सम्पूर्ण महाभारत (द्रोण पर्व) के इक्कीसवें अध्याय से पच्चीसवें अध्याय तक (From the 21 chapter to the 25 chapter of the entire Mahabharata (Drona Parva))


सम्पूर्ण महाभारत  

द्रोण पर्व (संशप्तकवध पर्व)

इक्कीसवाँ अध्याय

(सम्पूर्ण महाभारत (द्रोण पर्व) एकविंश अध्याय के श्लोक 1-24 का हिन्दी अनुवाद)

“द्रोणाचार्य के द्वारा सत्‍यजित, शतानीक, दृढ़सेन, क्षेम, वसुदान तथा पांचालराजकुमार आदि का वध और पाण्‍डव-सेना की पराजय”

   संजय कहते हैं ;– राजन! तदनन्‍तर युधिष्ठिर ने द्रोण को अपने समीप आया देख एक निर्भय वीर की भाँति बाणों की बड़ी भारी वर्षा करके उन्‍हें रोक दिया। उस समय युधिष्ठिर की सेना में महान कोलाहल मच गया। जैसे विशाल सिंह हाथियों के यूथपतियों को पकड़ना चाहता हो, उसी प्रकार द्रोणाचार्य युधिष्ठिर को अपने काबू में करना चाहते थे। यह देख सत्‍यपराक्रमी शूरवीर सत्यजित युधिष्ठिर की रक्षा के लिये द्रोणाचार्य पर टूट पड़ा। फिर तो आचार्य और पांचाल राजकुमार दोनों महाबली वीर इन्‍द्र और बलि की भाँति उस सेना को विक्षुब्‍ध करते हुए आपस में जूझने लगे। 

    सत्‍यपराक्रमी महाधनुर्धर सत्‍यजित ने अपने उत्तम अस्त्र का प्रदर्शन करते हुए तेज धार वाले एक बाण से द्रोणाचार्य को घायल कर दिया। फिर उनके सारथि पर सर्प विष एवं यमराज के समान भयंकर पाँच बाणों का प्रहार किया। उन बाणों की चोट से द्रोणाचार्य का सारथि मूर्च्छित हो गया। इसके बाद सत्यजित ने सहसा दस शीघ्रगामी बाणों द्वारा उनके घोड़ों को बींध डाला और कुपित होकर दोनों पृष्‍ठ-रक्षकों को भी दस-दस बाण मारे। तत्‍पश्चात शत्रुसूदन सत्यजित ने अत्‍यन्‍त कुपित हो सेना के प्रमुख भाग में मण्‍डलाकार विचरते हुए अपने बाण द्वारा द्रोणाचार्य के ध्वज को भी काट डाला। तब शत्रुओं का दमन करने वाले द्रोणाचार्य ने युद्धस्‍थल में उसका वह पराक्रम देख मन-ही-मन समयोचित कर्तव्‍य का चिन्‍तन किया। 

    तदनन्‍तर आचार्य द्रोण ने सत्‍यजित के बाण सहित धनुष को काटकर मर्मस्‍थल को विदीर्ण करने वाले दस पैने बाणों द्वारा उसे शीघ्र ही घायल कर दिया। राजन! धनुष कट जाने पर प्रतापी वीर सत्‍यजित ने शीघ्र ही दूसरा धनुष लेकर कंक की पँख से युक्‍त तीस बाणों द्वारा द्रोणाचार्य को गहरी चोट पहुँचायी। उस युद्धस्‍थल में द्रोणाचार्य को सत्‍यजित के बाणों के ग्रास बनते देख पांचाल वीर वृक ने भी सैकड़ों पैने बाण मारकर द्रोणाचार्य को अत्‍यन्‍त पीड़ित कर दिया। राजन! महारथी द्रोणाचार्य को समरभूमि में बाणों द्वारा आच्‍छादित होते देख समस्‍त पाण्‍डव सैनिक गर्जने और वस्‍त्र हिलाने लगे। नरेश्वर! बलवान वृक ने अत्‍यन्‍त कुपित होकर द्रोणाचार्य की छाती में साठ बाण मारे। वह अद्भुत-सी बात थी। इस प्रकार बाण-वर्षा से आच्‍छादित होने पर महान वेगशाली महारथी द्रोण ने क्रोध से आँखें फाड़कर देखते हुए अपना विशेष वेग प्रकट किया। 

    आचार्य द्रोण ने सत्यजित और वृक दोनों के धनुष काटकर छ: बाणों द्वारा उन्‍होंने सारथि और घोड़ों सहित वृक को मार डाला। इतने में ही अत्‍यन्‍त वेगशाली दूसरा धनुष लेकर सत्‍यजित ने अपने बाणों द्वारा घोड़े, सारथि और ध्वज सहित द्रोणाचार्य को बींध डाला। संग्राम में पांचाल राजकुमार सत्‍यजित से पीड़ित होकर द्रोणाचार्य उसके पराक्रम को न सह सके। इसलिये तुरंत ही उसके विनाश के लिये उन्‍होंने बाणों की वर्षा प्रारम्‍भ कर दी। द्रोण ने सत्‍यजित के घोड़ों, ध्‍वज, धनुष की मुष्टि तथा दोनों पार्श्‍व रक्षकों पर सहस्‍त्रों बाणों की वर्षा की। 

    इस प्रकार बारंबार धनुषों के काटे जाने पर भी उत्तम अस्त्रों का ज्ञाता पांचालवीर सत्यजित लाल घोड़ों वाले द्रोणाचार्य से युद्ध करता ही रहा। उस महासमर में सत्‍यजित को प्रचण्‍ड होते देख द्रोणाचार्य ने अर्धचन्‍द्राकार बाण के द्वारा उस महामनस्‍वी वीर का मस्‍तक काट डाला। उस महाबली महारथि पांचाल वीर के मारे जाने पर युधिष्ठिर द्रोणाचार्य से अत्‍यन्‍त भयभीत हो गये और वेगशाली घोड़ों से जुते हुए रथ के द्वारा युद्धस्‍थल से दूर चले गये। उस समय युधिष्ठिर की रक्षा के लिये पांचाल, केकय, मत्‍स्‍य, चेदि, कारुष और कोसल देशों के योद्धा द्रोणाचार्य को देखते ही उन पर टूट पड़े। 

    तब शत्रुसमूहों का नाश करने वाले द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर को पकड़ने के लिये उन समस्‍त सैनिकों का उसी प्रकार संहार कर डाला, जैसे आग रूई के ढेर को जला देती है। 

(सम्पूर्ण महाभारत (द्रोण पर्व) एकविंश अध्याय के श्लोक 25-45 का हिन्दी अनुवाद)

    उन समस्‍त सैनिकों को बार-बार बाणों की आग से दग्‍ध करते देख विराट के छोटे भाई शतानीक द्रोणाचार्य पर चढ़ आये। उन्‍होंने कारीगर के द्वारा स्‍वच्‍छ किये हुए सूर्य की किरणों के समान चमकीले छ: बाणों द्वारा सारथि और घोड़ों सहित द्रोणाचार्य को घायल करके बड़े जोर से गर्जना की। तत्‍पश्चात दुष्‍कर पराक्रम करने की इच्‍छा से क्रूरतापूर्ण कर्म करने के लिये तत्‍पर हो उन्‍होंने महारथी द्रोणाचार्य पर सौ बाणों की वर्षा की। तब द्रोणाचार्य ने वहाँ गर्जना करते हुए शतानीक के कुण्‍डल सहित मस्‍तक को क्षुर नामक बाण द्वारा तुरंत ही धड़ से काट गिराया। यह देख मत्‍स्‍य देश के सैनिक भाग खड़े हुए। 

   इस प्रकार भरद्वाजनन्‍दन द्रोणाचार्य ने मत्‍स्‍यदेशीय योद्धाओं को जीतकर चेदि, करूष, केकय, पांचाल, सृंजय तथा पाण्‍डव सैनिकों को भी बारंबार परास्‍त किया। जैसे प्रज्‍वलित अग्नि सारे वन को जला देती है, उसी प्रकार क्रोध में भरकर शत्रु की सेनाओं को दग्‍ध करते हुए सुवर्णमय रथ वाले वीर द्रोणाचार्य को देखकर सृंजयवंशी क्षत्रिय काँपने लगे। उत्तम धनुष लेकर शीघ्रतापूर्वक अस्त्र चलाने और शत्रुओं का वध करने वाले द्रोणाचार्य की प्रत्‍यंचा का शब्‍द सम्‍पूर्ण दिशाओं में सुनायी पड़ता था। शीघ्रतापूर्वक हाथ चलाने वाले द्रोणाचार्य के छोड़े हुए भयंकर सायक हाथियों, घोड़ों, पैदलों, रथियों और गजारोहियों को मथे डालते थे। जैसे हेमन्‍त ऋतु के अन्‍त में अत्‍यन्‍त गर्जना करता हुआ वायु युक्‍त मेघ पत्‍थरों की वर्षा करता है, उसी प्रकार द्रोणाचार्य शत्रुओं को भयभीत करते हुए उनके ऊपर बाणों की वर्षा करते थे। 

   बलवान, शूरवीर, महाधनुर्धर और मित्रों को अभय प्रदान करने वाले द्रोणाचार्य सारी सेना में हलचल मचाते हुए सम्‍पूर्ण दिशाओं में विचर रहे थे। जैसे बादलों में बिजली चमकती है, उसी प्रकार अमित तेजस्‍वी द्रोणाचार्य के सुवर्णभूषित धनुष को हम सम्‍पूर्ण दिशाओं में चमकता हुआ देखते थे। भरतनन्‍दन! युद्ध में तीव्र वेग से विचरते हुए आचार्य द्रोण के ध्वज में जो वेदी का चिन्‍ह बना हुआ था, वह हमें हिमालय के शिखर की भाँति शोभायमान दिखायी देता था। जैसे देव-दानववन्दित भगवान विष्‍णु दैत्‍यों की सेना में भयानक संहार मचाते हैं, उसी प्रकार द्रोणाचार्य ने पाण्डव सेना में भारी मारकाट मचा रखी थी। 

