सम्पूर्ण महाभारत (भीष्म पर्व) के एक सौ ग्यारहवें अध्याय से एक सौ पंद्रहवें अध्याय तक (From the 111 chapter to the 115 chapter of the entire Mahabharata (Bhishma Parva))

 

सम्पूर्ण महाभारत  

भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)

एक सौ ग्यारहवाँ अध्याय

(सम्पूर्ण महाभारत (भीष्म पर्व) एकादशाधिकशततम अध्याय के श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद)

“कौरव-पाण्डव पक्ष के प्रमुख महारथियों के द्वन्द्वयुद्ध का वर्णन”

      संजय कहते हैं ;- राजन्! युद्धस्थल में कवचधारी सात्यकि को भीष्म से युद्ध करने के लिये उद्यत देख महाधनुर्धर राक्षस अलम्बुष ने आकर उन्हें रोका। राजन्! भरतनन्दन! यह देख सात्यकि ने अत्यन्त कुपित हो उस रणक्षेत्र में राक्षस अलम्बुष को हँसते हुए से नौ बाण मारे। राजेन्द्र! तब उस राक्षस ने भी अत्यन्त कुपित होकर मधुवंशी सात्यकि को नौ बाणों से पीड़ित किया। तब शत्रुवीरों का संहार करने वाले मधुवंशी सात्यकि का क्रोध बहुत बढ़ गया और समरभूमि में उन्होंने राक्षस पर बाण समूहों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। तदनन्तर राक्षस ने सत्यपराक्रमी महाबाहु सात्यकि को तीखे सायकों से बींध डाला और सिंह के समान गर्जना की। उस समय राक्षस के द्वारा रणक्षेत्र में रोके जाने और अत्यन्त घायल होने पर भी मधुवंशी तेजस्वी सात्यकि हँसने और गर्जना करने लगे। तब क्रोध में भरे हुए भगदत्त ने पैने बाणों द्वारा मधुवंशी सात्यकि को समरभूमि में उसी प्रकार पीड़ित किया, जैसे महावत अंकुशों द्वारा महान गजराज को पीड़ा देता है। तब रथियों में श्रेष्ठ सात्यकि ने युद्ध में उस राक्षस को छोड़कर प्राग्ज्योतिषपुरनरेश भगदत्त पर झुकी हुई गाँठ वाले बहुत से बाण चलाये।

      यह देख प्राग्ज्योतिषपुरनरेश भगदत्त सात्यकि के विशाल धनुष को एक सिद्धहस्त योद्धा की भाँति सौ धार वाले भल्ल के द्वारा काट डाला। तब शत्रुवीरों का हनन करने वाले सात्यकि ने दूसरा वेगवान धनुष लेकर पैंने बाणों द्वारा युद्ध में क्रुद्व हुए भगदत्त को बींध डाला। इस प्रकार अत्यन्त घायल होने पर महाधनुर्धर भगदत्त अपने मुँह के दोनों कोने चाटने लगे। फिर उन्होंने उस महायुद्ध में कनक और वैदूर्य मणियों से विभूषित लोहे की बनी हुई सुदृढ़ एवं यमदण्ड के समान भयंकर शक्ति चलायी। उनके बाहुबल से प्रेरित होकर समरभूमि में सहसा अपने ऊपर गिरती हुई उस शक्ति के सात्यकि ने बाणों द्वारा दो टुकड़े कर दिये। तब वह शक्ति प्रभाहीन हुई बहुत बड़ी उल्का के समान सहसा भूमि पर गिर पड़ी। प्रजानाथ! भगदत्त की शक्ति को नष्ट हुई देख आपके पुत्र ने विशाल रथ सेना के साथ आकर सात्यकि को रोका।

     वृष्णिवंशी महारथी सात्यकि को रथ सेना से घिरा हुआ देख दुर्योधन ने अत्यन्त कुपित होकर अपने समस्त भाइयों से कहा,

दुर्योधन ने कहा ;- कौरवों! तुम ऐसा प्रयत्न करो, जिससे इस समरांगण में आये हुए सात्यकि हमारे इस महान रथ समुदाय से जीवित न निकलने पावें। सात्यकि के मारे जाने पर मैं पाण्डवों की विशाल सेना को मरी हुई ही मानता हूँ। दुर्योधन की इस बात को मानकर कौरव महारथियों ने रणभूमि में भीष्म का सामना करने के लिये उद्यत हुए सात्यकि से युद्ध आरम्भ किया। इसी प्रकार भीष्म का वध करने के लिए उद्यत होकर आते हुए अर्जुनकुमार अभिमन्यु को बलवान काम्बोजराज ने युद्ध के मैदान में आगे बढ़ने से रोक दिया। राजन्! नरेश्वर! काम्बोजराज ने झुकी हुई गाँठ वाले अनेक बाणों द्वारा अभिमन्यु को घायल करके पुनः चौसठ बाणों से मारकर उन्हें गहरी चोट पहुँचायी। तदनन्तर समरांगण में भीष्म के जीवन की रक्षा चाहने वाले काम्बोजराज सुदक्षिण ने अभिमन्यु को पुनः पाँच बाण मारे और नौ बाणों द्वारा उनके सारथि को भी घायल कर दिया।

(सम्पूर्ण महाभारत (भीष्म पर्व) दशाधिकशततम अध्याय के श्लोक 21-40 का हिन्दी अनुवाद)

      जब शत्रुसूदन शिखण्डी ने गंगानन्दन भीष्म पर धावा किया था, उस समय उन दोनों (अभिमन्यु और सुदक्षिण) के संघर्ष में वहाँ बड़ा भारी युद्ध आरम्भ हो गया। बूढ़े राजा महारथी विराट और द्रुपद दुर्योधन की उस विशाल सेना को रोकते हुए अत्यन्त क्रोध में भरकर युद्धस्थल में भीष्म पर चढ़ आये। तब रथियों में श्रेष्ठ अश्वत्थामा रणभूमि में कुपित होकर आया। भारत! फिर अश्वत्थामा का विराट और द्रुपद के साथ भारी युद्ध छिड़ गया। शत्रुओं को संताप देने वाले नरेश! राजा विराट ने संग्राम में शोभा पाने वाले प्रयत्नशील एवं महाधनुर्धर अश्वत्थामा को भल्ल नामक दस बाणों में घायल किया। उस समय द्रुपद ने भी तीन तीखे बाणों द्वारा अश्वत्थामा को घायल कर दिया।

      इस प्रकार प्रहार करते हुए उन दोनों महाबली नरेशों को अश्वत्थामा ने अनेक बाणों द्वारा बींध डाला। विराट और द्रुपद दोनों वीर भीष्म का वध करने के लिए उद्यत थे। राजन्! वहाँ उन दोनों बूढ़े नरेशों का हमने अद्भुत एवं महान पराक्रम देखा कि वे युद्ध में अश्वत्थामा के भयंकर बाणों का निवारण करते जा रहे थे। इसी प्रकार भीष्म पर चढ़ाई करने वाले सहदेव को शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य ने सामने आकर रोका, मानो वन में किसी मतवाले हाथी पर मदोन्मत्त गजराज ने आक्रमण किया हो। शूरवीर कृपाचार्य ने समरभूमि में महारथी माद्रीकुमार सहदेव को सुवर्णभूषित सत्तर बाणों से तुरंत घायल कर दिया। तब माद्रीकुमार सहदेव ने भी अपने सायकों द्वारा उनके धनुष के दो टुकड़े कर दिये और धनुष कट जाने पर उन्हें नौ बाणों से घायल कर दिया।

