शिव पुराण उमा संहिता के छठे अध्याय से दसवें अध्याय तक (From the sixth to the tenth chapter of the Shiva Purana Uma Samhita)

 


।। ॐ नमः शिवाय ।।


शिव पुराण का सरल भाषा में हिंदी रूपांतर



【उमा संहिता】

छठवाँ अध्याय

"पाप-पुण्य वर्णन"

    सनत्कुमार जी बोले ;- हे व्यास जी ! किसी भी बात पर घमंड या अभिमान करना, क्रोध, कपट व साधुओं से द्वेष रखना, किसी अन्य पर अकारण कलंक लगाना, शिवालय के वृक्ष और बगीचे में लगे पेड़ के फल, फूल, टहनियां तोड़ना एवं हरियाली को उजाड़ने वाले, किसी के धन को लूटने वाले अथवा किसी के धन-धान्य या पशुओं को चुराने वाले, जल को अपवित्र करने वाले, स्त्री या पुत्र को बेचने वाले, अपनी स्त्री की रक्षा न करने वाले, दान न करने वाले, असत्य बोलने वाले, शास्त्रों के अनुसार कार्य न करने वाले, दूसरों की निंदा करने वाले, पितृयज्ञ व देव यज्ञ न करने वाले, व्यभिचार करने वाले एवं भगवान में आस्था न रखने वाले सभी मनुष्य पापी कहे जाते हैं।

   परस्त्री पर आसक्त होना, हिंसा करना, बांस, ईंट, लकड़ी, पटिया, सींग काल आदि से मार्ग रोककर दूसरों की सीमा हथिया लेना, पशुओं एवं नौकरों से बुरा व्यवहार करने वाले एवं उन्हें दण्ड देने वाले, भिखारियों को भिक्षा न देने वाले, भूखे को भोजन न देने वाले, शिव मूर्ति को खण्डित करने वाले, गाय को मारने वाले, बूढ़े बैल कसाइयों को देने वाले, दीन, वृद्ध, दुर्बल, रोगी को सताने वाले, शरणागतों पर दया न करने वाले मूर्ख मनुष्य पाप के भागी होते । अन्याय करने वाले राजा, ब्राह्मणों से कर वसूलने वाले, गरीबों से छीनकर धन एकत्रित करने वाले मनुष्य नरकगामी होते हैं।

   ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के पश्चात भी बढ़ई, वैद्य, सुनार, शिल्प करने वाले, ध्वजा बनाने का कार्य करने वाले मनुष्य भी पापी होते हैं। जो किसी अन्य स्त्री को चुराकर अपने घर में रखते हैं, महापापी होते हैं। नीति के विपरीत व्यवहार करने वाले, घृत, तेल, अन्न, पेय, शहद, मांस, मद्य, कमण्डल, तांबा, सीसा, रांगा, हथियार, शंख आदि की चोरी करने वाले वैद्य वैष्णव नरकगामी होते हैं। पशु, पक्षी, मनुष्य, दानव आदि सभी पापियों को निश्चय ही यमराज के अधीन जाना पड़ता है। एक-दूसरे से असमानता का व्यवहार करने वाले दुष्ट, पापियों को दण्ड देने वाले सभी के शासक यमराज हैं और मरने के पश्चात मनुष्य को यातनाएं भोगनी ही पड़ती हैं। इसलिए मनुष्य को अपने जीवनकाल में ही अपने पापों का प्रायश्चित अवश्य कर लेना चाहिए। बिना प्रायश्चित किए पापों का नाश असंभव होता है। जो भी मनुष्य मन, वाणी और शरीर द्वारा जाने-अनजाने में पाप करता है, वह अपने दुष्कर्मों का फल अवश्य ही भोगता है।

【उमा संहिता】

सातवाँ अध्याय

"नरक - वर्णन"

सनत्कुमार जी ने महामुनि वेद व्यास से कहा ;- हे महामुने ! इस संसार में पाप करने वाले सभी मनुष्यों को यमलोक जाकर अपने पापों का फल अवश्य भोगना पड़ता है। पुण्यात्मा जीव उत्तर दिशा के मार्ग से यमलोक जाते हैं, जबकि पापी मनुष्यों को दक्षिण दिशा की ओर से यमपुरी जाना पड़ता है। वैवस्वत नगर और यमपुरी के बीच की दूरी छियासी हजार योजन की है। धर्मात्मा मनुष्य, जो दयालु प्रवृत्ति के हैं, सुगम मार्ग से पहुंच जाते हैं जबकि पापियों को बड़े कठिन मार्ग से जाना पड़ता है। उनके रास्ते में नुकीले कांटे, गरम बालू व छुरियों जैसे नुकीले कंकण, कीचड़, सुइयां, अंगारे, लंबे अंधकारयुक्त वन, बर्फीले मार्ग, गंदा पानी, सिंह, भेड़िए, बाघ, मच्छर एवं अनेक तरह के जहरीले और भयंकर कीड़े, सांप, सूअर, भैंसे एवं अनेक भयानक जीव, भूत-प्रेत एवं डाकिनी - शाकिनी उस पापी मनुष्य को रास्ते में कष्ट देने के लिए खड़े रहते हैं।

   वे पापी मनुष्य इतने भयानक रास्ते पर यमदूतों की मार सहते हुए आगे बढ़ते हैं। भूख प्यास से व्याकुल नंगे शरीर वे यातनाएं सहते हुए रास्ते को तय करते हैं और पीड़ा की अधिकता के कारण रोते और चीखते-चिल्लाते हैं। उनके शरीर से खून बहता है और कीड़े उन्हें नोचते हैं परंतु यमदूत फिर भी उन्हें पाशों से बांधकर घसीटते रहते हैं। इस प्रकार अत्यंत कठिन मार्ग पर चलते हुए वे अपनी यमलोक तक की यात्रा को पूरा करते हैं। वहां पहुंचकर यमदुत उन पापी मनुष्यों को यमराज के सामने ले जाते हैं। यमलोक में यमराज उन मनुष्यों के पाप और पुण्यों का लेखा-जोखा देखते हैं।

   पुण्यात्माओं को यमराज प्रसन्नतापूर्वक उत्तम विमान में बैठाकर सादर स्वर्ग लोक भेज देते हैं परंतु यदि उन्होंने कुछ भी पाप किए होते हैं तो उन्हें उनका दण्ड अवश्य भोगना पड़ता है तथा अपने पापों को भोगने के पश्चात उन्हें यमदूतों द्वारा स्वर्ग भेज दिया जाता है। परंतु ऐसे मनुष्य, जो सदा ही पाप कर्मों में संलिप्त रहते हैं, को यमराज का बड़ा भयानक रूप देखने को मिलता है। यमराज भयंकर डाढ़ों वाले, विकराल भौंहों वाले, अनेक भयानक अस्त्र-शस्त्र धारण किए हुए, अठारह हाथ वाले, काले भैंसे पर बैठे अग्नि के समान लाल आंखों वाले एवं प्रलय काल की अग्नि के समान तेजस्वी भयानक रूप धारण किए दिखाई देते हैं और पापियों को बड़े कठोर दण्ड देते हैं। तब भगवान चित्रगुप्त धर्मयुक्त वचनों से उन्हें समझाते हैं।

【उमा संहिता】

आठवाँ अध्याय

"नरक की अट्ठाईस कोटियां"

सनत्कुमार जी बोले ;- हे महामुनि व्यास ! जब यमदूत पापी मनुष्यों को लेकर यमलोक पहुंच जाते हैं तो वहां चित्रगुप्त पापियों को फटकारते हुए कहते हैं ,,- पापियो ! तुम अपने जीवनकाल में सदा पाप कर्म करते रहे हो, अब उन पापों के फल भोगने का समय आ गया है। इसी प्रकार, पापी दुष्ट राजाओं को डांटते हुए वे कहते हैं कि राज्य का सुख मिलने पर तुम अपने को सर्वस्व मानने लगे और इसी घमंड में मदमस्त होकर तुमने अपनी प्रजा के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया और उन्हें अनेकों तरह के कष्ट तथा यातनाएं दीं। उन बुरे कर्मों के पाप मैल के समान अब भी तुम्हारे शरीर से चिपके हुए हैं।

   तब यमदूत चण्ड एवं महाचण्ड उन पापी राजाओं को उठाकर गरम-गरम भट्टियों में फेंक देते हैं, ताकि पाप रूपी मैल जल जाए और फिर वहीं से उन पर वज्र का प्रहार करते हैं। इस प्रकार की यातना से उनके कानों से खून बहने लगता है और वे बेहोश हो जाते हैं। तब वायु का स्पर्श कराकर उन्हें पुनः होश में लाया जाता है, तत्पश्चात उन्हें नरक रूपी समुद्र में डाल दिया जाता है। पृथ्वी के नीचे नरक की सात कोटियां है, जो कि घोर अंधकार में स्थित हैं। इन सबकी अट्ठाईस कोटियां हैं। घोरा कोटि, सुघोरा कोटि, अति घोरा, महाघोरा, चोर रूपा, तलातला, मयाअका, कालरात्रि, भयोत्तरा, चण्डा, महा चण्डा, चण्ड कोलाहला, प्रचण्ड, चण्ड नायका, पद्मा, पद्मावती, भीता, भीमा, भीषण नायका, कराला, विकराला, वज्रा, त्रिकोण, पंचकोश, सुदीर्घ, अखिलार्दित, सम भीम, सम लाभ, उग्र दीप्त प्रायः नामक ये अट्ठाईस नरक कोटि हैं, जो कि पापियों को यातना देने वाली हैं। इन नरक कोटियों का निर्माण पापियों को यातना देने के लिए ही किया गया है। इसके अतिरिक्त इन कोटियों के पांच नायक भी हैं। यही सौ रौरवप्राक एवं एक सौ चालीस महानरकों को महानरकमण्डल कहा जाता है।

【उमा संहिता】

नवाँ अध्याय

"साधारण नरकगति"

सनत्कुमार जी कहते हैं ;- जिस प्रकार सोने को अग्नि में तपाकर ही कुंदन बनाया जाता है। उसी प्रकार पापियों की जीवात्माओं को भी शुद्ध करने हेतु नरक की अग्नि में डाला जाता है। सर्वप्रथम पापियों के दोनों हाथों को रस्सियों से बांधकर उन्हें पेड़ पर उलटा लटका दिया जाता है। उनके पैरों में लोहा बांध दिया जाता है, ताकि दर्द से तड़पते हुए प्राणी अपने द्वारा किए गए पापों को याद करे। तत्पश्चात उन्हें तेल के उबलते हुए कड़ाहे में इस प्रकार भूना जाता है, जिस प्रकार हम बैंगन भूनते हैं। फिर उन्हें अंधकारयुक्त कुओं में धकेल दिया जाता है, जहां पर अनेकों प्रकार के कीड़े एवं भयानक जीव उन पर चिपट जाते हैं। उन्हें नोचते और खाते हैं। इस प्रकार पापी जीवों को अनेक प्रकार की यातनाएं भोगनी पड़ती हैं। फिर कुओं से निकालकर उन्हें पुनः नरक में फेंक दिया जाता है। वहां पर उनकी पीठ पर बड़े-बड़े हथौड़े से, जो कि तपाए हुए होते हैं, उनकी पीठ को छलनी कर दिया जाता है। कहीं उन पापी आत्माओं को आरी से चीरा जाता है। फिर उन पापात्माओं को मांस व रुधिर खाने के लिए बाध्य किया जाता है।

   इस प्रकार वे पापात्मा मनुष्य अनेकों कष्टों को भोगते हैं। उनका शरीर अनेक प्रकार की यातनाएं भोगता है। तत्पश्चात वे यमदूत पापियों को निरुध्वास नामक नरक में डाल देते हैं। यहां रेत के भवन होते हैं, जो कि भट्टी के समान तप कर उन्हें पीड़ा पहुंचाते हैं। वहीं पर पापी प्राणियों के हाथ, पैर, सिर, माथे, छाती और शरीर के अन्य अंगों पर आग में तपते हुए हथौड़ों से एक के बाद एक अनगिनत प्रहार किए जाते हैं। तत्पश्चात उसे गरम रेत में फेंक दिया जाता है। फिर गंदे कीचड़ में फेंक दिया जाता है। कुंभीपाक नामक नरक में पापात्माओं को तेल के जलते हुए कड़ाहों में पकाया जाता है। फिर लाजाभक्ष सूची पत्र में डाल दिया जाता है। वहां इन्हें धधकती हुई अग्नि में फेंक दिया जाता है। फिर यमदूत अपने वज्र के समान कठोर प्रहारों से इन पापियों को छलनी करते हैं और उनके घावों पर नमक भर देते हैं। उनके मुहों में लोहे की कीलें डाल दी जाती हैं।

【उमा संहिता】

दसवाँ अध्याय

"नरक गति भोग वर्णन"

सनत्कुमार जी बोले ;- हे महामुने! पाखण्ड में लिप्त रहने वाले, झूठ बोलने वाले या अन्य किसी भी प्रकार से दूसरों का अहित करने वाले नास्तिक मनुष्य, द्विज, हाख्य नरक में जाते हैं। इस नरक में उन पर आधे कोस लंबे पैने हल चलाए जाते हैं। ऐसे दुष्ट मनुष्य, जो अपने माता-पिता अथवा गुरुओं की आज्ञा को नहीं मानते, के मुंह में कीड़ों से युक्त विष्ठा भर दी जाती है। जो पापी मनुष्य शिवालय, बगीचे, बावड़ी, तालाब, कुएं या ब्राह्मणों के रहने के स्थान को नष्ट करते हैं, ऐसे प्राणियों को कोल्हू में पेला जाता है फिर उन्हें नरक की अग्नि में पकाया जाता है। भोग विलासी प्रवृत्ति के दुष्ट मानवों को यमदूत लोहे की गरम स्त्रीमूर्ति से चिपका देते हैं। महात्माओं की निंदा करने वाले पापियों के कानों में लोहा, तांबा व सीसा और पीतल को गलाकर भर दिया जाता है।

    जो पापी कामी पुरूष की बुरी नजर से नारी को देखते हैं उनकी आंखों में सूई और गरम राख भर दी जाती है। जो पापी महात्माओं के दिए गए धर्म संबंधित उपदेशों की अवमानना करते हैं और धर्मशास्त्रों की निंदा करते हैं, उनकी छाती, कण्ठ, जीभ, होंठ, नाक और सिर में तीन नोकों वाली कीलें ठोक दी जाती हैं और उन पर मुद्गरों से चोट की जाती है। दूसरों का धन चुराने वाले, पूजन सामग्री को पैर लगाने वाले दुष्ट मनुष्यों को अनेक प्रकार की यातनाएं भोगने के लिए दी जाती हैं। जो पापी धनी होते हुए भी दान नहीं करते और घर आए भिखारी को खाली लौटा देते हैं, ऐसे पुरुषों को घोर यातनाएं सहनी पड़ती हैं।

   जो सत्पुरुष भगवान शिव का पूजन करके विधि-विधान से उनका हवन करने के पश्चात शिवमंत्र को जाप करके यममार्ग को रोकने वाले श्याम एवं शवल नामक श्वानों एवं पश्चिम, वायव्य, दक्षिण और नैर्ऋत्य दिशा में रहने वाले पुण्यकर्मों वाले कौओं को बलि देते हैं, उन मनुष्यों को कभी यमराज का दर्शन नहीं करना पड़ता है। चार हाथ लंबा मंडप बनाकर उसके ईशान में धन्वंतरि, पूर्व में इंद्र, पश्चिम में सुदक्षोम और दक्षिण में यम एवं पितरों के लिए बलि देनी चाहिए। तत्पश्चात कुत्तों एवं पक्षियों के लिए अन्न डालें। स्वाहाकार, स्वधाकर, वषट्कार एवं हंतकार धर्ममयी गाय के चार स्तन हैं, इसलिए गौ सेवा को आवश्यक माना जाता है और इसीलिए हम गोमाता की पूजा करते हैं। ऐसा न करने वाले पापी मनुष्यों की अवश्य ही दुर्गति होती है और वे नरक को भोगते हैं तथा अनेक दुखों का सामना करते हैं।


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