    उन शौर्यसम्‍पन्‍न, सत्‍यवादी, विद्वान, बलवान और सत्‍यपराक्रमी महानुभाव द्रोण ने उस युद्धस्‍थल में रक्त की भयंकर नदी बहा दी,जो प्रलयकाल की राशि के समान जान पड़ती थी। वह नदी भीरू पुरुषों को भयभीत करने वाली थी। उसमें कवच लहरें और ध्‍वजाएँ भँवरें थी। वह मनुष्‍यरूपी तटों को गिरा रही थी। हाथी और घोड़े उसके भीतर बड़े-बड़े़ ग्राहों के समान थे। तलवारें मछलियाँ थीं। उसे पार करना अत्‍यन्‍त कठिन था। वीरों की हड्डियाँ बालू और कंकड़-सी जान पड़ती थीं। वह देखने में बड़ी भयानक थी। ढोल और नगाड़े उसके भीतर कछुए-से प्रतीत होते थे। ढाल और कवच उसमें डोंगियों के समान तैर रहे थे। वह घोर नदी केशरूपी सेवार और घास से युक्‍त थी। बाण ही उसके प्रवाह थे। धनुष स्‍त्रोत के समान प्रतीत होते थे। कटी हुई भुजाएँ पानी के सर्पों के समान वहाँ भरी हुई थी। वह रणभूमि के भीतर तीव्र वेग से प्रवाहित हो रही थी। कौरव और सृंजय दोनों को वह नदी बहाये लिये जाती थी। मनुष्‍यों के मस्‍तक उसमें प्रस्‍तर-खण्‍ड का भ्रम उत्‍पन्‍न करते थे। शक्तियाँ मीन के समान थीं। गदाएँ नाक थीं। उष्‍णीष-वस्‍त्र फेन के तुल्‍य चमक रहे थे। बिखरी हुई आँतें सर्पाकार प्रतीत होती थीं। वीरों का अपहरण करने वाली वह उग्र नदी मांस तथा रक्‍तरूपी कीचड़ से भरी थी। हाथी उसके भीतर ग्राह थे। ध्‍वजाएँ वृक्ष के तुल्‍य थीं। वह नदी क्षत्रियों को अपने भीतर डुबोने वाली थी। वहाँ क्रूरता छा रही थी। शरीर ही उसमें उतरने के लिये घाट थे। योद्धागण मगर-जैसे जान पड़ते थे। उसको पार करना बहुत कठिन था। वह नदी लोगों को यमलोक में ले जाने वाली थी। मांसाहारी जन्‍तु उसके आस-पास डेरा डाले हुए थे। वहाँ कुत्‍ते और सियारों के झुंड जुटे हुए थे। उसके सब ओर महाभयंकर मांस-भक्षी पिशाच निवास करते थे।

(सम्पूर्ण महाभारत (द्रोण पर्व) एकविंश अध्याय के श्लोक 46-65 का हिन्दी अनुवाद)

   समस्‍त सेनाओं को दग्‍ध करने वाले यमराज के समान भयंकर उदार महारथी द्रोणाचार्य पर कुन्‍तीपुत्र युधिष्ठिर आदि सब वीर सब ओर से टूट पड़े। उन सभी शूरवीरों ने एक साथ आकर द्रोणाचार्य को सब ओर से उसी प्रकार घेर लिया, जैसे जगत को तपाने वाले भगवान सूर्य अपनी किरणों से घिरे रहते हैं। आपकी सेना के राजा और राजकुमारों ने अस्‍त्र-शस्‍त्र लेकर उन शौर्यसम्‍पन्‍न महाधनुर्धर द्रोणाचार्य को उनकी रक्षा के लिये सब ओर से घेर रखा था। 

    उस समय शिखण्‍डी ने झुकी हुई गाँठ वाले पाँच बाणों द्वारा द्रोणाचार्य को बींध डाला। तत्‍पश्चात क्षत्रवर्मा ने बीस, वसुदान ने पाँच, उत्तमौजा ने तीन, क्षत्रदेव ने सात, सात्‍यकि ने सौ, युधामन्यु ने आठ और युधिष्ठिर ने बारह बाणों द्वारा युद्धस्‍थल में द्रोणाचार्य को घायल कर दिया। धृष्टद्युम्न ने दस और चेकितान ने उन्‍हें तीन बाण मारे। 

   तदनन्‍तर सत्‍यप्रतिज्ञ द्रोण ने मद की धारा बहाने वाले गजराज की भाँति रथ-सेना को लाँघकर दृढ़सेन को मार गिराया। फिर निर्भय-से प्रहार करते हुए राजा क्षेम के पास पहुँचकर उन्‍हें नौ बाणों से बींध डाला। उन बाणों से मारे जाकर वे रथ से नीचे गिर गये। यद्यपि वे शत्रुसेना के भीतर घुसकर सम्‍पूर्ण दिशाओं में विचर रहे थे, तथापि वे ही दूसरों के रक्षक थे, स्‍वयं किसी प्रकार किसी के रक्षणीय नहीं हुए। 

   उन्‍होंने शिखण्‍डी को बारह और उत्तमौजा को बीस बाणों से घायल करके वसुदान को एक ही भल्ल से मारकर यमलोक भेज दिया।तत्‍पश्चात क्षत्रवर्मा को अस्‍सी और सुदक्षिण को छब्‍बीस बाणों से आहत करके क्षत्रदेव को भल्‍ल से घायलकर रथ की बैठक से नीचे गिरा दिया। युधामन्यु को चौसठ तथा सात्‍यकि को तीस बाणों से घायल करके सुवर्णमय रथ वाले द्रोणाचार्य राजा युधिष्ठिर की ओर दौड़े। तब राजाओं में श्रेष्‍ठ युधिष्ठिर गुरु के निकट से तीव्रगामी अश्वों द्वारा शीघ्र ही दूर चले गये और पांचाल देश का एक राजकुमार द्रोण का सामना करने के लिये आगे बढ़ आया। 

   परंतु द्रोण ने धनुष, घोड़े और सारथि सहित उसे क्षत-विक्षत कर दिया। उनके द्वारा मारा गया वह राजकुमार आकाश से उल्‍का की भाँति रथ से भूमि पर गिर पड़ा। पांचालों का यश बढ़ाने वाले उस राजकुमार के मारे जाने पर वहाँ 'द्रोण को मार डालो, द्रोण को मार डालो' इस प्रकार महान कोलाहल होने लगा। इस प्रकार अत्‍यन्‍त क्रोध में भरे हुए पांचाल, मत्‍स्‍य, केकय, सृंजय और पाण्‍डव योद्धाओं को बलवान द्रोणाचार्य ने क्षोभ में डाल दिया। कौरवों से घिरे हुए द्रोणाचार्य ने युद्ध में सात्‍यकि, चेकितान, धृष्टद्युम्न, शिखण्‍डी, वृद्धक्षेम के पुत्र, चित्रसेन कुमार, सेनाबिन्दु तथा सुवर्चा-इन सबको तथा अन्‍य बहुत-से विभिन्‍न देशों के राजाओं को परास्‍त कर दिया। 

    महाराज! आपके पुत्रों ने उस महासमर में विजय प्राप्‍त करके सब ओर भागते हुए पाण्‍डव-योद्धाओं को मारना आरम्‍भ किया। भरतनन्‍दन! इन्‍द्र के द्वारा मारे जाने वाले दानवों की भाँति महामना द्रोण की मार खाकर पांचाल, केकय और मत्‍स्‍य देश के सैनिक काँपने लगे। 

(इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत संशप्‍तकवधपर्व में द्रोणाचार्य का युद्धविषयक इक्‍कीसवाँ अध्‍याय पूरा हुआ)

सम्पूर्ण महाभारत  

द्रोण पर्व (संशप्तकवध पर्व)

बाईसवाँ अध्याय

(सम्पूर्ण महाभारत (द्रोण पर्व) द्वाविंश अध्याय के श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद)

“द्रोण के युद्ध के विषय में दुर्योधन और कर्ण का संवाद”

  धृतराष्‍ट्र ने पूछा ;– संजय! द्रोणाचार्य ने उस महासमर में जब पाण्‍डवों तथा समस्‍त पांचालों को मार भगाया, तब क्षत्रियों के लिये यश का विस्‍तार करने वाली, कायरों द्वारा न अपनायी जाने वाली और श्रेष्‍ठ पुरुषों द्वारा सेवित युद्धविषयक उत्तम बुद्धि का आश्रय लेकर क्‍या कोई दूसरा वीर भी उनके सामने आया? वहीं वीरों में उन्‍नतिशील और शौर्यसम्‍पन्‍न है, जो सैनिकों के भाग जाने पर भी स्‍वयं युद्धक्षेत्र में लौटकर आ जाय। अहो! क्‍या उस समय द्रोणाचार्य को डटा हुआ देखकर पाण्‍डवों में कोई भी वीर पुरुष नहीं था। 

   जँभाई लेते हुए व्‍याघ्र तथा मद की धारा बहाने वाले गजराज की भाँति पराक्रमी, युद्ध में प्राणों का विसर्जन करने के लिये उद्यत, कवच आदि से सुसज्जित, विचित्र रीति से युद्ध करने वाले, शत्रुओं का भय बढ़ाने वाले, कृतज्ञ, सत्‍यपरायण, दुर्योधन के हितैषी तथा शूरवीर, भरद्वाजनन्‍दन महाधनुर्धर पुरुषसिंह द्रोणाचार्य को युद्ध में डटा हुआ देख किन शूरवीरों ने लौटकर उनका सामना किया? संजय! यह वृतान्‍त मुझसे कहो। 

