड़ों मेघखण्डों को छिन्न-भिन्न कर देती है। तदनन्तर क्राथ ने अर्जुनकुमार अभिमन्यु पर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। इतने ही में द्रोण आदि दूसरे महारथी भी पुन: लौट आये। उन सबने अपने उत्तम अस्त्रों का प्रयोग करते हुए सुभद्राकुमार पर आक्रमण किया। अभिमन्यु न अपने बाणों द्वारा उन सबका निवारण करके क्राथपुत्र को अधिक पीड़ा दी। फिर उसने असंख्य बाण समूहों द्वारा क्राथपुत्र को मार डालने की इच्छा से जल्दी करते हुए उसकी धनुष बाणों और केयूरसहित दोनों भुजाओं, मुकुट मण्डित मस्तक, छत्र, ध्वज और सारथि सहित रथ तथा घोड़ों को भी मार गिराया। कुल, शील, शास्त्रज्ञान, बल, कीर्ति, तथा अस्त्र-बल से सम्पन्न उस वीर क्राथपुत्र के मारे जाने पर आपकी सेनाके प्राय: सभी शूरवीर सैनिक युद्ध छोड़कर भाग गये।
(इस प्रकार श्रीमहाभारतद्रोणपर्व के अन्तर्गत अभिमन्युवध पर्व में लक्ष्मण वध विषयक छियालीसवॉ अध्याय पूरा हुआ)
सम्पूर्ण महाभारत
द्रोण पर्व (द्रोणाभिषेक पर्व)
सैतालिसवाँ अध्याय
(सम्पूर्ण महाभारत (द्रोण पर्व) सप्तचत्वारिंश अध्याय के श्लोक 1-24 का हिन्दी अनुवाद)
“अभिमन्यु का पराक्रम छ: महारथियों के साथ घोर युद्ध और उसके द्वारा वृन्दारक तथा दश हजार अन्य राजाओं के सहित कोसल नरेश बृहद्बल का वध”
धृतराष्ट्र बोले ;- संजय! कभी पराजित न होने वाला तथा युद्ध में पीठ न दिखाने वाला तरुण, सुभद्राकुमार अभिमन्यु जब इस प्रकार जयद्रथ की सेना में प्रवेश करके अपने कुल के अनुरूप पराक्रम प्रकट कर रहा था और तीन वर्ष की अवस्था वाले अच्छी जाति के बलवान घोड़ों द्वारा मानों आकाश में तैरता हुआ आक्रमण करता था, उस समय किन शूरवीरों ने उसे रोका था?
संजय ने कहा ;– राजन! पाण्डुकुलनन्दन अभिमन्यु ने उस सेना में प्रविष्ट होकर आपके सभी राजाओं को अपने तीखे बाणों द्वारा युद्ध से विमुख कर दिया। तब द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, बृहद्बल और हृदिकपुत्र कृतवर्मा इन छ: महारथियों ने उसे चारों ओर-से घेर लिया। महाराज! सिंधुराज जयद्रथ पर बहुत बड़ा भार आया देख आपकी सेना ने राजा युधिष्ठिर पर धावा किया।
तथा कुछ अन्य महाबली योद्धाओं ने अपने चार हाथ के धनुष खींचते हुए वहाँ सुभद्राकुमार वीर अभिमन्यु पर बाणरूपी जल की वर्षा प्रारम्भ कर दी। परंतु शत्रुवीरों का संहार करने वाले अभिमन्यु ने सम्पूर्ण विद्याओं में प्रवीण उन समस्त महाधनुर्धरों को रणक्षेत्र में अपने बाणों द्वारा स्तब्ध कर दिया। अर्जुनकुमार अभिमन्यु ने द्रोण को पचास, बृहद्बल को बीस, कृतवर्मा को अस्सी, कृपाचार्य को साठ और अश्वत्थामा को कान तक खींचकर छोड़े हुए स्वर्णमय पंखयुक्त, महावेगशाली दस बाणों द्वारा घायल कर दिया। अर्जुनकुमार ने शत्रुओं के मध्य में खड़े हुए कर्ण के कान में पानीदार पैने और उत्तम बाण द्वारा गहरी चोट पहुँचायी।