      तदनन्तर भीष्म के जीवन की रक्षा चाहने वाले कृपाचार्य ने समरांगण में भार सहन करने में समर्थ दूसरा धनुष लेकर अत्यन्त हर्ष के साथ सहदेव की छाती में क्रोधपूर्वक दस तीखे बाण मारे। राजन्! इसी प्रकार पाण्डुकुमार सहदेव ने भी कुपित हो भीष्म के वध की इच्छा से अमर्षशील कृपाचार्य की छाती में अपने बाणों द्वारा प्रहार किया। उन दोनों का वह युद्ध अत्यन्त घोर एवं भयंकर हो चला। दूसरी ओर क्रोध में भरे हुए शत्रुसंतापी विकर्ण ने युद्ध के मैदान में महाबली भीष्म की रक्षा में तत्पर हो साठ बाणों द्वारा नकुल को घायल कर दिया। आपके बुद्धिमान पुत्र विकर्ण द्वारा अत्यन्त घायल होकर नकुल ने भी सतहत्तर बाणों से विकर्ण को क्षत-विक्षत कर दिया। जैसे गोशाला में दो साँड़ आपस में लड़ते हो, उसी प्रकार शत्रुओं को संताप देने वाले पुरुषसिंह वीर विकर्ण और नकुल भीष्म की रक्षा के लिये एक दूसरे पर घातक प्रहार कर रहे थे।

      उसी समय पराक्रमी दुर्मुख ने समरभूमि में भीष्म की रक्षा के लिये राक्षस घटोत्कच पर आक्रमण किया, जो युद्ध के मैदान में आपकी सेना का संहार करता हुआ आगे बढ़ रहा था। राजन्! उस समय शत्रुओं को संताप देने वाले दुर्मुख को क्रोध में भरे हुए हिडिम्बाकुमारी ने झुकी हुई गाँठ वाले बाण से उसकी छाती में चोट पहुँचायी। तब वीर दुर्मुख ने हर्षपूर्वक गर्जना करते हुए अपने तीखी नोक वाले बाणों द्वारा भीमसेन के पुत्र घटोत्कच को युद्ध के मुहाने पर साठ बाणों से बींध डाला। इसी प्रकार भीष्म के वध की इच्छा से आते हुए रथियों में श्रेष्ठ धृष्टद्युम्न को महारथी कृतवर्मा ने रोक दिया।

(सम्पूर्ण महाभारत (भीष्म पर्व) दशाधिकशततम अध्याय के श्लोक 41-58 का हिन्दी अनुवाद)

     कृतवर्मा ने द्रुपदकुमार को लोहे के बने हुए पाँच बाणों से बींधकर फिर तुरन्त ही पचास बाणों से घायल किया और कहा- 'खड़ा रह, खड़ा रह'। इस प्रकार महाबाहु कृतवर्मा ने महारथी धृष्टद्युम्न को गहरी चोट पहुँचायी। राजन्! तब धृष्टद्युम्न ने भी कंकपत्र विभूषित सीधे जाने वाले तीखे एवं पैने नौ बाणों से कृतवर्मा-को क्षत-विक्षत कर दिया। उस समय भीष्म जी के निमित्त उस महान संग्राम मे वृत्रासुर और इन्द्र के समान उन दोनों वीरों का घोर युद्ध होने लगा, जिसमें वे एक दूसरे से आगे बढ़ जाने के प्रयत्न में लगे थे। इसी तरह महारथी भीष्म की ओर आते हुए भीमसेन पर भूरिश्रवा ने तुरन्त आक्रमण किया और कहा- 'खड़ा रह, खड़ा रह'।

     तदनन्तर सोमदत्तकुमार ने युद्ध स्थल मे सुवर्णमय पंख से युक्त अत्यन्त तीखे नाराच द्वारा भीमसेन की छाती में प्रहार किया। नृपश्रेष्ठ! छाती मे लगे हुए उस बाण से प्रतापी भीमसेन वैसे ही सुशोभित हुए, जैसे पूर्वकाल में कार्तिकेय की शक्ति से आविद्ध होने पर क्रौंच पर्वत की शौभा हुई थी। क्रोध में भरे हुए वे दोनों नरश्रेष्ठ युद्ध में एक दूसरे पर लौहार के द्वारा माँजकर साफ किये हुए सूर्य के समान तेजस्वी बाणों का प्रहार कर रहे थे। भीमसेन भीष्म के वध की इच्छा रखकर महारथी भूरिश्रवा पर चोट करते थे और भूरिश्रवा भीष्म की विजय चाहता हुआ पाण्डुकुमार भीमसेन पर प्रहार करता था। वे दोनों युद्ध में एक दूसरे के अस्त्रों का प्रतीकार करते हुए लड़ रहे थे।

     दूसरी ओर कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर को विशाल सेना के साथ भीष्म के सम्मुख आते देख द्रोणाचार्य ने रोक दिया; वहाँ उन दोनों पुरुषसिंहों में घोर युद्ध हुआ। राजन्! द्रोणाचार्य के रथ की घबराहट मेघ की गर्जना के समान जान पड़ती थी। आर्य! उसे सुनकर प्रभद्रक वीर काँप उठे। महाराज! उस युद्धस्थल में पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर की वह विशाल सेना द्रोण के द्वारा जब रोक दी गयी, तब प्रयत्न करने पर भी वह एक पग भी आगे न बढ़ सकी। जनेश्वर! दूसरी ओर भीष्म के प्रति प्रयत्नपूर्वक आक्रमण करने वाले क्रोध में भरे हुए चेकितान को रणभूमि में आपके पुत्र चित्रसेन ने रोक दिया।

     पराक्रमी चित्रसेन भीष्म की रक्षा के लिये पराक्रम दिखा रहा था। भारत! उसने पूरी शक्ति लगाकर चेकितान के साथ युद्ध किया। इसी प्रकार चेकितान ने भी चित्रसेन की गति रोक दी। उन दोनों की मुठभेड़ में वहाँ महान युद्ध होने लगा। भरतनन्दन! वहाँ बार बार रोके जाने पर भी अर्जुन ने आपके पुत्र को युद्ध से विमुख करके आपकी सेना को रौंद डाला। भारत! उस समय दुःशासन भी यह निश्चय करके कि ये किसी प्रकार हमारे भीष्म को मार न सकें, पूरी शक्ति लगाकर अर्जुन को रोकने का प्रयत्न करता रहा। राजन्! अर्जुन ने भी समर में दुःशासन को अपने बाणों से बहुत घायल किया। सीधे जाने वाले अर्जुन के बाणों से आपके पुत्र के बार बार घायल होने पर पार्थ के उस पराक्रम को देखकर आपकी सारी सेना व्यथित हो उठी। अमित तेजस्वी अर्जुन ने उसे बार बार पीड़ित किया। भरतनन्दन! उस संग्राम में आपके पुत्र की सारी सेना को जहाँ-तहाँ श्रेष्ठ रथियों ने बाणों से विद्ध करके मथ डाला था।

(इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवध पर्व में द्वन्द्वयुद्ध विषयक एक सौ ग्यारहवाँ अध्याय पूरा हुआ)