   संजय ने कहा ;- महाराज! कौरवों ने देखा कि पांचाल, पाण्‍डव, मत्‍स्‍य, सृंजय, चेदि और केकय देशीय योद्धा युद्ध में द्रोणाचार्य के बाणों से पीड़ित हो विचलित हो उठे हैं तथा जैसे समुद्र की महान जलराशि बहुत-से नावों को बहा ले जाती है, उसी प्रकार द्रोणाचार्य के धनुष से छूटकर शीघ्र ही प्राण हर लेने वाले बाण-समुदाय ने पाण्‍डव-सैनिकों को मार भगाया है। तब वे सिंहनाद एवं नाना प्रकार के रणवाद्यों का गम्‍भीर घोष करते हुए शत्रुओं के रथारोहियों, हाथीसवारों तथा पैदल सैनिकों को सब ओर से रोकने लगे। सेना के बीच में खड़े हो स्‍वजनों से घिरे हुए राजा दुर्योधन ने पाण्‍डव-सैनिकों की ओर देखते हुए अत्‍यन्‍त प्रसन्‍न होकर कर्ण से हँसते हुए से कहा। 

   दुर्योधन बोला ;- राधानन्‍दन! देखों, सुदृढ़ धनुष धारण करने वाले द्रोणाचार्य के बाणों से ये पांचाल सैनिक उसी प्रकार पीड़ित हो रहे हैं, जैसे सिंह वनवासी मृगों को त्रस्‍त कर देता है। मेरा तो ऐसा विश्वास है कि ये फिर कभी युद्ध की इच्‍छा नहीं करेंगे। जैसे वायु बड़े-बड़े़ वृक्षों को उखाड़ देती हैं, उसी प्रकार द्रोणाचार्य ने युद्ध से इनके पाँव उखाड़ दिये हैं। महामना द्रोण के सुवर्णमय पंखयुक्‍त बाणों द्वारा पीड़ित होकर ये इधर-उधर चक्‍कर काटते हुए एक ही मार्ग से नहीं भाग रहे हैं। कौरव सैनिकों तथा महामना द्रोण ने इनकी गति रोक दी है। जैसे दावानल से हाथी घिर जाते हैं, उसी प्रकार ये तथा अन्‍य पाण्‍डव-योद्धा कौरवों से घिर गये हैं।

   भ्रमरों के समान द्रोण के पैने बाणों से घायल होकर ये रणभूमि में पलायन करते हुए एक-दूसरे की आड़ में छिप रहे हैं। यह महाक्रोधी भीमसेन पाण्‍डव तथा सृंजयों से रहित हो मेरे योद्धाओं से घिर गया है। कर्ण! इस अवस्‍था में भीमसेन मुझे आनन्दित-सा कर रहा है। निश्चय ही आज जीवन और राज्‍य से निराश हो यह दुर्बुद्धि पाण्‍डुकुमार सारे संसार को द्रोणमय ही देख रहा होगा। 

   कर्ण बोला ;– राजन! यह महाबाहु भीमसेन जीते-जी कभी युद्ध नहीं छोड़ सकता है। पुरुषसिंह! तुम्‍हारे सैनिक जो ये सिंहनाद कर रहे हैं, इन्‍हें भीमसेन कभी नहीं सहेगा। पाण्‍डव शूरवीर, बलवान, अस्‍त्र-विद्या में निपुण तथा युद्ध में उन्‍मत्त होकर लड़ने वाले हैं। ये रणभूमि से कभी भाग नहीं सकते हैं। मेरा यही विश्वास है। 

(सम्पूर्ण महाभारत (द्रोण पर्व) द्वाविंश अध्याय के श्लोक 20-30 का हिन्दी अनुवाद)

    मैं ऐसा मानता हूँ कि पाण्‍डव तुम्‍हारे द्वारा दिये हुए विष, अग्निदाह और द्यूत के क्‍लेशों तथा वनवास को याद करके कभी युद्धभूमि नहीं छोड़ेंगे। अमित तेजस्‍वी महाबाहु कुन्‍तीपुत्र वृकोदर इधर की ओर लौटे हैं। वे बड़े-बड़े़ उदार महारथियों को चुन-चुन कर मारेंगे। वे खड्ग, धनुष, शक्ति, घोड़े, हाथी, मनुष्‍य एवं रथों द्वारा और लोहे के डंडे से समूह-‍के-समूह सैनिकों का संहार कर डालेंगे। देखों, भीमसेन के पीछे सात्‍यकि आदि महारथी तथा पांचाल, केकय, मत्स्य और विशेषत: पाण्‍डव योद्धा भी आ रहे हैं। क्रोध में भरे हुए भीमसेन से प्रेरित हो वे शूरवीर, बलवान पराक्रमी महारथी सैनिक हमारे सैनिकों को मारते आ रहे हैं। वे कुरुश्रेष्‍ठ पाण्‍डव भीमसेन की रक्षा के लिये द्रोणाचार्य को सब ओर से उसी प्रकार घेर रहे हैं, जैसे बादल सूर्य को ढक लेते हैं। 

     राजन! पाण्‍डवों के सहायक बन्‍धु श्रीकृष्‍ण हैं। वे उन्‍हें युद्धविषयक कर्तव्‍य का निर्देश किया करते हैं। वे लज्‍जाशील, शत्रुओं को मारने की कला में निपुण तथा पवित्र लक्षणों से युक्‍त हैं। रणभूमि में बहुत-से भूपाल उनके वश में आ चुके हैं। अत: भगवान नारायण जिनके अगुआ हैं, उन पाण्‍डवों की तुम अवहेलना न करो। ये सब एक रास्‍ते पर चल रहे हैं। यदि व्रत और नियम का पालन करने वाले द्रोणाचार्य की रक्षा न की गयी तो ये उन्‍हें उसी प्रकार पीड़ा देंगे, जैसे मरने की इच्‍छा वाले पतंग दीपक को बुझा देने की चेष्‍टा करते हैं। इसमे संदेह नहीं कि वे पाण्‍डव योद्धा अस्‍त्र-विद्या में निपुण तथा द्रोणाचार्य की गति को रोकने में समर्थ हैं। मुझे ऐसा जान पड़ता है कि इस समय भरद्वाजनन्‍दन द्रोणाचार्य पर बहुत बड़ा भार आ पहुँचा है। 

    अत: हम लोग शीघ्र वहीं चलें, जहाँ द्रोणाचार्य खड़े हैं। कही ऐसा न हो कि कुछ भेड़िये महान गजराज जैसे व्रतधारी द्रोणाचार्य का वध कर डालें। 

   संजय कहते हैं ;– महाराज! राधानन्‍दन कर्ण की बात सुनकर राजा दुर्योधन अपने भाइयों के साथ द्रोणाचार्य के रथ की ओर चल दिया। वहाँ अनेक प्रकार के रंग वाले उत्तम घोड़े से जुते हुए रथों द्वारा एकमात्र द्रोणाचार्य को मार डालने की इच्‍छा से लौटे हुए पाण्‍डव सैनिकों का महान कोलाहल प्रकट हो रहा था। 

(इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत संशप्‍तकवधपर्व में द्रोणाचार्य का युद्धविषयक बाईसवाँ अध्‍याय पूरा हुआ)

सम्पूर्ण महाभारत  

द्रोण पर्व (संशप्तकवध पर्व)

तेईसवाँ अध्याय

(सम्पूर्ण महाभारत (द्रोण पर्व) त्रयोविंश अध्याय के श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद)

“पाण्‍डव सेना के महारथियों के रथ, घोड़े, ध्‍वज तथा धनुषों का विवरण”

   धृतराष्‍ट्र ने पूछा ;– संजय! क्रोध में भरे हुए भीमसेन आदि जो योद्धा द्रोणाचार्य पर चढ़ाई कर रहे थे, उन सबके रथों के चिह्न कैसे थे? यह मुझे बताओ। 

    संजय कहते है ;– राजन! रीछ के समान रंग वाले घोड़ों से जुते हुए रथ पर बैठकर भीमसेन को आते देख चाँदी के समान श्‍वेत घोड़ों वाले शूरवीर सात्‍यकि भी लौट पड़े। सारंग के समान रंग के घोड़ों से युक्‍त युधामन्यु, स्‍वयं ही अपने घोड़ों को शीघ्रतापूर्वक हाँकता हुआ द्रोणाचार्य के रथ की ओर लौट पड़ा। वह दुर्जय वीर क्रोध में भरा हुआ था। पांचालराजकुमार धृष्टद्युम्न कबूतर के समान रंग वाले सुवर्णभूषित एवं अत्‍यन्‍त वेगशाली घोड़ों के द्वारा लौट आया। 

     नियमपूर्वक व्रत का पालन करने वाला क्षत्रधर्मा अपने पिता धृष्टद्युम्न की रक्षा और उनके अभीष्‍ट मनोरथ की उत्तम सिद्धि चाहता हुआ लाल रंग के घोड़ों से युक्‍त रथ पर आरूढ़ हो लौट आया।शिखण्‍डी का पुत्र क्षत्रदेव, कमलपत्र के समान रंग तथा निर्मल नेत्रों वाले सजे सजाये घोड़ों को स्‍वयं ही शीघ्रतापूर्वक हाँकता हुआ वहाँ आया। तोते की पाँख के समान रोम वाले दर्शनीय काम्बोज[6] देशीय घोड़े नकुल को वहन करते हुए बड़ी शीघ्रता के साथ आपके सैनिकों की ओर दौड़े। भरतनन्‍दन! दुर्धर्ष युद्ध का संकल्‍प लेकर क्रोध में भरे हुए उत्तमौजा को मेघ के समान श्‍याम वर्ण वाले घोड़े युद्धस्‍थल की ओर ले जा रहे थे। इसी प्रकार अस्‍त्र–शस्‍त्रों से सम्‍पन्‍न सहदेव को तीतर के समान चितकबरे रंग वाले तथा वायु के समान वेगशाली घोड़े उस भयंकर युद्ध में ले गये। हाथी के दाँत के समान सफेद रंग, काली पूँछ तथा वायु के समान तीव्र एवं भयंकर वेग वाले घोड़े नरश्रेष्‍ठ राजा युधिष्ठिर को रणक्षेत्र में ले गये। सोने के उत्‍तम आवरणों से ढके हुए, वायु के समान वेगशाली घोड़ों द्वारा सारी सेनाओं ने महाराज युधिष्ठिर को सब ओर से घेर रखा था।

     राजा युधिष्ठिर के पीछे पांचालराज द्रुपद चल रहे थे। उनका छत्र सोने का बना हुआ था। वे भी समस्‍त सैनिकों द्वारा सुरक्षित थे। 

     वे 'ललाम' और 'हरि' संज्ञा वाले घोड़ों से, जो सब प्रकार के शब्‍दों को सुनकर उन्‍हें सहन करने में समर्थ थे, सुशोभित हो रहे थे। उस युद्धस्‍थल में समस्‍त राजाओं के मध्‍य भाग में राजा द्रुपद निर्भय होकर द्रोणाचार्य का सामना करने के लिये आये। द्रुपद के पीछे सम्‍पूर्ण महारथियों के साथ राजा विराट शीघ्रतापूर्वक चल रहे थे। केकय राजकुमार, शिखण्‍डी तथा धृष्‍टकेतु– ये अपनी-अपनी सेनाओं से घिरकर मत्‍स्‍यराज विराट के पीछे चल रहे थे। शत्रुसूदन मत्‍स्‍यराज विराट के रथ को जो वहन करते हुए शोभा पा रहे थे, वे उत्तम घोड़े पाडर के फूलों के समान लाल और सफेद रंग वाले थे। हल्‍दी के समान पीले रंग वाले तथा सुवर्णमय माला धारण करने वाले वेगशाली घोड़े विराटराज के पुत्र को शीघ्रतापूर्वक रणभूमि की ओर ले जा रहे थे। पाँच भाई केकय-राजकुमार इन्‍द्रगोप (वीरबहूटी) के समान रंगवाले घोड़ों द्वारा रणभूमि में लौट रहे थे। उन पाँचों भाईयों की कान्ति सुवर्ण के समान थी तथा वे सब के सब लाल रंग की ध्‍वजा पताका धारण किये हुए थे। सुवर्ण की मालाओं से विभूषित वे सभी युद्धविशारद शूरवीर मेघों के समान बाणवर्षा करते हुए कवच आदि से सुसज्जित दिखायी देते थे। 

    अमित तेजस्‍वी पांचालराजकुमार शिखण्‍डी को तुम्‍बुरु के दिये हुए मिट्टी के कच्‍चे बर्तन के समान रंगवाले दिव्‍य अश्व वहन करते थे।

(सम्पूर्ण महाभारत (द्रोण पर्व) त्रयोविंश अध्याय के श्लोक 20-42 का हिन्दी अनुवाद)

   पांचालों के जो बारह हजार महारथी युद्ध में लड़ रहे थे, उनमे से छ: हजार इस समय शिखण्‍डी के पीछे चलते थे। आर्य! पुरुषसिंह शिशुपाल के पुत्र को सांरग के समान चितकबरे अश्व खेल करते हुए से वहन कर रहे थे। चेदि देश का श्रेष्‍ठ राजा अत्‍यन्‍त बलवान दुर्जय वीर धृष्‍टकेतु काम्‍बोजदेशीय चितकबरे घोड़ों द्वारा युद्धभूमि की ओर लौट रहा था। केकय देश के सुकुमार राजकुमार बृहत्क्षत्र को पुआल के धूएँ के समान उज्‍ज्वलनील वर्ण वाले सिन्‍धुदेशीय अच्‍छी जाति के घोड़ों ने शीघ्रतापूर्वक रणभूमि में पहुँचाया। 

    शिखण्‍डी के शूरवीर पुत्र ऋक्षदेव को पद्म के समान वर्ण और निर्मल नेत्र वाले बाह्लिक देश के सजे सजाये घोड़ों ने रणभूमि में पहुँचाया। 

सोने के आभूषणों तथा कवचों से सुशोभित रेशम के समान श्‍वेतपीत रोम वाले सहनशील घोड़ों ने शत्रुओं का दमन करने वाले सेनाबिन्दु को युद्धभूमि में पहुँचाया। क्रौंचवर्ण के उत्तम घोड़ों ने काशिराज अभिभू के सुकुमार एवं युवा पुत्र को, जो महारथी वीर था, युद्धभूमि में पहुँचाया। राजन! मन के समान वेगशाली तथा काली गर्दन वाले श्‍वेतवर्ण के घोड़े, जो सारथि की आज्ञा मानने वाले थे, राजकुमार प्रतिविन्ध्य को रण में ले गये। कुन्‍तीकुमार भीमसेन ने जिस सौम्‍यरूप वाले पुत्र सुतसोम को जन्‍म दिया था, उसे उड़द के फूल की भाँति सफेद और पीले रंग वाले घोड़ों ने रणक्षेत्र में पहुँचाया। कौरवों के उदयेन्‍दु नामक पुर (इन्‍द्रप्रस्‍थ) में सोमाभिषव के दिन सहस्‍त्रों चन्‍द्रमाओं के समान कान्तिमान वह बालक उत्‍पन्‍न हुआ था, इसलिये उनका नाम सुतसोम रखा गया था। नकुल के स्‍पृहणीय पुत्र शतानीक को शाल पुष्‍प के समान रक्‍त-पीत वर्ण वाले और बाल सूर्य के समान कान्तिमान अश्व रणभूमि में ले गये। 

    मोर की गर्दन के समान नीले रंग वाले घोड़ों ने सुनहरी रस्सियों आबद्ध हो द्रौपदीपुत्र सहदेवकुमार पुरुषसिंह श्रुतकर्मा को युद्धभूमि में पहुँचाया। इसी प्रकार युद्ध में अर्जुन की समानता करने वाले, शास्‍त्र-ज्ञान के भण्‍डार द्रौपदीनन्‍दन अर्जुनकुमार श्रुतकीर्ति को नीलकण्‍ठ की पाँख के समान रंग वाले उत्तम घोड़े रणक्षेत्र में ले गये। जिसे युद्ध में श्रीकृष्‍ण और अर्जुन से ड्योढ़ा बताया गया है, उस सुभद्राकुमार अभिमन्‍यु को रणक्षेत्र में कपिल वर्ण वाले घोड़े ले गये। आपके पुत्रों में से जो एक युयुत्सु पाण्‍डवों की शरण में जा चुके हैं, उन्‍हें पुआल के डंठल के समान रंग वाले, विशालकाय एवं बृहद अश्वों ने युद्धभूमि में पहुँचाया। उस भयंकर युद्ध में काले रंग के सजे-सजाये घोड़ों ने वृद्धक्षेम के वेगशाली पुत्र को युद्धभूमि में पहुँचाया।

    सुचित्त के पुत्र कुमारसत्‍यधृति को सुवर्णमय विचित्र कवचों से सुसज्जित और काले रंग के पैरों वाले, सारथि की इच्छा के अनुसार चलने वाले उत्तम घोड़ों ने युद्धक्षेत्र में उपस्थित किया। सुनहरी पीठ से युक्‍त, रेशम के समान रोम वाले, सुवर्णमालाधारी तथा सहनशक्ति से सम्‍पन्‍न घोड़ों ने श्रेणिमान को युद्ध में पहुँचाया। सुवर्णमाला धारण करने वाले शूरवीर और सुवर्ण रंग के पृष्‍ठभाग वाले सजे-सजाये घोड़े स्‍पृहणीय नरश्रेष्‍ठ काशिराज को रणभूमि में ले गये। अस्‍त्रों के ज्ञान में, धनुर्वेद में तथा ब्रह्मवेद में भी पारंगत पूर्वोक्‍त सत्‍यधृति को अरुण वर्ण के अश्वों ने युद्धक्षेत्र में उपस्थित किया। 

   जो पांचालों के सेनापति हैं, जिन्‍होंने द्रोणाचार्य को अपना भाग निश्चित कर रखा था, उन धृष्टद्युम्न को कबूतर के समान रंग वाले घोड़ों ने युद्धभूमि में पहुँचाया। उनके पीछे सुचित्त के पुत्र युद्धदुर्मद सत्‍यधृति, श्रेणिमान, वसुदान ने और काशिराज के पुत्र अभिभू चल रहे थे। ये सबके सब यम और कुबेर के समान पराक्रमी योद्धा वेगशाली, सुवर्णमालाओं से अलंकृत एवं सुशिक्षित, उत्तम काबुली घोड़ों द्वारा शत्रुओं को भयभीत करते हुए धृष्‍टद्युम्न का अनुसरण कर रहे थे।

(सम्पूर्ण महाभारत (द्रोण पर्व) त्रयोविंश अध्याय के श्लोक 43-63 का हिन्दी अनुवाद)