कृपाचार्य के चारों घोड़ों तथा उनके दो पार्श्वरक्षकों को धराशायी करके उनकी छाती में दस बाणों द्वारा प्रहार किया। तदनन्तर बलवान अभिमन्यु ने कुरुकुल के कीर्ति बढ़ाने वाले वीर वृन्दारक को आपके वीर पुत्रों के देखते–देखते मार डाला। तब शत्रुदल के प्रधान-प्रधान वीरों का बेखटके वध करते हुए अभिमन्यु को अश्वत्थामा ने पच्चीस बाण मारे। आर्य! अर्जुनकुमार भी आपके पुत्रों के देखते–देखते तुरंत ही अश्वत्थामा को पैने बाणों द्वारा बींध डाला। तब द्रोणपुत्र ने तीखी धार वाले तेज और भयंकर साठ बाणों द्वारा अभिमन्यु को बींध डाला; परंतु बींधकर भी वह मैनाक पर्वत के समान स्थित अभिमन्यु को कम्पित न कर सका।
महातेजस्वी बलवान अभिमन्यु ने सुवर्णमय पंख से युक्त तिहत्तर बाणों द्वारा अपने अपकारी अश्वत्थामा को पुन: घायल कर दिया। तब अपने पुत्र के प्रति स्नेह रखने वाले द्रोणाचार्य ने अभिमन्यु को सौ बाण मारे। साथ ही अश्वत्थामा ने भी पिता की रक्षा करते हुए रणक्षेत्र में उस पर आठ बाण चलाये। तत्पश्चात कर्ण ने बाईस, कृतवर्मा ने बीस, बृहद्बल ने पचास तथा शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य ने अभिमन्यु को दस भल्ल मारे। उन सबके चलाये हुए तीखे बाणों द्वारा सब ओर-से पीड़ित हुए सुभद्राकुमार ने उन सभी को दस-दस बाणों से घायल कर दिया। तत्पश्चात कोसलनरेश बृहद्बल ने एक बाण द्वारा अभिमन्यु की छाती में चोट पहुँचायी। यह देख अभिमन्यु ने उनके चारों घोड़ों तथा ध्वज, धनुष एवं सारथि को भी पृथ्वी पर मार गिराया। रथहीन होने पर कोसलनरेश ने हाथ में ढाल और तलवार ले ली तथा अभिमन्यु के शरीर से उसके कुण्डलयुक्त मस्तक को काट लेने का विचार किया।
इतने ही में अभिमन्यु ने एक बाण द्वारा कोसलनरेश राजपुत्र बृद्बदल के हृदय में गहरी चोट पहुँचायी। इससे उनका वक्ष:स्थल विदीर्ण हो गया और वे गिर पड़े। इसके बाद अशुभ वचन बोलने वाले तथा खड्ग एवं धनुष धारण करने वाले दस हजार महामनस्वी राजाओं का भी उसने संहार कर डाला। इस प्रकार महाधनुर्धर अभिमन्यु बृहद्बल का वध करके आपके योद्धाओं को अपने बाणरूपी जल की वर्षा से स्तब्ध करता हुआ रणक्षेत्र में विचरने लगा।
(इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गत अभिमन्युवधपर्व में बृहद्बलवधविषयक सैतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ)
सम्पूर्ण महाभारत
द्रोण पर्व (द्रोणाभिषेक पर्व)
अड़तालीसवाँ अध्याय
(सम्पूर्ण महाभारत (द्रोण पर्व) अष्टचत्वारिंश अध्याय के श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद)
“अभिमन्यु द्वारा अश्वकेतु, भोज और कर्ण के मन्त्री आदि का वध एवं छ: महारथियों के साथ घोर युद्ध और उन महारथियों द्वारा अभिमन्यु के धनुष, रथ, ढाल और तलवार का नाश”