सम्पूर्ण महाभारत  

भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)

एक सौ बारहवाँ अध्याय

(सम्पूर्ण महाभारत (भीष्म पर्व) द्वादशाधिकशततम अध्याय के श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद)

“द्रोणाचार्य का अश्वत्थामा को अशुभ शकुनों की सूचना देते हुए उसे भीष्म की रक्षा के लिये धृष्टद्युम्न से युद्ध करने का आदेश देना”

     संजय कहते हैं ;- राजन्! कौरव और पांडव पक्ष के प्रमुख महारथियों के मध्य युद्ध होने लगा, तब तदनन्तर महाधनुर्धर, मत वाले हाथी के समान पराक्रमी, वीर, नरश्रेष्ठ, महाबली तथा शुभाशुभ निमित्तों के ज्ञाता एवं अद्भुत शक्तिशाली द्रोणाचार्य मतवाले हाथियों की गति को कुण्ठित कर देने वाले विशाल धनुष को हाथ में लेकर उसे खींचने और विपक्षी सेना को भगाने लगे। उन्होंने पाण्डवों की सेना में प्रवेश करते समय सब ओर बुरे निमित्त (शकुन) देखकर शत्रुसेना को संताप देते हुए पुत्र अश्वत्थामा से इस प्रकार कहा,

    द्रोणाचार्य ने कहा ;- 'तात! यही वह दिन है, जबकि महाबली अर्जुन समर भूमि में भीष्म को मार डालने की इच्छा से महान प्रयत्न करेंगे। मेरे बाण तरकस से उछले पड़ते हैं, धनुष फड़क उठता है, अस्त्र स्वयं ही धनुष से संयुक्त हो जाते हैं और मेरे मन में क्रूरकर्म करने का संकल्प हो रहा है। सम्पूर्ण दिशाओं में पशु और पक्षी अशान्तिपूर्ण भयंकर बोली बोल रहे है। गीध नीचे आकर कौरव सेना में छिप रहे है। सूर्य की प्रभा मन्द सी पड़ गयी है। सम्पूर्ण दिशाएँ लाल हो रही है। पृथ्वी सब ओर से कोलाहलपूर्ण, व्यथित और कम्पित सी हो रही है। कंक, गीध और बगले बार बार बोल रहे है। अमगंलमयी घोर रूपवाली गीदड़ियाँ महान भय की सूचना देती हुई सूर्य की और मुँह करके भयानक बोली बोला करती हैं और उनका मुँह प्रज्वलित सा जान पड़ता है। सूर्यमण्डल मध्यभाग से बड़ी-बड़ी उल्काएँ गिरी हैं।

    कबन्धयुक्त परिघ सूर्य को चारों ओर से घेरकर स्थित हैं। चन्द्रमा और सूर्य के चारों ओर भयंकर घेरा पड़ने लगा है, जो क्षत्रियों के शरीर का विनाश करने वाले घोर भय की सूचना दे रहा है। कौरवराज धृतराष्ट्र के देवालयों की देवमूर्तियाँ हिलती, हँसती, नाचती तथा रोती जान पड़ती हैं। ग्रहों ने सूर्य की वामावर्त परिक्रमा करके उन्हें अशुभ लक्षणों का सूचक बना दिया है, भगवान् चन्द्रमा अपने दोनों कोनों के सिरे नीचे करके उदित हुए हैं। राजाओं के शरीरों को मैं श्रीहीन देख रहा हूँ। दुर्योधन की सेनाओं में जो लोग कवच धारण करके स्थित है, उनकी शोभा नहीं हो रही हैं। दोनों ही सेनाओं में चारों ओर पाँचजन्य शंग का गम्भीर घोष और गाण्डीव धनुष की टंकार ध्वनि सुनायी देती हैं। इससे यह निश्चय जान पड़़ता है कि अर्जुन युद्धस्थल में उत्तम अस्त्रोंं का आश्रय ले दूसरे योद्धाओं को दूर हटाकर रणभूमि में पितामह के पास पहुँच जायेंगे।

     महाबाहो! भीष्म और अर्जुन के युद्ध का विचार करके मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं और मन शिथिल-सा होता जा रहा है। शठता के पूरे पण्डित उस पापात्मा पांचाल राजकुमार शिखण्डी को यहाँ रण में आगे करके कुंतीकुमार अर्जुन भीष्म से युद्ध करने के लिये गये हैं। भीष्म ने पहले ही यह कह दिया था कि मैं शिखण्डी को नहीं मारूँगा क्योंकि विधाता ने इसे स्त्री ही बनाया था। फिर भाग्यवश यह पुरुष हो गया। इसके सिवा द्रुपद का यह महाबली पुत्र अपनी ध्वजा में अमंगलसूचक चिह्न धारण करता है। अतः इस अमांगलिक शिखण्डी पर गगानंदन भीष्म कभी प्रहार नहीं करेंगे। इन सब बातों पर जब मैं विचार करता हूँ, तब मेरी बुद्धि अत्यन्त शिथिल हो जाती है। आज अर्जुन ने पूरी तैयारी के साथ रणभूमि में कुरुकुल के वृद्ध पुरुष भीष्म जी पर धावा किया है।

(सम्पूर्ण महाभारत (भीष्म पर्व) द्वादशाधिकशततम अध्याय के श्लोक 21-42 का हिन्दी अनुवाद)

     युधिष्ठिर का क्रोध करना, भीष्म और अर्जुन का संघर्ष होना और मेरा अपने विविध अस्त्रों के प्रयोग के लिये उद्योग करना- ये तीनों बातें निश्चय ही प्रजाजनों के अमंगल की सूचना देने वाली हैं। पाण्डुनन्दन अर्जुन मनस्वी, बलवान, शूरवीर, अस्त्र-विधा के पण्डित, शीघ्रतापूर्वक पराक्रम प्रकट करने वाले, दूर तक का लक्ष्य बेंधने वाले, सुदृढ़ बाणों का संग्रह रखने वाले तथा शुभाशुभ निमित्तों के ज्ञाता हैं। इन्द्र सहित सम्पूर्ण देवता भी उन्हें युद्ध में पराजित नहीं कर सकते। वे बलवान, बुद्धिमान, क्लेशों पर विजय पाने वाले और योद्धाओं में श्रेष्ठ हैं। उन्हेंं युद्ध में सदा विजय प्राप्त होती है। पाण्डुनन्दन अर्जुन के अस्त्र बड़े भयंकर हैं। उत्तम व्रत का पालन करने वाले पुत्र! इसलिये तुम उनका रास्ता छोड़कर शीघ्र भीष्म जी की रक्षा के लिये चले जाओ। देखों, इस महाघोर संग्राम में आज यह कैसा महान जन संहार हो रहा है?