     इनके सिवा छ: हजार काम्‍बोजदेशीय प्रभद्रक नाम वाले योद्धा हथियार उठाये, भाँति-भाँति के श्रेष्‍ठ घोड़ों से जुते हुए सुनहरे रंग के रथ और ध्वजा से सम्‍पन्‍न हो धनुष फैलाये अपने बाण-समूहों द्वारा शत्रुओं को भय से कम्पित करते हुए सब समान रूप से मृत्यु को स्‍वीकार करने के लिये उद्यत हो धृष्टद्युम्न के पीछे-पीछे जा रहे थे।

    नेवले तथा रेशम के समान रंग वाले उत्तम अश्व, जो सुन्‍दर सुवर्ण की माला से विभूषित तथा प्रसन्न चित्त वाले थे, चेकितान को युद्धस्‍थल में ले गये। अर्जुन के मामा पुरूजित कुन्तिभोज इन्‍द्रधनुष के समान रंग वाले उत्तम श्रेणी के सुन्‍दर अश्वों द्वारा उस युद्धभूमि में आये। राजा रोचमान को ताराओं से चित्रित अन्‍तरिक्ष के समान चितकबरे घोड़ों ने युद्धभूमि में पहुँचाया। 

   जरासंध के पुत्र सहदेव को काले पैरों वाले चितकबरे श्रेष्‍ठ घोड़े, जो सोने की जाली से विभूषित थे, रणभूमि में ले गये। कमल के नाल की भाँति श्वेतवर्ण वाले और श्येन पक्षी के समान वेगशाली उत्तम एवं विचित्र अश्व सुदामा को लेकर रणक्षेत्र में उपस्थित हुए। 

   जिनके रंग खरगोश के समान और लोहित हैं तथा जिनके अंगों में श्‍वेतपीत रोमावलियाँ सुशोभित होती हैं, वे घोड़े उन गोपति पुत्र पांचालराजकुमार सिंहसेन को युद्धस्‍थल में ले गये थे। पांचालों में विख्‍यात जो पुरुषसिंह जनमेजय हैं, उनके उत्तम घोड़े सरसों के फूलों के समान पीले रंग के थे। उड़द के समान रंग वाले, स्‍वर्णमाला विभूषित, दधि के समान श्‍वेत पृष्‍ठभाग से युक्‍त और चितकबरे मुख वाले वेगशाली विशाल अश्व पांचालराजकुमार को संग्रामभूमि में शीघ्रतापूर्वक ले गये। शूर, सुन्‍दर मस्‍तक वाले, सरकण्‍डे के पोरूओं के समान श्‍वेत-गौर तथा कमल के केसर की भाँति कान्तिमान घोड़े दण्डधार को रणभूमि में ले गये। गदहे के समान मलिन एवं अरुण वर्ण वाले, पृष्‍ठभाग में चूहें के समान श्‍याम-मलिन कान्ति धारण करने वाले तथा वि‍नीत घोड़े व्याघ्रदत्त को युद्ध में उछलते-कूदते हुए-से ले गये। 

    काले मस्‍तक वाले, विचित्र वर्ण तथा विचित्र मालाओं से विभूषित घोड़े पांचालदेशीय पुरुषसिंह सुधन्वा को लेकर रणभूमि में उपस्थित हुए। इन्‍द्र के वज्र के समान जिनका स्‍पर्श अत्‍यन्‍त दु:सह है, जो वीरबहूटी के समान लाल रंग वाले हैं, जिनके शरीर में विचित्र चिह्न शोभा पाते हैं तथा जो देखने में भी अद्भुत हैं, वे घोड़े चित्रायुध को युद्धभूमि में ले गये। सुवर्ण की माला धारण किये चक्रवाक के उदर के समान कुछ-कुछ श्‍वेतवर्ण वाले घोड़े कोसलनरेश के पुत्र सुक्षत्र को युद्ध में ले गये। चितकबरे, विशालकाय, वश में किये हुए, सुवर्ण की माला से विभूषित तथा ऊँचे कद वाले सुन्‍दर अश्वों ने क्षेमकुमार सत्‍यधृति को युद्धभूमि में पहुँचाया। जिनके ध्वज , कवच और धनुष ये सब कुछ एक ही रंग के थे, वे राजा शुक्ल शुक्‍लवर्ण के अश्वों द्वारा युद्ध के मैदान में लौट आये। 

   समुद्रसेन के पुत्र, भयानक तेज से युक्‍त चन्द्रसेन को चन्द्रमा के समान सफेद रंग वाले समुद्री घोड़ों ने युद्धभूमि में पहुँचाया। नीलकमल के समान रंग वाले, सुवर्णमय आभूषणों से विभूषित विचित्र मालाओं वाले अश्व विचित्र रथ से युक्‍त राजा शैब्‍य को युद्धस्‍थल में ले गये। जिनके रंग केराव के फूल के समान हैं, जिनकी रोमराजि श्‍वेतलोहित वर्ण की है, ऐसे श्रेष्‍ठ घोड़ों ने रणदुर्मद रथसेन को संग्रामभूमि में पहुँचाना। जिन्‍हें सब मनुष्‍यों से अधिक शूरवीर नरेश कहा जाता है, जो चोरों और लुटेरों का नाश करने वाले हैं, उन समुद्रप्रान्‍त के अधिपति को तोते के समान रंग वाले घोड़े रणभूमि में ले गये।

(सम्पूर्ण महाभारत (द्रोण पर्व) त्रयोविंश अध्याय के श्लोक 64-83 का हिन्दी अनुवाद)

  जिनके माला, कवच, अस्‍त्र–शस्‍त्र और ध्वज सब कुछ विचित्र हैं, उन राजा चित्रायुध को पलाश के फूलों के समान लाल रंग वाले उत्तम घोड़े संग्राम में ले गये। जिनके ध्‍वज, कवच और धनुष सब एक रंग के थे, वे राजा नील अपने रथ में जुते हुए नील रंग के घोड़ों द्वारा रणक्षेत्र में उपस्थित हुए। जिनके रथ का आवरण, रथ तथा धनुष नाना प्रकार के रत्‍नों से जटित एवं अनेक रूप वाले थे, जिनके घोड़े, ध्‍वजा और पताकाएँ भी विचित्र प्रकार की थी, वे राजा चित्र चितकबरे घोड़ों द्वारा युद्ध के मैदान में आये। जिनके रंग कमलपत्र के समान थे, वे उत्‍तम घोड़े रोचमान के पुत्र हेमवर्ण को रणभूमि में ले गये। 

    युद्ध करने में समर्थ, कल्‍याणमय कार्य करने वाले, सरकण्‍डे के समान श्‍वेतगौर पीठ वाले, श्‍वेत अण्‍डकोशधारी तथा मुर्गी के अण्‍डे के समान सफेद घोड़े दण्‍डकेतु को युद्धस्‍थल में ले गये। भगवान श्रीकृष्‍ण के हाथों से जब युद्ध में पाण्‍ड्य देश के राजा तथा वर्तमान नरेश के पिता मारे गये, पाण्ड्य राजाधानी का फाटक तोड़-फोड दिया गया और सारे बन्‍धु-बान्‍धव भाग गये, उस समय जिसने भीष्‍म, द्रोण, परशुराम तथा कृपाचार्य से अस्‍त्र-विद्या सीखकर उसने रुक्मी ,कर्ण, अर्जुन और श्रीकृष्‍ण की समानता प्राप्‍त कर ली; फिर द्वारका को नष्‍ट करने और सारी पृथ्वी पर विजय पाने का संकल्‍प किया; यह देख विद्वान सुहृदों ने हित की कामना रखकर जिसे वैसा दु:साहस करने से रोक दिया और अब जो वैर भाव को छोड़कर अपने राज्‍य का शासन कर रहा है और जिसके रथ पर सागर के चिह्न से युक्‍त ध्‍वजा फहराती है, पराक्रमरूपी धन का आश्रय लेने वाले उस बलवान राजा पाण्‍ड्य ने अपने दिव्‍य धनुष की टंकार करते हुए वैदूर्यमणि की जाली से आच्‍छादित तथा चन्‍द्रकिरणों के समान श्‍वेत घोड़ों द्वारा द्रोणाचार्य पर धावा किया। वासक पुष्‍पों के समान रंग वाले घोड़े राजा पाण्‍ड्य के पीछे चलने वाले एक लाख चालीस हजार श्रेष्‍ठ रथों का भार वहन कर रहे थे।

    अनेक प्रकार के रंग-रूप से युक्‍त विभिन्‍न आकृति और मुख वाले घोड़े रथ के पहिये के चिह्न से युक्‍त ध्‍वजा वाले वीर घटोत्कच को रणभूमि में ले गये। जो एकत्र हुए सम्‍पूर्ण भरतवंशियों के मतों का परित्‍याग करके अपने सम्‍पूर्ण मनोरथों को छोड़कर केवल भक्तिभाव से युधिष्ठिर के पक्ष में चले गये, उन लाल नेत्र और विशाल भुजा वाले राजा वृहन्‍त को, जो सुवर्णमय रथ पर बैठे हुए थे, अरट्टदेश के महापराक्रमी, विशालकाय और सुनहरे रंग वाले घोड़े रणभूमि में ले गये। धर्म के ज्ञाता तथा सेना के मध्‍य-भाग मे विद्यमान नृपश्रेष्‍ठ युधिष्ठिर को चारों ओर से घेरकर सुवर्ण के समान रंग वाले श्रेष्‍ठ घोड़े उनके साथ-साथ चल रहे थे। अन्‍य भिन्‍न–भिन्‍न प्रकार के वर्णों से युक्‍त सुन्‍दर अश्वों का आश्रय ले प्रभद्रक नाम वाले देवताओं जैसे रूपवान बहुसंख्‍यक प्रभद्रकगण युद्ध के लिये लौट पड़े। 

   राजेन्‍द्र! भीमसेन सहित पूरी सावधानी से युद्ध के लिये उद्यत हुए ये सुवर्णमय ध्‍वज वाले राजा लोग इन्‍द्र सहित देवताओं के समान दृष्टिगोचर होते थे। वहाँ एकत्र हुए उन सब राजाओं की अपेक्षा धृष्टद्युम्न की अधिक शोभा हो रही थी और समस्‍त सेनाओं से ऊपर उठकर भरद्वाजनन्‍दन द्रोणाचार्य सुशोभित हो रहे थे। 

   महाराज! काले मृगचर्म और कमण्‍डलु के चिह्न से युक्‍त उनका सुवर्णमय सुन्‍दर ध्‍वज अत्‍यन्‍त शोभा पा रहा था। वैदूर्यमणिमय नेत्रों से सुशोभित महासिंह के चिह्न से युक्‍त भीमसेन की चमकीली ध्‍वजा फहराती हुई बड़ी शोभा पा रही थी। उसे मैंने देखा था। 

(सम्पूर्ण महाभारत (द्रोण पर्व) त्रयोविंश अध्याय के श्लोक 84-98 का हिन्दी अनुवाद)

   महातेजस्‍वी कुरुराज पाण्‍डुनन्‍दन युधिष्ठिर की सुवर्णमयी ध्वजा को मैंने चन्द्रमा तथा ग्रह गणों के चिह्न से सुशोभित देखा है। इस ध्‍वजा में नन्‍द-उपनन्‍द नामक दो विशाल एवं दिव्‍य मृदंग लगे हुए हैं। वे यन्‍त्र के द्वारा बिना बजाये बजते हैं और सुन्‍दर शब्‍द का विस्‍तार करके सबका हर्ष बढ़ाते हैं। नकुल की विशाल ध्‍वजा शरभ के चिह्न से युक्‍त तथा पृष्‍ठभाग में सुवर्णमयी है। हमने देखा, वह अत्‍यन्‍त भयंकर रूप से उनके रथ पर फहराती और सबको भयभीत करती थी। 

   सहदेव की ध्‍वजा में घटा और पताका के साथ चाँदी के बने सुन्‍दर हंस का चिह्न था। वह दुर्धर्ष ध्‍वज शत्रुओं का शोक बढ़ाने वाला था।क्रमश: धर्म, वायु, इन्‍द्र तथा महात्‍मा अश्विनीकुमारों की प्रतिमाएँ पाँचों द्रौपदीपुत्रों के ध्‍वजों की शोभा बढ़ाती थीं। राजन! कुमार अभिमन्‍यु के रथ का श्रेष्‍ठ ध्‍वज तपाये हुए सुवर्ण से निर्मित होने के कारण अत्‍यन्‍त प्रकाशमान था। उसमें सुवर्णमय शांर्गपक्षी का चिह्न था। 

   राजेन्‍द्र! राक्षस घटोत्कच की ध्‍वजा में गीध शोभा पाता था। पूर्वकाल में रावण के रथ की भाँति उसके रथ में भी इच्‍छानुसार चलने वाले घोड़े जुते हुए थे। राजन! धर्मराज युधिष्ठिर के पास महेन्‍द्र का दिया हुआ दिव्‍य धनुष शोभा पाता था। इसी प्रकार भीमसेन के पास वायु देवता का दिया हुआ दिव्‍य धनुष था। तीनों लोकों की रक्षा के लिये ब्रह्माजी ने जिस आयुध की सृष्टि की थी, वह कभी जीर्ण न होने वाला दिव्‍य गाण्डीव धनुष अर्जुन को प्राप्‍त हुआ था। नकुल को वैष्‍णव तथा सहदेव को अश्विनीकुमार-सम्‍बन्‍धी धनुष प्राप्‍त था तथा घटोत्कच के पास पौलस्‍त्‍य नामक भयानक दिव्‍य धनुष विद्यमान था। 

    भरतनन्‍दन! पाँचों द्रौपदीपुत्रों के दिव्‍य धनुषरत्‍न क्रमश: रुद्र, अग्नि, कुबेर, यम तथा भगवान शंकर से सम्‍बन्‍ध रखने वाले थे। रोहिणीनन्‍दन बलराम ने जो रुद्र सम्‍बन्‍धी श्रेष्‍ठ धनुष प्राप्‍त किया था, उसे उन्‍होंने संतुष्‍ट होकर महामना सुभद्राकुमार अभिमन्‍यु को दे दिया था। ये तथा और भी बहुत-सी राजाओं की सुवर्ण भूषित ध्‍वजाएँ वहाँ दिखायी देती थीं, जो शत्रुओं का शोक बढ़ाने वाली थीं। महाराज! उस समय वीर पुरुषों से भरी हुई द्रोणाचार्य की वह ध्‍वजाविशिष्‍ट सेना पट में अंकित किये हुए चित्र के समान प्रतीत होती थी। 

    राजन! उस समय युद्धस्‍थल में द्रोणाचार्य पर आक्रमण करने वाले वीरों के नाम और गोत्र उसी प्रकार सुनायी पड़ते थे, जैसे स्‍वयंवर में सुने जाते हैं। 

(इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत संशप्‍तकवधपर्व में अश्व और ध्‍वज आदि का वर्णन विषयक तेईसवाँ अध्‍याय पूरा हुआ)

सम्पूर्ण महाभारत  

द्रोण पर्व (संशप्तकवध पर्व)

चौबीसवाँ अध्याय

(सम्पूर्ण महाभारत (द्रोण पर्व) चतुर्विंश अध्याय के श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद)

“धृतराष्‍ट्र का अपना खेद प्रकाशित करते हुए युद्ध के समाचार पूछना”

   धृतराष्‍ट्र ने कहा ;– संजय! भीमसेन आदि जो-जो नरेश युद्ध में लौटकर आये थे, ये तो देवताओं की सेना को भी पीड़ित कर सकते हैं। निश्चय ही यह मनुष्‍य दैव से प्रेरित होता है। सबके पृथक-पृथक सम्‍पूर्ण मनोरथ दैव पर ही अवलम्बित दिखायी देते हैं। जो राजा युधिष्ठिर दीर्घकाल तक जटा और मृगचर्म धारण करके वन में रहे और कुछ काल तक लोगों से अज्ञात रहकर भी विचरे हैं, वे ही आज रणभूमि में विशाल सेना जुटाकर चढ़ आये हैं, इसमें मेरे तथा पुत्रों के दैवयोग के सिवा दूसरा क्‍या कारण हो सकता है? निश्चय ही मनुष्‍य भाग्‍य से युक्‍त होकर ही जन्‍म ग्रहण करता है। भाग्‍य उसे उस अवस्‍था में भी खींच ले जाता है, जिसमें वह स्‍वयं नहीं जाना चाहता। हमने द्यूत के संकट में डालकर युधिष्ठिर को भारी क्‍लेश पहुँचाया था, परंतु उन्‍होंने भाग्‍य से पुन: बहुतेरे सहायकों को प्राप्‍त कर लिया है।

    सूत संजय! आज से बहुत पहले की बात है, मूर्ख दुर्योधन ने मुझसे कहा था कि पिताजी! इस समय केकय, काशी, कोसल तथा चेदिदेश के लोग मेरी सहायता के लिये आ गये हैं। दूसरे वंगवासियों ने भी मेरा ही आश्रय लिया है। तात! इस भूमण्‍डल का बहुत बड़ा भाग मेरे साथ है, अर्जुन के साथ नहीं है। उसी विशाल सेनासमूह के मध्‍य सुरक्षित हुए द्रोणाचार्य को युद्धस्‍थल में धृष्टद्युम्न ने मार डाला, इसमें भाग्‍य के सिवा दूसरा क्‍या कारण हो सकता है?

   राजाओं के बीच में सदा युद्ध का अभिनन्‍दन करने वाले सम्‍पूर्ण अस्‍त्र-विद्या के पारंगत विद्वान महाबाहु द्रोणाचार्य को कैसे मृत्यु प्राप्‍त हुई? मुझ पर महान संकट आ पहुँचा है। मेरी बुद्धि पर अत्‍यन्‍त मोह छा गया है। मैं भीष्‍म और द्रोणाचार्य को मारा गया सुनकर जीवित नहीं रह सकता। तात! मुझे अपने पुत्रों के प्रति अत्‍यन्‍त आसक्‍त देखकर विदुर ने मुझसे जो कुछ कहा था, मेरे साथ दुर्योधन को वह सब प्राप्‍त हो रहा है। यदि मैं दुर्योधन को त्‍यागकर शेष पुत्रों की रक्षा करना चाहूँ तो यह अत्‍यन्‍त निष्‍ठुरता का कार्य अवश्‍य होगा, परंतु मेरे सारे पुत्रों की तथा अन्‍य सब लोगों की भी मृत्‍यु नहीं होगी। 

    जो मनुष्‍य धर्म का परित्‍याग करके अर्थपरायण हो जाता है, वह इस लोक से भ्रष्‍ट हो जाता है और नीच गति को प्राप्‍त होता है। संजय! आज इस राष्‍ट्र का उत्‍साह भंग हो गया। प्रधान के मारे जाने से अब मुझे किसी का जीवन शेष रहता नहीं दिखायी देता। हमलोग सदा जिन सर्वसमर्थ पुरुषसिंहों का आश्रय लेकर जीवन धारण करते थे, उन धुरंधर वीरों के इस लोक से चले जाने पर अब हमारी सेना का कोई भी सैनिक कैसे जीवित बच सकता है। 

    संजय! वह युद्ध जिस प्रकार हुआ था, सब साफ-साफ मुझसे बताओ। कौन-कौन वीर युद्ध करते थे, कौन किसको परास्‍त करते थे और कौन-कौन से क्षुद्र सैनिक भय के कारण युद्ध के मैदान से भाग गये थे। धनंजय अर्जुन के विषय में भी मुझे बताओ। रथियों में श्रेष्‍ठ अर्जुन ने क्‍या–क्‍या किया था। मुझे उनसे तथा शत्रु स्‍वरूप भीमसेन से अधिक भय लगता है। 

   संजय! पाण्‍डव सैनिकों के पुन: युद्धभूमि में लौट आने पर मेरी शेष सेना के साथ जिस प्रकार उनका अत्‍यन्‍त भयंकर संग्राम हुआ था, वह कहो। तात! पाण्‍डव सैनिकों के लौटने पर तुम लोगों के मन की कैसी दशा हुई? मेरे पुत्रों की सेना में जो शूरवीर थे, उनमें से किन लोगों ने शत्रुपक्ष के किन वीरों को रोका था? 

(इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत संशप्‍तकवधपर्व में धृतराष्‍ट्रवाक्‍यविषयक चौबीसवाँ अध्‍याय पूरा हुआ)

सम्पूर्ण महाभारत  

द्रोण पर्व (संशप्तकवध पर्व)

पच्चीसवाँ अध्याय

(सम्पूर्ण महाभारत (द्रोण पर्व) पंचविंश अध्याय के श्लोक 1-24 का हिन्दी अनुवाद)

“कौरव पाण्‍डव सैनिकों के द्वन्‍द्व युद्ध”

   संजय कहते हैं ;- महाराज! पाण्‍डव-सैनिकों के लौटने पर जैसे बादलों से सूर्य ढक जाते हैं, उसी प्रकार उनके बाणों से द्रोणाचार्य आच्‍छादित होने लगे। यह देखकर हम लोगों ने उनके साथ बड़ा भयंकर संग्राम किया। उन सैनिकों द्वारा उड़ायी हुई तीव्र धूल ने आपकी सारी सेना को ढक दिया। फिर तो हमारी दृष्टि का मार्ग अवरुद्ध हो गया और हमने समझ लिया कि द्रोण मारे गये। उन महाधनुर्धर शूरवीरों को क्रूर कर्म करने के लिये उत्‍सुक देख दुर्योधन ने तुरंत ही अपनी सेना को इस प्रकार आज्ञा दी। 

   'नरेश्वरों! तुम सब लोग अपनी शक्ति, उत्‍साह और बल के अनुसार यथोचित उपाय द्वारा पाण्‍डवों की सेना को रोको।' तब आपके पुत्र दुर्मर्षण ने भीमसेन को अपने पास ही देखकर उनके प्राण लेने की इच्‍छा से बाणों की वर्षा करते हुए उन पर आक्रमण किया। उसने क्रोध में भरी हुई मृत्यु के समान युद्धस्‍थल में बाणों द्वारा भीमसेन को ढक दिया। साथ ही भीमसेन ने भी अपने बाणों द्वारा उसे गहरी चोट पहुँचायी। इस प्रकार उन दोनों में महाभयंकर युद्ध होने लगा। 

    अपने स्‍वामी राजा दुर्योधन की आज्ञा पाकर वे प्रहार करने में कुशल बुद्धिमान शूरवीर राज्‍य को और मृत्‍यु के भय को छोड़कर युद्धस्‍थल में शत्रुओं का सामना करने लगे। प्रजानाथ! द्रोण को अपने वश में करने की इच्‍छा से आगे बढ़ते हुए संग्राम में शोभा पाने वाले शूरवीर सात्‍यकि को कृतवर्मा ने रोक दिया।

   तब क्रोध में भरे हुए सात्‍यकि ने कुपित हुए कृतवर्मा को अपने बाण-समूहों द्वारा आगे बढ़ने से रोका और कृतवर्मा ने सात्‍यकि को। ठीक उसी तरह, जैसे एक मतवाला हाथी दूसरे मतवाले गजराज को रोक देता है। भयंकर धनुष धारण करने वाले सिंधुराज जयद्रथ ने महाधनुर्धर क्षत्रवर्मा को अपने तीखे बाणों द्वारा प्रयत्‍नपूर्वक द्रोणाचार्य की ओर आने से रोक दिया। 

   क्षत्रवर्मा ने कुपित हो सिंधुराज जयद्र‍थ के ध्वज और धनुष काटकर दस नाराचों द्वारा उसके सभी मर्म-स्‍थानों में चोट पहुँचायी। तब सिंधुराज दूसरा धनुष लेकर सिद्धहस्‍त पुरुष की भाँति सम्‍पूर्णत: लोहे के बने हुए बाणों द्वारा रणक्षेत्र में क्षत्रवर्मा को घायल कर दिया। पाण्‍डुनन्‍दन युधिष्ठिर के हित के लिये प्रयत्‍न करने वाले भरतवंशी महारथी युयुत्सु को सुबाहु ने प्रयत्‍नपूर्वक द्रोणाचार्य की ओर आने से रोक दिया। 

    तब युयुत्‍सु ने प्रहार करते हुए सुबाहु की परिघ के समान मोटी एवं धनुष बाणों से युक्‍त दोनों भुजाओं को अपने तीखे और पानीदार दो छूरों द्वारा काट गिराया। पाण्‍डवक्षेष्‍ठ धर्मात्‍मा राजा युधिष्ठिर को मद्रराज शल्‍य ने उसी प्रकार रोक दिया, जैसे क्षुब्‍ध महासागर को तट की भूमि रोक देती है। धर्मराज युधिष्ठिर ने शल्‍य पर बहुत-से मर्मभेदी बाणों की वर्षा की। तब मद्रराज भी चौंसठ बाणों द्वारा युधिष्ठिर को घायल करके जोर-जोर से गर्जना करने लगे। तब ज्‍येष्‍ठ पाण्‍डव युधिष्ठिर ने दो छुरों द्वारा गर्जना करते हुए राजा शल्‍य के ध्वज और धनुष को काट डाला। यह देख सब लोग हर्ष से कोलाहल कर उठे।इसी प्रकार अपनी सेना सहित राजा बाह्लिक ने सैनिकों के साथ धावा करते हुए राजा द्रुपद को अपने बाणों द्वारा रोक दिया। 

    जैसे मद की धारा बहाने वाले दो विशाल गजयूथप‍तियों में लड़ाई होती है, उसी प्रकार सेनासहित उन दोनो वृद्ध नरेशों में बड़ा भयंकर युद्ध होने लगा। अवन्‍ती के राजकुमार विन्‍द और अनुविन्‍द ने अपनी सेनाओं को साथ लेकर विशाल वाहिनी सहित मत्‍स्‍यराज विराट पर उसी प्रकार धावा किया, जैसे पूर्वकाल में अग्नि और इन्‍द्र ने राजा बलि पर आक्रमण किया था। उस समय मत्‍स्‍यदेशीय सैनिकों का केकयदेशीय योद्धाओं के साथ देवासुर-संग्राम के समान अत्‍यन्‍त घमासान युद्ध हुआ। उसमें हाथी, घोड़े और रथ सभी निर्भय होकर एक-दूसरे से लड़ रहे थे। 

   नकुल का पुत्र शतानीक बाण-समूहों की वर्षा करता हुआ द्रोणाचार्य की ओर बढ़ रहा था। उस समय भूतकर्मा सभापति ने उसे द्रोण की ओर आने से रोक दिया। तदनन्‍तर नकुल के पुत्र ने तीन तीखे भल्‍लों द्वारा युद्ध में भूतकर्मा की बाहु तथा मस्‍तक काट डाले। पराक्रमी वीर सुतसोम बाण-समूहों की बौछार करता हुआ द्रोणाचार्य के सम्‍मुख आ रहा था। उसे विविंशति ने रो‍क दिया। 

(सम्पूर्ण महाभारत (द्रोण पर्व) पंचविंश अध्याय के श्लोक 25-49 का हिन्दी अनुवाद)

  तब सुतसोम ने अत्‍यन्‍त कुपित हो अपने चाचा विविंशति को सीधे जाने वाले बाणों द्वारा घायल कर दिया और स्‍वयं एक वीर पुरुष की भाँति कवच बाँधे सामने खड़ा रहा। तदनन्‍तर भीमरथ ने छ: तीखे लोहमय शीघ्रगामी बाणों द्वारा सारथि सहित शाल्‍व को यमलोक पहुँचा दिया। महाराज! श्रुतकर्मा मोर के समान रंग वाले घोड़ों पर आ रहा था। उस आपके पौत्र श्रुतकर्मा को चित्रसेन के पुत्र ने रोका।आपके दोनों दुर्जय पौत्र एक-दूसरे के वध की इच्‍छा रखकर अपने पितृगणों का मनोरथ सिद्ध करने के लिये अच्‍छी तरह युद्ध करने लगे। उस महासमर में प्रतिविन्‍ध्य को द्रोणाचार्य के सामने खड़ा देख पिता का सम्‍मान करते हुए अश्वत्‍थामा ने बाणों द्वारा रोक दिया। 

    जिसके ध्वज में सिंह के पूँछ का चिह्न था और जो पिता की इष्‍ट सिद्धि के लिये खड़ा था, उस क्रोध में भरे हुए अश्रत्‍थामा को प्रतिविन्‍ध्‍य ने अपने पैने बाणों द्वारा बींध डाला। नरश्रेष्‍ठ! तब द्रोण पुत्र भी द्रौपदीकुमार प्रतिविन्‍ध्‍य पर बाणों की वर्षा करने लगा, मानो किसान बीज बोने के समय पर खेत में बीज डाल रहा हो। तदनन्‍तर अर्जुनपुत्र द्रौपदीकुमार महारथी श्रुतकीर्ति को द्रोणाचार्य के सामने जाते देख दु:शासन के पुत्र ने रोका।