संजय कहते हैं ;– राजन! तदनन्तर अर्जुनकुमार अभिमन्यु ने एक बाण द्वारा कर्ण के कान में पुन: चोट पहुँचायी और उसे क्रोध दिलाते हुए उसने पचास बाण मारकर अत्यन्त घायल कर दिया। भरतनन्दन! तब राधापुत्र कर्ण ने भी अभिमन्यु को उतने ही बाणों से बींध डाला। उसका सारा अंग बाणों से व्याप्त होने के कारण वह बड़ी शोभा पा रहा था। फिर क्रोध में भरे हुए अभिमन्यु ने कर्ण को भी बाणों से क्षत-विक्षत करके उसे रक्त की धारा बहाने वाला बना दिया। उस समय शूरवीर कर्ण भी बाणों से छिन्न-भिन्न और खून से लथपथ हो बड़ी शोभा पाने लगा, मानो शरत्काल का सूर्य संध्या के समय सम्पूर्ण रूप से लाल दिखायी दे रहा हो। उन दोनों के शरीर बाणों से व्याप्त होने के कारण विचित्र दिखायी देते थे। दोनों ही रक्त से भीग गये तथा वे दोनों महामनस्वी वीर फूलों से भरे हुए पलाश वृक्ष के समान प्रतीत होते थे।
तदनन्तर, सुभद्राकुमार ने कर्ण के विचित्र युद्ध करने वाले छ: शूरवीर मन्त्रियों को उनके घोड़े, सारथि, रथ तथा ध्वज सहित मार डाला। इतना ही नहीं, उसने बिना किसी घबराहट के दस-दस बाणों द्वारा अन्य महाधनुर्धरों को भी आहट कर दिया। वह अद्भुत-सी बात थी। इसी प्रकार उसने मगधराज के तरुण पुत्र अश्वकेतु को छ: बाणों द्वारा मारकर उसे घोड़ों और सारथि सहित रथ से नीचे गिरा दिया।
तत्पश्चात हाथी के चिह्न से युक्त ध्वजा वाले मार्तिकावतकनरेश एक क्षुरप्र द्वारा नष्ट करके अभिमन्यु ने बाणों की वर्षा करते हुए सिंहनाद किया। तब दु:शासनकुमार ने चार बाणों द्वारा अभिमन्यु के चारों घोड़ों को घायल करके एक-से सारथि को और दस बाणों द्वारा स्वयं अभिमन्यु को बींध डाला।
यह देख अर्जुनकुमार ने क्रोध से लाल आँखें करके सात बाणों द्वारा दु:शासनपुत्र को बींध डाला और उच्च स्वर से यह बात कही। 'अरे! तेरा पिता कायर की भाँति युद्ध छोड़कर भाग गया है। सौभाग्य की बात है कि तू भी युद्ध करना जानता है; किन्तु आज तू जीवित नहीं छूट सकेगा।' यह वचन कहकर अभिमन्यु ने कारीगर के माँजे हुए एक नाराच को दु:शासनपुत्र पर चलाया; परंतु अश्वत्थामा ने तीन बाण मारकर उसे बीच में ही काट दिया।
तब अर्जुनकुमार ने अश्वत्थामा का ध्वज काटकर शल्य को तीन बाण मारे। राजन! शल्य ने भी मन में तनिक भी सम्भ्रम या घबराहट का अनुभव न करते हुए-से गीध के पंख से युक्त नौ बाणों द्वारा अभिमन्यु को आहत कर दिया। यह एक अद्भुत-सी बात हुई। उस समय अभिमन्यु ने शल्य के ध्वज को काटकर उनके दोनों पार्श्वरक्षकों को भी मार डाला और उनको भी लोहे के बने हुए छ: बाणों से बींध दिया; फिर तो शल्य भागकर दूसरे रथ पर चले गये। तत्पश्चात शत्रुंजय, चन्द्रकेतु, मेघवेग, सुवर्चा और सूर्यभास इन पाँच वीरों को मारकर अभिमन्यु ने सुबलपुत्र शकुनि कों भी घायल कर दिया। तब शकुनि ने भी तीन बाणों से अभिमन्यु को घायल करके दुर्योधन से इस प्रकार कहा। 'राजन! यह एक-एक के साथ युद्ध करके हमें मारे, इसके पहले ही हम सब लोग मिलकर इस अभिमन्यु को मथ डालें।' तदनन्तर विकर्तनपुत्र कर्ण ने रणक्षेत्र में पुन: द्रोणाचार्य से पूछा।