      शूरवीरों के स्वर्णजटित, शुभ एवं महान् कवच अर्जुन के झुकी हुई गाँठ वाले बाणों द्वारा विदीर्ण किये जा रहे हैं। ध्वज के अग्रभाग, तोमर और धनुषों के टुकड़े टुकड़े किये जा रहे हैं। चमकीले प्रास, सुवर्णजटित होने के कारण सुनहरी कान्ति से प्रकाशित होने वाली तीखी शक्तियों और हाथियों पर फहराती हुई वैजयन्ती पताकाएँ क्रोध में भरे हुए किरीटधारी अर्जुन के द्वारा छिन्न भिन्न की जा रही है। बेटा! आश्रित रहकर जीविका चलाने वाले पुरुषों के लिये यह अपने प्राणों की रक्षा का अवसर नहीं है। तुम स्वर्ग को सामने रखकर यश और विजय की प्राप्ति के लिये भीष्म जी के पास जाओ। यह युद्ध एक महाघोर और अत्यन्त दुर्गम नदी के समान है। उसमें रथ, हाथी और घोड़े भँवर है, कपिध्वज अर्जुन रथरूपी नौका के द्वारा इसे पार कर रहे है। यहाँ केवल कुन्तीकुमार युधिष्ठिर में ही ब्राह्मणों के प्रति भक्ति, इन्द्रियसंयम, दान, तप और श्रेष्ठ सदाचार आदि सद्गुण दिखायी देते हैं, जिनके फलस्वरूप उन्हें अर्जुन, बलवान भीम तथा माद्रीकुमार पाण्डुपुत्र नकुल और सहदेव जैसे भाई मिले हैं एवं वृष्णिनन्दन भगवान वासुदेव उनके रक्षक और सहायक बनकर सदा साथ रहते हैं।

     इस दुर्बुद्धि दुर्योधन का शरीर उन्हीं की तपस्या से दग्ध प्राय हो गया है और इसकी भारती सेना को उन्हीं की क्रोधाग्नि जलाकर भस्य किये देती है। देखो भगवान वासुदेव की शरण में रहने वाले ये अर्जुन कौरवों की सम्पूर्ण सेनाओं को सब ओर से विदीर्ण करते हुए इधर ही आते दिखायी देते हैं। जैसे तिमि नामक महामत्स्य उत्ताल तरंगों से युक्त महासागर के जल को मथ डालता है, उसी प्रकार किरीटधारी अर्जुन के द्वारा मथित हो यह कौरव सेना विक्षुब्ध होती दिखायी देती है। सेना के प्रमुख भाग में हाहाकार और किलकिलाहट के शब्द सुनायी देते हैं। तुम द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न का सामना करने के लिये जाओ और मैं युधिष्ठिर पर चढ़ाई करूँगा। अमित तेजस्वी राजा युधिष्ठिर व्यूह के भीतर प्रवेश करने के समान बहुत कठिन है; क्योंकि उनके चारों और अतिरथी योद्धा खड़े हैं।

      सात्यकि, अभिमन्यु, धृष्टद्युम्न, भीमसेन और नकुल, सहदेव, नरेश्वर राजा युधिष्ठिर की रक्षा कर रहे हैं। यह देखो, भगवान विष्णु के समान श्याम और महान शाल वृक्ष के समान ऊँचा अभिमन्यु द्वितीय अर्जुन के समान सेना के आगे आगे चल रहा है। तुम अपने उत्तम अस्त्रों को धारण करो और विशाल धनुष लेकर द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न तथा भीमसेन के साथ युद्ध करो। अपना प्यारा पुत्र नित्य निरन्तर जीवित रहे, यह कौन नहीं चाहता है तथापि क्षत्रिय धर्म पर दृष्टि रखकर मैं तुम्हें इस कार्य में नियुक्त कर रहा हूँ। तात! ये भीष्म रणक्षेत्र में यमराज और वरुण के समान पराक्रम दिखाते हुए पाण्डवों की विशाल सेना को अत्यन्त दग्ध कर रहे है। संजय कहते हैं- महाराज! अपने पुत्र को इस प्रकार आदेश देकर प्रतापी द्रोणाचार्य इस महायुद्ध में धर्मराज के साथ युद्ध करने लगे।

(इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवधपर्व में द्रोण और अश्वत्थामा का संवादविषयक एक सौ बारहवाँ अध्याय पूरा हुआ)

सम्पूर्ण महाभारत  

भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)

एक सौ तेरहवाँ अध्याय

(सम्पूर्ण महाभारत (भीष्म पर्व) त्रयोदशाधिकशततम अध्याय के श्लोक 1-24 का हिन्दी अनुवाद)

“कौरव पक्ष के दस प्रमुख महारथियों के साथ अकेले घोर युद्ध करते हुए भीमसेन का अद्भुत पराक्रम”

    संजय कहते हैं ;- राजन! भगदत, कृपाचार्य, शल्य, कृतवर्मा, अवन्ती के राजकुमार विन्द और अनुविन्द, सिन्धुराज जयद्रथ, चित्रसेन, विकर्ण तथा दुमर्षण- ये दस योद्धा भीमसेन के साथ युद्ध कर रहे थे। नरेश्वर! इनके साथ अनेक देशों से आयी हुई विशाल सेना मौजूद थी। ये समरभूमि में भीष्म के महान यश की रक्षा करना चाहते थे। शल्‍य ने नौ बाणों से भीमसेन को गहरी चोट पहुँचायी। फिर कृतवर्मा ने तीन और कृपाचार्य उन्हें नौ बाण मारे। आर्य! फिर लगे हाथ चित्रसेन, विकर्ण और भगदत्त ने भी दस-दस बाण मारकर भीमसेन को घायल कर दिया। फिर सिन्धुराज जयद्रथ ने तीन, अवन्ती के बिन्द और अनुबिन्द ने पांच-पांच तथा दुमर्षण ने बीस तीखे बाणों द्वारा पाण्डुनन्दन भीमसेन को चोट पहुँचायी।

      महाराज! तब शत्रुवीरों का नाश करने वाले पाण्डुकुमार वीर भीमसेन ने सम्पूर्ण जगत के उन समस्त राजाओं, प्रमुख वीरों तथा आपके महारथी पुत्रों को पृथक-पृथक बाण मारकर समरांगण में घायल कर दिया। भारत! भीमसेन ने शल्य को सात और कृतवर्मा को आठ बाणों से बींध डाला। फिर कृपाचार्य के बाण सहित धनुष को बीच से ही काट दिया। धनुष कट जाने पर उन्होंने पुनः सात बाणों से कृपाचार्य को घायल किया। फिर विन्द और अनुविन्द को तीन-तीन बाण मारे। तत्पश्चात् दुमर्षण को बीस, चित्रसेन को पांच, विकर्ण को दस तथा जयद्रथ को पांच बाणों से बींधकर भीमसेन ने बड़े हर्ष के साथ सिंहनाद किया और जयद्रथ को पुनः तीन बाणों से बींध डाला। जैसे महान गजराज अंकुशों से पीड़ित होने पर चिंघाड़ उठता है, उसी प्रकार उन दस बाणों से घायल होने पर शूरवीर भीमसेन ने युद्ध के मुहाने पर सिंह के समान गर्जना की।

