शिव पुराण उमा संहिता के ग्यारहवें अध्याय से पंद्रहवें अध्याय तक (From the eleventh chapter to the fifteenth chapter of the Shiva Purana Uma Samhita)

 


।। ॐ नमः शिवाय ।।


शिव पुराण का सरल भाषा में हिंदी रूपांतर



【उमा संहिता】

ग्यारहवाँ अध्याय

"अन्नदान महिमा"

व्यास जी बोले ;- प्रभो! पापी मनुष्यों को अनेक दुख भोगते हुए यमलोक का रास्ता तय करना पड़ता है। क्या ऐसा कोई उपाय है, जिससे यममार्ग की यात्रा सुखपूर्वक पूरी की जा सके? व्यास जी के प्रश्न को सुनकर,,

 सनत्कुमार जी बोले ;- हे महामुने! ऐसे जीव बिना कष्टों के सीधे यमलोक पहुंच जाते हैं, जो दयालु होते हैं और सदा धर्म के मार्ग पर चलते हुए सदैव दूसरों की सहायता हेतु कार्य करते हैं। जो सत्पुरुष ब्राह्मणों को खड़ाऊं या जूते पहनाते हैं, वे घोड़े पर यमपुरी पहुंचते हैं। इसी प्रकार छाता और बिस्तर दान करने वाले आराम से आसन पर बैठकर, पेड़-पौधे लगाने वाले वृक्षों की छाया में यमपुर पहुंचते हैं। जो मनुष्य फूलों की वाटिका लगाते हैं, उन्हें ले जाने हेतु पुष्प विमान आता है। साधु-संतों के लिए मकान बनवाने वाले मनुष्यों को सुंदर भवन विश्राम करने के लिए मिलते हैं।

   इसी प्रकार माता-पिता, ब्राह्मण और गुरुओं की सेवा करने वाले पुरुषों का आदर होता है। अन्न और जल का दान करने वाले मनुष्यों को यमपुरी के रास्ते में अन्न-जल की कोई कमी नहीं होती। ब्राह्मणों के चरण दबाने वाले मनुष्य आरामपूर्वक घोड़े पर सवार होकर यमलोक जाते हैं। संसार में अन्न का दान सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि अन्न खाकर ही जीव का शरीर पुष्ट होता है। उस शरीर से धर्म पुष्ट होता है और शरीर ही धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष देने वाला उत्तम साधन है। इसलिए मनुष्य को अन्न का दान अवश्य ही करना चाहिए। अपने घर पर पधारे अतिथियों का उचित आदर-सत्कार अवश्य करना चाहिए और द्वार पर आए गरीब भूखों एवं भिखारियों को खाली हाथ नहीं लौटाना चाहिए। अन्नदान करने वाले सज्जन पुरुष स्वर्ग में निवास करते हुए अनेकों सुखों को भोगते हैं व आनंद का अनुभव करते हैं।

【उमा संहिता】

बारहवाँ अध्याय

"जलदान एवं तप की महिमा"

सनत्कुमार जी कहते हैं ;- हे मुनि व्यास ! इस संसार में सभी प्राणियों को जीवन देने वाला जल है। जो मनुष्य पीने के जल के लिए कुआं खोदते हैं, उनका आधा पाप नष्ट हो जाता है। तालाब बनवाने वाले पुरुष को कभी भी दुखों का सामना नहीं करना पड़ता । देव, दानव, गंधर्व, नाग और चर-अचर सभी जीव जल पर ही आश्रित होते हैं। जिस तालाब में बरसात का जल भर जाता है, उसे बनाने वाले को अग्निहोत्र का फल मिलता है। सर्दियों में जो तालाब जल से भरा रहता है, उसे बनाने वाले को एक हजार गौ दान का पुण्य प्राप्त होता है। इसी प्रकार हेमंत और शिशिर ऋतु में भरे तालाब के निर्माण करने वाले को अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। इसलिए तालाब खुदवाना पुण्यदायक और कल्याणदायक माना जाता है।

    इसी प्रकार मार्ग में वृक्ष और बगीचे लगवाने वाले प्राणियों के पूरे वंश का उद्धार हो जाता है। फल-फूल वाले वृक्ष बहुत उत्तम होते हैं। फूलों से देवता, फलों से पितृगण एवं उनकी छाया से वहां से आने-जाने वाले राहगीरों को राहत मिलती है। ये वृक्ष सर्प, किन्नर, राक्षस, देव, मनुष्यों को सुख देने वाले होते हैं। इस संसार में सत्य को सबसे उत्तम कहा गया है। यही सत्य ब्रह्म, तप, यज्ञ, शास्त्र, चेतन, धैर्य, देवता, ऋषि, पितरों का पूजन, जल, विद्यादान, ब्रह्मचर्य, परमपद सभी सत्यरूप हैं। सत्यभाषी मनुष्य तपस्वी, सत्यधर्म का अनुसरण करने वाला सिद्ध पुरुष होता है। वह विमान में बैठकर स्वर्ग जाता है। सदैव सत्य बोलना ही फल देने वाला है। तपस्या द्वारा स्वर्ग, यश, मुक्ति, कामना, ज्ञान, विज्ञान, संपत्ति, सौभाग्य, रूप और इनसे अधिक पदार्थ होते हैं। साथ ही मन की सभी कामनाएं अवश्य पूरी होती हैं। तपस्या के बगैर किसी भी मनुष्य अथवा जीव को भगवान शिव के परम धाम की प्राप्ति नहीं हो सकती। शुद्ध हृदय से त्रिलोकीनाथ भक्तवत्सल देवाधिदेव महादेव की तपस्या करने से ब्रह्महत्या जैसे महापाप से भी मुक्ति मिल सकती है। तपस्या ही सारे संसार को सुख और शांति प्रदान करने वाली है। इसलिए सुखों की इच्छा करने वाले एवं भोग और मोक्ष चाहने वाले मनुष्यों को तप अवश्य करना चाहिए।

【उमा संहिता】

तेरहवाँ अध्याय

"पुराण माहात्म्य"

सनत्कुमार जी बोले ;— हे महामुने ! जो ब्राह्मण वेद शास्त्रों को पढ़कर दूसरे मनुष्यों को सुनाते हैं, उन्हें इस पुण्य का फल अवश्य मिलता है। नरक की यातनाओं के विषय में बताकर जीवों को सचेत करने वाले पुराण के ज्ञाता और धर्मोपदेशकों को श्रेष्ठ गुरु माना जाता है। वे अपने असीम ज्ञान द्वारा जगत का कल्याण करते हैं। अपना परलोक सुधारने हेतु मनुष्यों को धन, अन्न, भूमि, स्वर्ण, गौ, रथ, वस्त्र एवं आभूषण आदि वस्तुओं का दान करना चाहिए । जुता हुआ खेत अर्थात लहलहाते फसल वाले खेत का दान करने से मनुष्य की दस पीढ़ियां सुधर जाती हैं। वह मनुष्य सभी सुखों को भोगकर अंत में विमान पर सवार होकर सीधे स्वर्गलोक जाता है। अपने घर में अथवा शिवालय या मंदिरों में भगवान शिव, विष्णु और सूर्य पुराण का पाठ करवाने वाले उत्तम पुरुष को राजसूय यज्ञ व अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। वे सूर्यलोक होते हुए ब्रह्मलोक में जाते हैं। देवताओं के मंदिरों में पुराणों की अमृतमय कथा कराने वाले सत्पुरुषों को अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। इस संसार में मुक्ति प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले मनुष्यों को श्रद्धापूर्वक भक्ति भावना से शिव पुराण की परम पवित्र कथा अवश्य पढ़नी अथवा सुननी चाहिए । प्रतिदिन कुछ समय के लिए शिव पुराण की कथा अवश्य सुननी या पढ़नी चाहिए। इस संसार में अपने कर्मों के बंधनों से मुक्त होने के लिए शिव पुराण का ज्ञान अवश्य प्राप्त करना चाहिए। निरंतर योग शास्त्रों का अध्ययन करने अथवा पुराणों का श्रवण करने से समस्त पापों का नाश होता है एवं धर्म की वृद्धि होती है।

【उमा संहिता】

चौदहवाँ अध्याय

"विभिन्न दानों का वर्णन"

   सनत्कुमार जी बोले ;- हे व्यास जी ! मनुष्य यदि दान के लिए सुपात्रों को ही चुने, तभी उसका परम कल्याण होता है। गौ, पृथ्वी, विद्या और तुला का दान सर्वोत्तम माना जाता है। अपने घर के द्वार पर आए मांगने वाले अर्थात याचकों को दूध देने वाली गाय, वस्त्र, जूते, अन्न, छाता अथवा भक्तिभाव से श्रद्धापूर्वक जो भी यथासंभव दान दिया जाए वह परम कल्याणकारी होता है। यही नहीं, स्वर्ण, तिल, हाथी, कन्यादासी, घर, रथ, मणि, गौ, कपिला और अन्न इन दस दानों को महादान माना जाता है। इन दस महादानों को जो भी मनुष्य भक्तिभावना से करता है वह इस भवसागर से अवश्य ही पार हो जाता है। वह सत्पुरुष जीवन और मरण के बंधनों से सदा के लिए मुक्त हो जाता है त्रिलोकीनाथ देवाधिदेव महादेव जी की परम कृपा पाकर उसे भोग और मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

    सोने में सींग रूप मैं खुर मढ़ाकर वस्त्र, आभूषण एवं अन्य वस्तुओं सहित गाय और बछड़े का दान जो मनुष्य सुपात्र विद्वान ब्राह्मण को करता है, उसके सभी मनोरथों की सिद्धि हो जाती है। वह जीव इस लोक में सभी सुख भोगकर शिवलोक को जाता है। उसे लोक परलोक में सभी इच्छित वस्तुओं की प्राप्ति होती है। मन में मुक्ति की इच्छा लेकर किया गया दान अवश्य ही हितकर होता है। इस जगत में तुला के दान को भी उत्तम माना जाता है। तुला दान करने वाले मनुष्य को चाहिए कि वह मन ही मन शिवजी का स्मरण करके उनसे प्रार्थना करे कि वे उसका कल्याण करें। तराजू के एक पलड़े में बैठकर दूसरे पलड़े में अपनी शक्ति के अनुसार द्रव्य भरें और जब दोनों तरफ वजन बराबर हो जाए तो उस द्रव्य को किसी सुपात्र ब्राह्मण को दान करें। ऐसा दान करते समय शुद्ध हृदय से कल्याणकारी भगवान शिव से प्रार्थना करें कि हे प्रभु! मैंने बचपन से लेकर अब तक अपने जीवन में जाने-अनजाने जो भी पाप किए हों उन्हें आप अपनी कृपादृष्टि से भस्म कर दें । हे ऋषिगणो! इस प्रकार तुला दान से जीव सभी पापों से मुक्त हो जाता है तथा सीधे स्वर्गलोक को जाता है और वहीं निवास करता हुआ सभी उत्तम भोगों को भोगता है।

【उमा संहिता】

पंद्रहवाँ अध्याय

"पाताल लोक का वर्णन"

सनत्कुमार जी बोले ;- हे व्यास जी ! अब मैं आपको ब्रह्माण्ड के विषय में बताता हूं। यह ब्रह्माण्ड जल के बीच में स्थित है और त्रिलोकीनाथ भगवान शिव के अंश शेषनाग ने इसे अपने फन पर धारण कर रखा है एवं श्रीहरि विष्णु इसका पालन करते हैं। सभी देवता और ऋषि-मुनि, साधु-संत सृष्टि के कल्याण हेतु शेषनाग का प्रतिदिन पूजन करते हैं। इन्हीं शेषनाग को अनंत नाम से भी जाना जाता है। आप अनेकों गुणों से संपन्न हैं और आपकी कीर्ति का गुणगान सभी देवताओं सहित सारे ग्रह और नक्षत्र भी निरंतर करते हैं। नाग कन्याएं सदैव आपकी पूजा और आराधना करती रहती हैं। इन्हीं के संकर्षण रूप रुद्रदेव हैं। शेषनाग के बल और स्वरूप को स्वयं देवता भी भली-भांति नहीं जानते तो फिर साधारण पुरुष भला कैसे जान सकते हैं?

  पृथ्वी के निचले भाग में अतल, वितल, सुतल, रसातल, तलातल, पाताल आदि कुल सात लोक हैं जो कि दस-दस हजार योजन लंबे और चौड़े तथा बीस-बीस हजार योजन ऊंचे हैं। इन सबकी रत्न, स्वर्ण की पृथ्वी एवं आंगन है। इसी स्थान पर दैत्य महानाग रहते हैं। सूर्य द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली धूप तथा प्रकाश, चंद्रमा की शीतलता एवं चांदनी सिर्फ पृथ्वी लोक को आलोकित करती है। यहीं पर सर्दी, गरमी और वर्षा नामक अनेक ऋतुएं होती हैं। इस प्रकार पाताल लोक में सभी प्रकार के सुख विद्यमान हैं जो कि जीवों की सभी आवश्यकताओं को पूरा करने में पूर्णतः सक्षम हैं। धरा में जल के अनगिनत स्रोत हैं जो कि अपने स्वच्छ और निर्मल जल से जीवों की प्यास बुझाते हैं। भैरे यहां पर सदा गुंजार करते हैं। यहां पर अनेक सुंदर अप्सराएं नृत्य करती हैं और गाना गाती हैं। पाताल लोक में अनेक प्रकार के वैभव और विलास उपलब्ध हैं और यहां पर अनेक सिद्ध मनुष्य, दानव और नाग अपने द्वारा की गई तपस्या के उत्तम फल को भोगते हैं।

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