'आचार्य! अभिमन्यु हम लोगों को मार डाले इसके पहले ही हमें शीघ्र यह बताइये कि इसका वध किसा प्रकार होगा?' तब महाधनुर्धर द्रोणाचार्य ने उन सबसे कहा।
(सम्पूर्ण महाभारत (द्रोण पर्व) अष्टचत्वारिंश अध्याय के श्लोक 19-41 का हिन्दी अनुवाद)
'देखो, क्या इस कुमार अभिमन्यु में कहीं कोई दुर्बलता या छिद्र है? सम्पूर्ण दिशाओं में विचरते हुए अभिमन्यु में आज कोई छोटा-सा भी छिद्र हो तो देखों।' 'इस पुरुषसिंह पाण्डवपुत्र की शीघ्रता तो देखो। शीघ्रतापूर्वक बाणों का संधान करते और छोड़ते समय रथ के भागों में इसके धनुष का मण्डलमात्र दिखायी देता है।'
'शत्रुवीरों का संहार करने वाला सुभद्राकुमार अभिमन्यु यद्यपि अपने बाणों द्वारा मेरे प्राणों को अत्यन्त कष्ट दे रहा है, मुझे मूर्च्छित किये देता है, तथापि बारंबार मेरा हर्ष बढ़ा रहा है। रणक्षेत्र में विचरता हुआ सुभद्रा का यह पुत्र मुझे अत्यन्त आनन्दित कर रहा है।' 'क्रोध में भरे हुए महारथी इसके छिद्र को नहीं देख पाते हैं। यह शीघ्रतापूर्वक हाथ चलाता हुआ अपने महान बाणों से सम्पूर्ण दिशाओं को व्याप्त कर रहा है। मैं युद्धस्थल में गाण्डीवधारी अर्जुन और इस अभिमन्यु में कोई अन्तर नहीं देख पाता हूँ।'
तदनन्तर कर्ण ने अभिमन्यु के बाणों से आहत होकर पुन: द्रोणाचार्य से कहा,
कर्ण ने कहा ;– 'आचार्य! मैं अभिमन्यु के बाणों से पीड़ित होता हुआ भी केवल इसलिये यहाँ खड़ा हूँ कि युद्ध के मैदान में डटे रहना ही क्षत्रिय का धर्म है।' 'तेजस्वी कुमार अभिमन्यु के ये अत्यन्त दारुण और अग्नि के समान तेजस्वी घोर बाण आज मेरे वक्ष:स्थल को विदीर्ण किये देते हैं।' यह सुनकर द्रोणाचार्य ठहाका मारकर हँसते हुए-से धीरे-धीरे कर्ण से इस प्रकार बोले।
'कर्ण! अभिमन्यु का कवच अभेद्य है। यह तरुण वीर शीघ्रतापूर्वक पराक्रम प्रकट करने वाला है। मैंने इसके पिता को कवच धारण करने की विधि बतायी है। शत्रुनगरी पर विजय पाने वाला यह वीर कुमार निश्चय ही वह सारी विधि जानता है; परंतु मनोयोगपूर्वक चलाये हुए बाणों से इसके धनुष और प्रत्यंचा को काटा जा सकता है।'