     महाराज! तदनन्तर क्रोध में भरे हुए प्रतापी भीमसेन ने रणक्षेत्र में कृपाचार्य को अनेक बाणों द्वारा घायल किया। इसके बाद प्रलयकालीन यमराज के समान तेजस्वी भीमसेन ने तीन बाणों द्वारा सिन्धुराज जयद्रथ के घोड़ों तथा सारथी को यमलोक भेज दिया। तब उस अश्वहीन रथ से तुरन्त ही कूदकर महारथी जयद्रथ ने युद्धस्थल में भीमसेन के ऊपर बहुत-से तीखे बाण चलाये। माननीय भरतश्रेष्ठ! उस समय भीमसेन दो भल्ल मारकर महामना सिन्धुराज के धनुष को बीच से ही काट दिया। राजन! धनुष के कटने तथा घोड़ों और सारथि के मारे जाने पर रथहीन हुआ जयद्रथ तुरंत ही चित्रसेन के रथ पर जा बैठा। आर्य! वहाँ पाण्डुनन्दन भीमसेन ने रणक्षेत्र में यह अद्भुत कर्म किया कि सब महारथियों को बाणों से घायल करके रोक दिया और सब लोगों के देखते-देखते सिन्धुराज को रथहीन कर दिया। उस समय राजा शल्य भीमसेन के उस पराक्रम को न सह सके। उन्होंने लोहार के मांजे हुए पैने बाणों का संधान करके समरभूमि में भीमसेन को बींध डाला और कहा- ‘खड़ा रह, खड़ा रह’। तत्पश्चात् कृपाचार्य, कृतवर्मा, पराक्रमी भगदत्त, अवन्ती के विन्द और अनुविन्द, चित्रसेन, दुमर्षण, विकर्ण और पराक्रमी सिन्धुराज जयद्रथ शत्रुओं का दमन करने वाले इन वीरों ने राजा शल्य की रक्षा के लिये भीमसेन को तुरंत ही घायल कर दिया। फिर भीमसेन भी उन सबको पांच-पांच बाणों से घायल करके तुरंत ही बदला लिया। इसके बाद उन्होंने शल्य को पहले सत्तर और फिर दस बाणों से बींध डाला।

(सम्पूर्ण महाभारत (भीष्म पर्व) त्रयोदशाधिकशततम अध्याय के श्लोक 25-44 का हिन्दी अनुवाद)

    यह देख शल्य ने भीमसेन को पहले नौ बाणों से विदीर्ण करके फिर पांच बाणों द्वारा घायल किया। साथ ही एक भल्ल के द्वारा उनके सारथी के भी मर्म स्थानों में अधिक चोट पहुँचायी। उस समय प्रतापी भीमसेन ने अपने सारथी विशोक को अत्यन्त क्षत-विक्षत हुआ देख तीन बाणों से मद्रराज शल्य की भुजाओं तथा छाती में प्रहार किया। भगदत्त, वीरवर, कृतवर्मा तथा अन्य महाधनुर्धर वीरों को उन्होंने तीन-तीन सीधे जाने वाले सायकों द्वारा समर भूमि में मारा और सिंह के समान गर्जना की। तब उन सभी महाधनुर्धरों ने एक साथ प्रयत्न करके तीखे अग्र भाग वाले तीन-तीन बाणों द्वारा युद्ध कुशल पाण्डुपुत्र भीम के मर्मस्थानों में गहरी चोट पहुँचायी। उनके द्वारा अत्यन्त घायल होने पर भी महाधनुर्धर भीमसेन बादलों की बरसायी हुई जल-धाराओं से पर्वत की भाँति तनिक भी व्यथित एवं विचलित नहीं हुए।

      राजन! तब क्रोध में भरे हुए पाण्डवों के महारथी महायशस्वी भीमसेन ने मद्रराज शल्य को तीन और कृपाचार्य को नौ बाणों द्वारा सब ओर से अत्यन्त घायल करके प्राग्ज्योतिष नरेश भगदत्त को सैकड़ों बाणों द्वारा समरभूमि में बींध डाला। तत्पश्चात सिद्धहस्त पुरुष की भाँति भीमसेन ने अत्यन्त तीखे क्षुरप्र के द्वारा महामना कृतवर्मा के बाणसहित धनुष को काट डाला। तब शत्रुओं को संताप देने वाले कृतवर्मा ने दूसरा धनुष लेकर भीमसेन की दोनों भौहों के मध्य भाग में नाराच के द्वारा प्रहार किया। तत्पश्चात् भीमसेन ने समरांगण में लोहे के बने हुए नौ बाणों से राजा शल्य को बेधकर तीन बाणों से भगदत्त को, आठ से कृतवर्मा को और दो-दो बाणों द्वारा कृपाचार्य आदि रथियों को बींध डाला।

     राजन! फिर उन्होंने भी अपने तीखे बाणों द्वारा भीमसेन को घायल कर दिया। उन महारथियों द्वारा सब प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से पीड़ित किये जाने पर भी भीमसेन उन्हें तिनकों के समान मानकर व्यथारहित हो विचरण करने लगे। रथियों में श्रेष्ठ उन वीरों ने भी व्यग्रतारहित हो भीमसेन सैकड़ों और हजारों की संख्या में तीखे बाण चलाये। महामते! उस समर भूमि में वीर महारथी भगदत्त ने भीमसेन पर स्वर्णमय दण्ड से विभूषित एक महावेग शालिनी शक्ति चलायी। सिन्धु देश के राजा महाबाहु जयद्रथ ने तोमर और पट्टिश चलाया। राजन! कृपाचार्य ने शतघ्नी का प्रयोग किया तथा राजा शल्य ने युद्ध स्थल में एक बाण मारा। इनके सिवा दूसरे धनुर्धर वीरों ने भी भीमसेन को लक्ष्य करके बलपूर्वक पांच-पांच बाण चलाये। परंतु वायु पुत्र भीमसेन ने एक क्षुरप्र से जयद्रथ के चलाये हुए तोमर के दो टुकड़े कर दिये। फिर तीन बाण मारकर पट्टिश को तिल के डंठल के समान टूक-टूक कर डाला।

      तत्पश्चात् कंक पत्रयुक्त नौ बाणों द्वारा शतघ्नी का को छिन्न-भिन्न कर दिया। इसके बाद महारथी भीमसेन ने मद्रराज शल्य के चलाये हुए बाण को काटकर रणक्षेत्र में भगदत्त की चलायी हुई शक्ति के भी सहसा टुकड़े-टुकड़े कर डाले। तदनन्तर झुकी हुई गांठ वाले बहुत-से बाणों द्वारा अन्यान्य योद्धाओं के चलाये हुए भयंकर शरसमूहों को भी युद्ध की श्‍लाघा रखने वाले भीमसेन ने काटकर एक-एक के तीन-तीन टुकड़े कर दिये। इस प्रकार शत्रुओं के अस्त्र-शस्त्रों का निवारण करके भीमसेन ने उन सभी महाधनुर्धर वीरों को तीन-तीन बाणों से घायल कर दिया। तब उस महासमर में महारथी भीमसेन को, जो समर भूमि में सायकों द्वारा शत्रुओं का संहार करते हुए उनके साथ युद्ध कर रहे थे, देखकर रथ के द्वारा अर्जुन भी वहीं आ पहुँचे।

(सम्पूर्ण महाभारत (भीष्म पर्व) त्रयोदशाधिकशततम अध्याय के श्लोक 46-53 का हिन्दी अनुवाद)

     उन दोनों महामनस्वी पाण्डव बन्धुओं को एकत्र हुआ देख आपकी सेना के श्रेष्ठ पुरुषों ने वहाँ अपनी विजय की आशा त्याग दी। भरतनन्दन! उस रणक्षेत्र में भीम जिनके साथ युद्ध कर रहे थे, आपके पक्ष के उन दस महारथी वीरों के सामने भीष्म के वध की इच्छा रखने वाले अर्जुन भी शिखण्डी को आगे किये आ पहुँचे।

      राजन! जो लोग रणक्षेत्र में भीमसेन के साथ युद्ध करते हुए खड़े थे, उन सबको अर्जुन ने भीम का प्रिय करने की इच्छा से अच्छी तरह घायल कर दिया। तब राजा दुर्योधन ने अर्जुन और भीमसेन दोनों के वध के लिये सुशर्मा को भेजा। भेजते समय उसने कहा,

      दुर्योधन ने कहा ;- ‘सुशर्मन्! तुम विशाल सेना के साथ शीघ्र जाओ और अर्जुन तथा भीमसेन इन दोनों पाण्डुकुमारों को मार डालो।’

     दुर्योधन की यह बात सुनकर प्रस्थला के स्वामी त्रिगर्तराज सुशर्मा ने रणक्षेत्र में धावा करके भीमसेन और अर्जुन दोनों धनुर्धर वीरों को अनेक सहस्र रथों द्वारा सब ओर से घेर लिया। उस समय अर्जुन का शत्रुओं के साथ घोर युद्ध होने लगा।

(इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्म पर्व के अन्तर्गत भीष्मवध पर्व में भीमसेन का पराक्रमविषयक एक सौ तेरहवां अध्याय पूरा हुआ)

सम्पूर्ण महाभारत  

भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)

एक सौ चौदहवाँ अध्याय

(सम्पूर्ण महाभारत (भीष्म पर्व) चतुर्दशाधिकशततम अध्याय के श्लोक 1-24 का हिन्दी अनुवाद)

“कौरव पक्ष के महारथियों के साथ युद्ध में भीमसेन और अर्जुन का अद्भुत पुरुषार्थ”

     संजय कहते हैं ;- राजन! उस समय रणक्षेत्र में विजय के लिए प्रयत्न करने वाले महारथी शल्य को अर्जुन ने झुकी हुई गांठ वाले बाणों की वर्षा करके ढक दिया। उसके बाद सुशर्मा और कृपाचार्य को भी तीन-तीन बाणों से बींध डाला। राजेन्द्र! फिर समरांगण में प्राग्ज्योतिषनरेश भगदत्त, सिन्धुराज जयद्रथ, चित्रसेन, विकर्ण, कृतवर्मा, दुमर्षण तथा महारथी विन्द और अनुविन्द- इनमें से प्रत्येक को गीध की पांख से युक्त तीन-तीन बाणों द्वारा विशेष पीड़ा दी। तत्पश्चात् अतिरथी वीर अर्जुन ने युद्ध में आपकी सेना को बाण समूहों द्वारा अत्यन्त पीड़ित कर दिया। भारत! चित्रसेन के रथ पर बैठे हुए जयद्रथ ने रणक्षेत्र में कुन्तीकुमार अर्जुन को घायल करके भीमसेन को भी बहुत-से सायकों द्वारा वेगपूर्वक बींध डाला। महाराज! फिर रथियों में श्रेष्ठ कृपाचार्य तथा शल्य ने भी समरांगण में मर्मस्थल को विदीर्ण करने वाले बाणों द्वारा अर्जुन को बारम्‍बार घायल किया।

     माननीय प्रजानाथ! चित्रसेन आदि आपके पुत्रों ने भी युद्धस्थल में तुरंत ही पांच-पांच तीखे बाणों द्वारा अर्जुन और भीमसेन को घायल कर दिया। उस समय वहाँ रथियों में श्रेष्ठ भरतकुलभूषण कुन्तीकुमार भीमसेन और अर्जुन ने समरभूमि में त्रिगर्तों की विशाल सेना को पीड़ित कर दिया। इधर सुशर्मा ने भी रणक्षेत्र में नौ शीघ्रगामी बाणों द्वारा अर्जुन को घायल करके पाण्डवों की विशाल सेना को भयभीत करते हुए बड़े जोर से सिंहनाद किया। इसी प्रकार अन्य शूरवीर महारथियों ने भीमसेन और अर्जुन को सुवर्ण पंखयुक्त, सीधे जाने वाले पैने बाणों द्वारा बींध डाला। उन समस्त रथियों के बीच में खड़े होकर खेल-से करते हुए भरतभूषण उदार महारथी कुन्तीकुमार भीमसेन और अर्जुन विचित्र दिखायी देते थे। जैसे मांस की इच्छा रखने वाले दो मदोन्मत सिंह गौओं के झुंड में खड़े हुए हों, उसी प्रकार भीमसेन और अर्जुन उस रणभूमि में सुशोभित हो रहे थे। उन दोनों वीरों ने रणक्षेत्र में सैकड़ों शूरवीर मनुष्यों के धनुष और बाणों को बार बार छिन्न-भिन्न करके उनके मस्तकों को भी काट गिराया। उस माहसमर में बहुत से रथ टूट गये, सैकड़ों घोड़े मारे गये तथा कितने ही हाथी और हाथीसवार धराशायी हो गये।

     राजन! बहुत से रथी और घु़ड़सवार जहाँ-तहाँ चारों ओर मारे जाकर कांपते और छटपटाते हुए दिखायी देते थे। वहाँ मरकर गिरे हुए हाथियों, पैदल सिपाहियों, घोड़ों तथा टूटे हुए बहुत-से रथों द्वारा पृथ्वी आच्छादित हो गयी थी। भारत! अनेक टुकड़ों में कटकर गिरे हुए छत्रों, ध्वजाओं, स्वर्णमय दण्ड से विभूषित चामरों, फेंके हुए अंकुशों, चाबुकों, घण्टों और झूलों से वहाँ की भूमि एक गयी थी। केयूर, अंगद, हार तथा मणिजटित कुण्डल आदि आभूषणों, रंकुमृग के कोमल चर्म, वीरों की पगड़ियों, ऋष्टि आदि अस्त्रों तथा चामर और व्यंजन आदि से भी वहाँ की धरती आच्छादित हो गयी थी। जहाँ-तहाँ गिरी हुई राजाओं की चन्दनचर्चित भुजाओं और जांघों से वह रणभूमि पट गयी थी।

    महाराज! मैंने उस रणक्षेत्र में अर्जुन का अद्भुत पराक्रम यह देखा कि उन महाबली वीर ने शत्रुपक्ष के उन सब प्रमुख वीरों को बाणों द्वारा रोककर अनेकों वीरों को मार डाला था। आपका पुत्र महाबली दुर्योधन भीमसेन और अर्जुन का वह पराक्रम देखकर स्वयं भी गंगानन्दन भीष्म के रथ के समीप जा पहुँचा। उस समय कृपाचार्य, कृतवर्मा, सिन्धुराज जयद्रथ तथा अवन्ती के विन्द और अनुविन्द ने भी युद्ध को नहीं छोड़ा। तदनन्तर महाधनुर्धर भीमसेन तथा महारथी अर्जुन रणक्षेत्र में कौरवों की उस भयंकर सेना को जोर-जोर से खदेड़ने लगे। तब बहुत-से भूमिपाल मिलकर तुरंत ही अर्जुन के रथ पर मोर पंखयुक्त अनेक अयुत एवं अर्बुद बाणों की वर्षा करने लगे।

(सम्पूर्ण महाभारत (भीष्म पर्व) चतुर्दशाधिकशततम अध्याय के श्लोक 25-47 का हिन्दी अनुवाद)

     तब अर्जुन ने सब ओर से बाणों का जाल-सा बिछाकर उन महारथी भूमिपालों को रोक दिया और तुरंत ही उन्हें मृत्युलोक में पहुँचा दिया। तब महारथी शल्य ने क्रीड़ा करते हुए से कुपित हो समरभूमि में झुकी हुई गांठ वाले भल्लों द्वारा अर्जुन की छाती में गहरी चोट पहुँचायी। यह देख अर्जुन ने पांच बाणों से उनके धनुष और दस्ताने को काटकर तीखें सायकों द्वारा उनके मर्म स्‍थल में गहरी चोट पहुँचायी। महाराज! फिर मद्रराज ने भी भार-साधन में समर्थ दूसरा धनुष लेकर रणभूमि में अर्जुन पर रोषपूर्वक तीन बाणों द्वरा प्रहार किया। वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण को पांच बाणों से घायल करके उन्‍होंने भीमसेन की भुजाओं तथा छाती में नौ बाण मारे।

     नरेश्वर! तदनन्तर दुर्योधन की आज्ञा पाकर द्रोण तथा महारथी मगध नरेश उसी स्थान पर आये, जहाँ पाण्डूकुमार अर्जुन और भीमसेन- ये दोनों महारथी दुर्योधन की विशाल सेना का संहार कर रहे थे। भरतश्रेष्ठ! मगधराज जयत्सेन ने युद्ध के मैदान में भयानक अस्त्र-शस्त्र धारण करने वाले भीमसेन को आठ पैने बाणों द्वारा बींध डाला। तब भीमसेन ने जयत्सेन को दस बाणों से बींधकर फिर पांच बाणों से घायल कर दिया और एक भल्ल मारकर उसके सारथी को भी रथ की बैठक से नीचे गिरा दिया। फिर तो उसके घबराये हुए घोड़े चारों ओर भागने लगे और इस प्रकार वह मगध देश का राजा सारी सेना के देखते-देखते रणभूमि से दूर हटा दिया गया। इसी समय द्रोणाचर्य ने अवसर देखकर लोहे के बने हुए पैंसठ पैने बाणों द्वारा भीमसेन को बींध डाला। भारत! तब युद्ध की श्‍लाघा रखने वाले भीमसेन ने भी रणक्षेत्र में पिता के समान पूजनीय गुरु द्रोणाचार्य को पैंसठ भल्लों द्वारा घायल कर दिया। इधर अर्जुन ने लोहे के बने हुए बहुत से बाणों द्वारा सुशर्मा को घायल करके जैसे वायु महान मेघों को छिन्न-भिन्न कर देती है, उसी प्रकार उसकी सेना की धज्जियां उड़ा दी। तब भीष्म, राजा दुर्योधन और कौशल नरेश बृहद्बल- ये तीनों अत्यन्त कुपित होकर भीमसेन और अर्जुन पर चढ़ आये।

     इसी प्रकार शूरवीर पाण्डव तथा द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न ये रणक्षेत्र में मुंह फैलाये हुए यमराज के समान प्रतीत होने वाले भीष्म पर टूट पड़े। शिखण्डी ने भरत कुल के पितामह भीष्म के निकट पहुँचकर उन महारथी भीष्म से सम्भावित भय को त्यागकर बड़े हर्ष के साथ उन पर धावा किया। युधिष्ठिर आदि कुन्तीपुत्र रणभूमि में शिखण्डी को आगे करके समस्त सृ़ंजयों को साथ ले भीष्म के साथ युद्ध करने लगे। इसी प्रकार आपके समस्त योद्धा ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने वाले भीष्म को युद्ध में आगे रखकर शिखण्डी आदि पाण्डव महारथियों का सामना करने लगे। तदनन्तर वहाँ भीष्म की विजय के उद्देश्य से कौरवों का पाण्डवों के साथ भयंकर युद्ध होने लगा। प्रजानाथ! उस युद्ध रूपी जूए में आपके पुत्रों की ओर से विजय के लिये भीष्म को ही दांव पर लगाया था। इस प्रकार वहाँ विजय अथवा पराजय के लिये रणद्यूत उपस्थित हो गया। राजेन्द्र! उस समय धृष्टद्युम्न ने अपनी समस्त सेनाओं को प्रेरणा देते हुए कहा,

     धृष्टद्युम्न ने कहा ;- ‘श्रेष्ठ रथियों! गंगानन्दन भीष्म पर धावा करो। उनसे तनिक भी भय न मानो’। सेनापति का यह वचन सुनकर पाण्डवों की विशालवाहिनी उस महासमर में प्राणों का मोह दौड़कर तुरंत ही भीष्म की ओर बढ़ चली। महाराज! रथियों में श्रेष्ठ भीष्म ने भी अपने उपर आती हुई उस विशाल सेना को युद्ध के लिए उसी प्रकार ग्रहण किया, जैसे तटभूमि को महासागर।

(इस प्रकार श्री महाभारत भीष्म पर्व के अन्तर्गत भीष्मवध पर्व में भीमसेन और अर्जुन का पराक्रमविषयक एक सौ चौदहवाँ अध्‍याय पूरा हुआ)

सम्पूर्ण महाभारत  

भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)

एक सौ पंद्रहवाँ अध्याय

(सम्पूर्ण महाभारत (भीष्म पर्व) पंचदशाधिकशततम अध्याय के श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद)

“भीष्म के आदेश से युधिष्ठिर का उन पर आक्रमण तथा कौरव-पाण्डव-सैनिकों का भीषण युद्ध”

   धृतराष्ट्र ने पूछा ;- संजय! दसवें दिन महापराक्रमी शान्तनुकुमार भीष्म ने पाण्डवों तथा सृंजयों के साथ किस प्रकार युद्ध किया तथा कौरवों ने पाण्डवों को युद्ध में किस प्रकार रोका? रणक्षेत्र में शोभा पाने वाले भीष्म के उस महायुद्ध का वृत्तान्त मुझसे कहो। संजय ने कहा- भारत! कौरवों ने पाण्डवों के साथ जो युद्ध किया और जिस प्रकार वह युद्ध हुआ, वह सब इस समय बताता हूँ। किरीटधारी अर्जुन ने प्रतिदिन अपने उत्तम अस्त्रों द्वारा क्रोध में भरे हुए आपके महारथियों को परलोक में पहुँचाया है। इसी प्रकार युद्ध विजयी कुरुकुलनन्दन भीष्म ने भी सदा अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार युद्ध में कुन्‍तीपुत्रों के सैनिकों का संहार किया। शत्रुओं को संताप देने वाले नरेश! एक ओर से कौरवों सहित भीष्म से युद्ध कर रहे थे और दूसरी ओर से पांचाल देशीय वीरों के सहित अर्जुन उनका सामना कर रहे थे, यह देखकर सबके मन में संशय हो गया कि किस पक्ष की विजय होगी।

     दसवें दिन भीष्म और अर्जुन के उस युद्ध में निरन्तर महाभयंकर जनसंहार होने लगा। राजन! उत्तम अस्त्रों के ज्ञाता तथा शत्रुओं को संताप देने वाले शान्तनुनन्दन भीष्म ने उस युद्ध में कई अयुत योद्धाओं का संहार कर डाला। भूपाल! जिनके नाम और गोत्र प्रायः अज्ञात थे तथा जो सभी युद्ध में कभी पीठ नहीं दिखाते थे, वे शूरवीर वहाँ भीष्म के हाथों मारे गये। परंतप! इस प्रकार दस दिनों तक धर्मात्मा भीष्म पांडव सेना को संतप्त करके अन्ततोगत्वा अपने जीवन से ही ऊब गये। अब वे रणक्षेत्र में सम्मुख रहकर शीघ्र ही अपने वध की इच्छा करने लगे। महाराज! आपके ताऊ महाबाहु देवव्रत ने यह सोचकर कि अब मैं संग्राम में बहुसंख्यक श्रेष्ठ मानवों का वध न करूं, अपने निकटवर्ती पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर से इस प्रकार बोले- ‘सम्पूर्ण शास्त्रों निपुण विद्वान, महाज्ञानी तात युधिष्ठिर! मैं तुम्हें धर्म के अनुकूल तथा स्वर्ग की प्राप्ति कराने वाली एक बात बता रहा हूं, तुम मेरे उस वचन को सुनो। तात भरतनन्दन! अब मैं इस देह से ऊब गया हूँ क्योंकि रणभूमि में बहुत से प्राणियों का वध करते हुए ही मेरा समय बीता है। इसलिये यदि तुम मेरा प्रिय करना चाहते हो तो अर्जुन तथा पांचालों और सृंजयों को आगे करके मेरे वध के लिए प्रयत्न करो।’

     भीष्म के इस अभिप्राय को जानकर सत्यदर्शी पाण्डुनन्दन राजा युधिष्ठिर रणभूमि में सृंजय वीरों को साथ ले भीष्म की ओर आगे बढ़े। राजन! उस समय भीष्मजी का वह वचन सुनकर धृष्टद्युम्न और पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर ने अपनी सेना को आज्ञा दी- वीरों! आगे बढ़ो। युद्ध करो और संग्राम में भीष्म पर विजय पाओ। तुम सब लोग शत्रुविजयी सत्यप्रतिज्ञ अर्जुन के द्वारा सुरक्षित हो। ये महाधनुर्धर सेनापति धृष्टद्युम्न तथा भीमसेन भी समरागंण में निश्चय ही तुम सब लोगों की रक्षा करेंगे। सृंजय वीरो! आज तुम युद्ध में भीष्म जी से तनिक भी भय न करो। हम शिखण्डी को आगे करके भीष्म पर अवश्य ही विजय पायेंगे। तब वे पाण्डव सैनिक दसवें दिन वैसा ही करने की प्रतिज्ञा करके ब्रह्मलोक को अपना लक्ष्य बनाकर क्रोध से मूर्च्छित हो शिखण्डी तथा पाण्डुपुत्र अर्जुन को आगे करके आगे बढ़े और भीष्म को मार गिराने का महान प्रयत्न करने लगे।

(सम्पूर्ण महाभारत (भीष्म पर्व) पंचदशाधिकशततम अध्याय के श्लोक 23-42 का हिन्दी अनुवाद)

     तदनन्तर आपके पक्ष के शूरवीर सैनिक महाव्रती भीष्म को आगे करके रणक्षेत्र में शिखण्डी आदि पाण्डव सैनिकों के साथ युद्ध करने लगे। वानरचिह्नित ध्वजा से विभूषित अर्जुन ने चेदि तथा पांचाल देश के वीरों के साथ शिखण्डी को आगे करके शान्तनुनन्दन भीष्म पर चढ़ाई की। सात्यकि अश्वत्थामा के साथ, धृष्टकेतु पौरव के साथ तथा मन्त्रियों सहित दुर्योधन के साथ अभिमन्यु युद्ध करने लगे। परंतप! सेनासहित विराट ने सैनिकों सहित वृद्धक्षत्र के पुत्र जयद्रथ पर आक्रमण किया। युधिष्ठिर ने महाधनुर्धर शल्य तथा उनकी सेना पर धावा किया। सब ओर से सुरक्षित हुए भीमसेन हाथियों की सेना पर टूट पड़े। समस्त शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ अनिवार्य और दुर्धर्ष वीर अश्वत्थामा पर भाइयों सहित धृष्टद्युम्न ने प्रयत्नपूर्वक आक्रमण किया। कर्णिकार के चिह्न से युक्त ध्वज वाले सुभद्राकुमार अभिमन्यु पर सिंह चिह्नित ध्वजा वाले शत्रुदमन राजकुमार बृहद्बल ने आक्रमण किया। शिखण्डी तथा पाण्डुपुत्र अर्जुन पर आपके पुत्रों ने समस्त राजाओं को साथ लेकर युद्धस्थल में आक्रमण किया। वे उन दोनों को मार डालना चाहते थे। इस प्रकार उन दोनों सेनाओं के वीर जब अत्यन्त भयानक पराक्रम प्रकट करने लगे और समस्त सैनिक इधर-उधर दौड़ने लगे, उस समय यह सारी पृथ्वी कांपने लगी।

     भारत! आपके और शत्रुपक्ष के सब सैनिक युद्ध में शान्तनुनन्दन भीष्म को देखकर विरोधी सैनिकों के साथ जमकर युद्ध करने लगे। भरतनन्दन! एक दूसरे पर धावा करने वाले उन संतप्त सैनिकों का महान कोलाहल सम्पूर्ण दिशाओं में व्याप्त हो गया। शंखों और दुन्दुभियों का गम्भीर घोष तथा हाथियों की गर्जना के साथ सैनिकों का सिंहनाद बड़ा भयंकर जान पड़ता था। समस्त राजाओं की चन्द्रमा और सूर्य के समान प्रकाशित होने वाली प्रभा वीरों के अंगद और किरीटों के सामने अत्यन्त फीकी पड़ गयी। धूल मेघों की घटा-सी छा गयी। उसमें अस्त्र-शस्त्रों की चमक बिजली की प्रभा के समान व्याप्त हो रही थी, धनुषों की टंकार ध्वनि अत्यन्त भयंकर प्रतीत होने लगी। बाणों, शंखों तथा भेरियों के सम्मिलित शब्द जोर-जोर से सुनायी देने लगे। साथ ही दोनों सेनाओं में रथों की घरघराहट भी दूर तक फैलने लगी। दोनों सेनाओं के प्रास, शक्ति, ऋष्टि और बाणों के समुदायों से भरा हुआ वहाँ का आकाश प्रकाश हीन-सा जान पड़ता था। उस महासमर में रथी और घोड़े एक दूसरे पर टूटे पड़ते थे। हाथी हाथियों को और पैदल पैदल सिपाहियों को मार रहे थे। पुरुषसिंह! जैसे मांस के टुकडे़ के लिए दो श्येन पक्षी आपस में लड़ते हैं, उसी प्रकार वहाँ भीष्म के लिए कौरवों का पाण्डवों के साथ बड़ा भारी युद्ध हो रहा था। उस महासमर में एक दूसरे के वध के लिए एकत्र हुए विजयाभिलाषी सैनिकों का बड़ा भयंकर संग्राम हुआ।

(इस प्रकार श्री महाभारत भीष्म पर्व के अन्तर्गत भीष्मवध पर्व में भीष्म का उपदेशविषयक एक सौ पंद्रहवां अध्याय पूरा हुआ)

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