   तब अर्जुन के समान पराक्रमी अर्जुनकुमार तीन अत्‍यन्‍त तीखे भल्‍लों द्वारा दु:शासनपुत्र के धनुष, ध्‍वज और सारथि के टुकड़े-टुकड़े करके द्रोणाचार्य के समीप जा पहुँचा। राजन! जो दोनों सेनाओं में सबसे अधिक शूरवीर माना जाता था, डाकू और लुटेरों को मारने वाले उस समुद्री प्रान्‍तों के अधिपति को दुर्योधनपुत्र लक्ष्‍मण ने रोका। 

   भारत! तब वह लक्ष्‍मण के धनुष और ध्‍वज चिह्न को काटकर उसके ऊपर बाण-समूहों की वर्षा करता हुआ बहुत शोभा पाने लगा। परम बुद्धिमान नवयुवक विकर्ण ने युवावस्‍था से सम्‍पन्‍न द्रुपदकुमार शिखण्‍डी को युद्ध में आगे बढ़ने से रोका। तब शिखण्‍डी ने अपने बाण-समूह से विकर्ण को आच्‍छादित कर दिया। आपका बलवान पुत्र उस सायक-जाल को छिन्‍न–भिन्‍न करके बड़ी शोभा पाने लगा। अंगद ने वीर उत्तमौजा को अपने और द्रोणाचार्य के सामने आते देख युद्धस्‍थल में अपने बाण-समुदाय की वर्षा से रोक दिया। 

   उन दोनों पुरुषसिंहों में बड़ा भयंकर युद्ध छिड़ गया। वह संग्राम समस्‍त सैनिकों की तथा उन दोनों की भी प्रसन्‍नता को बढ़ा रहा था।महाधनुर्धर बलवान दुर्मुख ने द्रोणाचार्य के सामने जाते हुए वीर पुरुजित को वत्‍सदन्‍तों के प्रहार द्वारा रोक दिया। तब पुरुजित ने एक नाराच द्वारा दुर्मुख पर उसकी दोनों भौहों के मध्‍यभाग में प्रहार किया। उस समय दुर्मुख का मुख मृणालयुक्‍त कमल के समान सुशोभित हुआ। कर्ण ने लाल रंग की ध्वजा से सुशोभित पाँचों भाई केकयराजकुमारों को द्रोणाचार्य के सम्‍मुख जाते देख उन्‍हें बाणों की वर्षा से रोक दिया। तब वे अत्‍यन्‍त संतप्‍त हो कर्ण पर बाणों की झड़ी लगाने लगे और कर्ण ने भी अपने बाणों के समूह से उन्‍हें बार-बार आच्‍छादित कर दिया। कर्ण तथा वे पाँचों राजकुमार एक-दूसरे के बरसाये हुए बाण-समूहों से व्‍याप्‍त एवं आच्‍छादित होकर घोड़े, सारथि, ध्‍वज तथा रथ सहित अदृश्‍य हो गये थे। राजन! आपके तीन पुत्र दुर्जय, जय और विजय ने नील, काश्य तथा जयत्‍सेन इन तीनों को रोक दिया। उन सब में भयंकर युद्ध छिड़ गया,जो सिंह, व्‍याघ्र और तेंदुओं का रीछों, भैसों तथा साँड़ों के साथ होने वाले युद्ध के समान दर्शकों के हर्ष बढ़ाने वाला था। 

   क्षेमधूर्ति और वृहन्‍त– ये दोनों भाई युद्ध में द्रोणाचार्य के सामने जाते हुए सात्‍यकि को अपने पैने बाणों द्वारा घायल करने लगे। जैसे वन में दो मदस्‍त्रावी गजराजों के साथ एक सिंह का युद्ध हो रहा हो, उसी प्रकार उन दोनों भाइयों तथा सात्‍यकि का युद्ध अत्‍यन्‍त अद्भुत सा हो रहा था। युद्ध का अभिनन्‍दन करने वाले राजा अम्‍बष्‍ठ को क्रोध में भरे हुए चेदिराज ने बाणों की वर्षा करते हुए द्रोणाचार्य के पास आने से रोक दिया। 

(सम्पूर्ण महाभारत (द्रोण पर्व) पंचविंश अध्याय के श्लोक 50-65 का हिन्दी अनुवाद)

    तब अम्‍बष्‍ठ ने हड्डियों को छेद देने वाली शलाका द्वारा चेदिराज को विदीर्ण कर दिया। वे बाण सहित धनुष को त्‍यागकर रथ से पृथ्वी पर गिर पड़े। शरद्वान के पुत्र श्रेष्‍ठ कृपाचार्य ने क्रोध में भरे हुए वृष्णिवंशी वार्धक्षेमि को अपने बाणों द्वारा द्रोणाचार्य के पास आने से रोका।कृपाचार्य और वृष्णिवंशी वीर वार्धक्षेमि विचित्र रीति से युद्ध करने वाले थे। जिन लोगों ने उन दोनों को युद्ध करते हुए देखा, उनका मन उसी में आसक्‍त हो गया। उन्‍हें दूसरी किसी क्रिया का भान नहीं रहा। 

   सोमदत्तकुमार भूरिश्रवा ने द्रोणाचार्य का यश बढ़ाते हुए उन पर आक्रमण करने वाले आलस्‍य रहित राजा मणिमान को रोक दिया। तब उन्‍होंने तुरंत ही भूरिश्रवा के विचित्र धनुष, ध्‍वजा-पताका, सारथि और छत्र को रथ से काट गिराया। यह देख यूप के चिह्न से सुशोभित ध्‍वज वाले शत्रुसूदन भूरिश्रवा ने तुरंत ही रथ से कूदकर लंबी तलवार से घोड़े, सारथि, ध्‍वज एवं रथ सहित राजा मणिमान को काट डाला। 

   राजन! तत्‍पश्चात भूरिश्रवा अपने रथ पर बैठकर स्‍वयं ही घोड़ों को काबू में रखता हुआ दूसरा धनुष हाथ में ले पांडव सेना का संहार करने लगा। जैसे इन्‍द्र असुरों पर आक्रमण करते हैं, उसी प्रकार द्रोणाचार्य पर धावा करने वाले दुर्जय वीर पाण्‍ड्य को शक्तिशाली वीर वृषसेन ने अपने सायक-समूह से रोक दिया। तत्‍पश्चात गदा, परिघ, खड्ग, पट्टिश, लोहे के घन, पत्‍थर, कडंगर, भुशुण्डि, प्रास, तोमर, सायक, मुसल, मुद्रर, चक्र, भिन्दिपाल, फरसा, धूल, हवा, अग्नि, जल, भस्‍म, मिट्टी के ढेले, तिनके तथा वृक्षों से कौरव सेना को पीड़ा देता, शत्रुओं को अंग-भंग करता, तोड़ता-फोड़ता, मारता-भगाता, फेंकता एवं सारी सेना को भयभीत करता हुआ घटोत्कच वहाँ द्रोणाचार्य को पकड़ने के लिये आया। 

    उस समय उस राक्षस को क्रोध में भरे हुए अलम्बुष नामक राक्षस ने ही अनेकानेक युद्धों में उपयोगी नाना प्रकार के अस्त्र-शस्‍त्रों द्वारा गहरी चोट पहुँचायी। उन दोनों श्रेष्‍ठ राक्षस यूथपतियों में वैसा ही युद्ध हुआ, जैसा कि पूर्वकाल में शम्‍बरासुर तथा देवराज इन्‍द्र में हुआ था। 

   महाराज! भरद्वाजनन्‍दन द्रोणाचार्य ने देखा कि पांडव सेनापति महारथी धृष्टद्युम्न दूसरे शत्रुओं को लाँघकर अपने मंत्रियों तथा सेवकों सहित मेरी ही ओर आ रहा है और शत्रु सेना पर बाणों का भारी जाल-सा बिखेर रहा है, तब उन्‍होंने स्‍वयं आगे बढ़कर उसे रोका। राजन! इसी प्रकार अन्‍य सब राजा भी अपने बल और साधनों के अनुसार शत्रुओं के साथ भिड़ गये। उनकी संख्‍या बहुत होने के कारण सबके नामों का उल्‍लेख नहीं किया गया है। घोड़ों से घोड़े, हाथियों से हाथी, पैदलों से पैदल तथा बड़े-बड़े रथों से महान रथ जूझ रहे थे। उस युद्ध में पुरुष शिरोमणि वीर अपने कुल और पराक्रम के अनुरूप एक-दूसरे से भिड़कर आर्यजनोचित कर्म कर रहे थे।

    महाराज! आपका कल्‍याण हो। इस प्रकार आपके और पांडवों के उस भयंकर संग्राम में रथ, हाथी, घोड़ों और पैदल सैनिकों के सैकड़ों द्वन्द्व आपस में युद्ध कर रहे थे। द्रोणाचार्य के वध और संरक्षण में लगे हुए पांडव तथा कौरव सैनिकों में जैसा संग्राम हुआ था, ऐसा पहले कभी न तो देखा गया है और न ही सुना गया है। प्रभो! वहाँ भिन्‍न-भिन्‍न दलों में बहुत-से विस्‍तृत युद्ध दृष्टिगोचर हो रहे थे, जिन्‍हें देखकर दर्शक कहते थे 'यह घोर युद्ध हो रहा है' यह विचित्र संग्राम दिखायी देता है और यहाँ अत्‍यन्‍त भयंकर मार-काट हो रही है।

(इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत संशप्‍तकवधपर्व में द्वन्द्वयुद्ध विषयक पच्चीसवाँ अध्‍याय पूरा हुआ)


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