'साथ ही इसके घोड़ों की वागडोरों को, घोड़ों को तथा दोनों पार्श्वरक्षकों को भी नष्ट किया जा सकता है। महाधनुर्धर राधापुत्र! यदि कर सको तो यही करो।' 'अभिमन्यु को युद्ध से विमुख करके पीछे इसके ऊपर प्रहार करो, धनुष लिये रहने पर तो इसे सम्पूर्ण देवता और असुर भी जीत नहीं सकते।' 'यदि तुम इसे परास्त करना चाहते हो तो इसके रथ और धनुष को नष्ट कर दो।' आचार्य की यह बात सुनकर विकर्तनपुत्र कर्ण ने बड़ी उतावली के साथ अपने बाणों द्वारा शीघ्रतापूर्वक हाथ चलाते हुए अस्त्रों का प्रयोग करने वाले अभिमन्यु के धनुष को काट दिया। भोजवंशी कृतवर्मा ने उसके घोड़े मार डाले और कृपाचार्य ने दोनों पार्श्वरक्षकों का काम तमाम कर दिया।
शेष महारथी धनुष कट जाने पर अभिमन्यु के ऊपर बाणों की वर्षा करने लगे। इस प्रकार शीघ्रता करने के अवसर पर शीघ्रता करने वाले छ: निर्दय महारथी एक रथहीन बालक पर बाणों की बौछार करने लगे। धनुष कट जाने और रथ नष्ट हो जाने पर तेजस्वी वीर अभिमन्यु अपने धर्म का पालन करते हुए ढाल और तलवार हाथ में लेकर आकाश में उछल पड़ा।
अर्जुनकुमार अभिमन्यु कौशिक आदि मार्गों (पैतरों) द्वारा तथा शीघ्रकारिता और बल-पराक्रम से पक्षिराज गरुड़ की भाँति भूतल की अपेक्षा आकाश में ही अधिक विचरण करने लगा। समरांगण में छिद्र देखने वाले योद्धा 'जान पड़ता है यह मेरे ही ऊपर तलवार लिये टूटा पड़ता है' इस आशंका से ऊपर की ओर दृष्टि करके महाधनुर्धर अभिमन्यु को बींधने लगे। उस समय शत्रुओं पर विजय पाने वाले महातेजस्वी द्रोणाचार्य ने शीघ्रता करते हुए क्षुरप्र के द्वारा अभिमन्यु की मुट्ठी में स्थित हुए मणिमय मूठ से युक्त खड्ग को काट डाला।
राधानन्दन कर्ण ने अपने पैने बाणों द्वारा उसके उत्तम ढाल के टुकड़े–टुकड़े कर डाले। ढाल और तलवार से वंचित हो जाने पर बाणों से भरे हुए शरीर वाला अभिमन्यु पुन: आकाश से पृथ्वी पर उतर आया और चक्र हाथ में ले कुपित हो द्रोणाचार्य की ओर दौड़ा।अभिमन्यु का शरीर चक्र की प्रभा से उज्जवल तथा धूलराशि से सुशोभित था। उसके हाथ में तेजोमय उज्जवल चक्र प्रकाशित हो रहा था। इससे उसकी बड़ी शोभा हो रही थी। उस रणक्षेत्र में चक्रधारण द्वारा भगवान श्रीकृष्ण का अनुकरण करता हुआ अभिमन्यु क्षणभर के लिये बड़ा भयंकर प्रतीत होने लगा। अभिमन्यु के वस्त्र उसके शरीर से बहने वाले एकमात्र रुधिर के रंग में रँग गये थे। भौंहे टेढ़ी होने से उसका मुखमण्डल सब ओर से कुटिल प्रतीत होता था और वह बड़े जोर-जोर से सिंहनाद कर रहा था। ऐसी अवस्था में प्रभावशाली अनन्त बलवान अभिमन्यु उस रणक्षेत्र में पूवोक्त नरेशों के बीच में खड़ा होकर अत्यन्त प्रकाशित हो रहा था।
(इस प्रकार श्रीमहाभारतद्रोणपर्व के अन्तर्गत अभिमन्युवधपर्व में अभिमन्यु को रथहीन करने से संबंध रखने वाला अड़तालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ)
सम्पूर्ण महाभारत
द्रोण पर्व (द्रोणाभिषेक पर्व)
उनचासवाँ अध्याय
सम्पूर्ण महाभारत
द्रोण पर्व (द्रोणाभिषेक पर्व)
पचासवाँ अध्याय
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें