कितने महापुराण है और कितने उपपुराण सभी का संक्षिप्त परिचय ,,, (How many Mahapuranas are there and how many Uppuranas are all a brief introduction ,,,)
प्राचीन संस्कृत-साहित्य में पुराण-साहित्य बहुत विशाल और गौरवमय है. वेदों के बाद पुराणों की ही मान्यता है. पुराणों को एक प्रकार से भारतीय सभ्यता, संस्कृति, राजनीति, भूगोल, इतिहास आदि का विश्वकोष कहा जा सकता है. चलिए जानते हैं पुराणों के बारे में. पुराणों के कितने भाग हे और उनकी संख्या कितनी हे । पुराणों के 18 भागों की संक्षिप्त चर्चा भी हम करेंगे. उपपुराण क्या है, ये भी जानेंगे ....!
रचनाकाल (Creation time) ,,,-
पुराणों की रचना काल विवादास्पद है. यद्यपि इनकी रचना छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व से ही आरम्भ हो गई थी, तथापि गुप्त-युग में परिवर्धित और सम्बंधित होकर वर्त्तमान रूप में आ चुके थे.
पुराणों की संख्या (Number of Puranas),,-
भारतीय परम्पराओं के अनुसार पुराणों की संख्या 18 है. पुराणों को दो भागों में बाँटा जा सकता है –
महापुराण :- महापुराणों की संख्या 18 है !
उपपुराण :- उपपुराण भी 18 हैं !
"महापुराण"
महापुराण तीन भागों में बाँटे गए हैं ,,
१. सात्विक पुराण ,– सात्विक पुराणों का सम्बन्ध विष्णु से है.
२. राजस पुराण ,– राजस पुराणों का ब्रह्मा से है और
३. तामस पुराण ,– तामस पुराणों का सम्बन्ध शिव से है.
"18 महापुराण"
सात्विक महापुराण के अंतर्गत 6 महापुराण
विष्णु पुराण
भागवत पुराण
नारद पुराण
गरुड़ पुराण
पदम पुराण
वराह पुराण
राजस पुराण महापुराण के अंतर्गत 6 महापुराण
ब्रह्म पुराण
ब्रह्मांड पुराण
ब्रह्मवैवर्त पुराण
मार्कण्डेयपुराण
भविष्य पुराण
वामन पुराण
तामस पुराण महापुराण के अंतर्गत 6 महापुराण
वायु पुराण
लिंग पुराण
स्कन्द पुराण
अग्नि पुराण
मत्स्य पुराण
कूर्म पुराण
इन 18 माहापुराणों के अतिरिक्त 18 उपपुराण लिखे गए थे. इनकी सूचियां दी गईं है ,
"18 उपपुराण"
आचार्य बलदेव उपाध्याय ने गरुड़ पुराण के आधार पर उपपुराणों की जो सूची दी है वह है –
सनत्कुमार पुराण
नरसिंह पुराण
कपिल पुराण
कालिका पुराण
साम्ब पुराण
पराशर पुराण
महेश्वर पुराण
सौर पुराण
नारदीय पुराण
शिव पुराण
दुर्वासा पुराण
मानव पुराण
अनुशासन पुराण
वरुण पुराण
भसिष्ठा पुराण
देवी-भागवत पुराण
नंदी पुराण
आदित्य पुराण
"महत्त्वपूर्ण पुराणों का संक्षिप्त विवरण"
विष्णु पुराण ,,--
इसमें विष्णु को अवतार मानकर उनकी उपासना की गई है. प्रमाणिकता और प्राचीनता की दृष्टि से यह सबसे प्रमुख है. यह वैष्णव दर्शन का प्रतिपादन पुराण है. इसमें छः अंश (खंड), 126 अध्याय और 23 हजार श्लोक हैं.
श्रीमद् भागवत् पुराण ,,--
भागवत् पुराण वैष्णवों का सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय puranaa है. वे इसे पंचम वेद मानते हैं. इसमें विष्णु के अवतारों का विस्तृत वर्णन है. दसवें अध्याय में कृष्ण की रास लीलाओं का विस्तृत वर्णन होते हुए भी राधा का नाम कहीं नहीं आया. इसमें सांख्यदर्शन के प्रवर्तक कपिल और महात्मा बुद्ध को भी विष्णु अवतार माना गया है. इसमें 12 स्कन्ध और 18 हजार श्लोक हैं.
नारद पुराण ,,--
इसे बृहद् नारदीय भी कहते हैं. इसके दो भागों में क्रमशः 125 और 82 अध्याय और 25 हजार श्लोक हैं. इसके पूर्व भाग में वर्णाश्रम के आचार, श्राद्ध, प्रायश्चित, व्याकरण, निरुक्त, छंद, ज्योतिष आदि का वर्णन है. इस वैष्णव purana का स्थान विश्वकोषात्मक पुराणों में अआता है. इसमें वैष्णवों के व्रतों और उत्सवों का वर्णन है. विष्णु भक्ति को ही मोक्ष का एकमात्र उपाय बतलाया गया है.
गरुड़ पुराण ,,--
इस पुराण में विष्णु ने गरुड़ को विश्व की सृष्टि बताई थी. इसमें दो खंड, 287 अध्याय और 18 हजार श्लोक हैं. पूर्वखंड में विष्णु के अवतारों का माहात्म्य है. इस purana का उत्तर-खंड प्रेतकल्प कहलाता है, जिसमें 45 अध्याय हैं. इसमें गर्भावस्था, नरक, यमनगर का मार्ग, प्रेतगण का वासस्थान, प्रेत-लक्षण और प्रेतयोनि से मुक्त, प्रेतों का रूप, मनुष्यों की आयु, यमलोक का विस्तार, सपिण्डीकरण की विधि, वृषोत्सर्ग विधान आदि का रोचक और विस्तृत वर्णन है. श्राद्ध के समय इस पुराण का पाठ किया जाता है.
पद्म पुराण ,,--
इसमें राधा का कृष्ण की प्रेयसी के रूप में उल्लेख है. मुख्य रूप से विष्णुपरक होते हुए भी यह purana ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन तीनों देवताओं में एकत्व की भावना स्थापित करना है. इस विशालकाय puranaa में 50 हजार श्लोक हैं.
वराह पुराण ,,--
इसमें 218 अध्याय व 24 हजार श्लोक हैं. इसमें विष्णु द्वारा वराह का रूप धारण कर पृथ्वी का उद्धार किये जाने का वर्णन है.
"पुराण-विवरण "
कुल पुरानों में 40,000 श्लोक हैं. पुराणों में विष्णु, वायु, मत्स्य और भागवत में ऐतिहासक वृत्त,, राजाओं की वंशावली आदि के रूप में बहुत कुछ मिलता है. विष्णु purana में सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर कलियुग के मौर्यवंश और गुप्तवंश तक का वर्णन मिलता है. पुराणों का उद्देश्य पुरानी कथाओं द्वारा उपदेश देना, देवमहिमा और तीर्थमहिमा का बखानकर जनसाधारण के हृदय में धर्म पर अडिग भावना बनाए रखना ही था.
प्राचीन संस्कृत-साहित्य में पुराण-साहित्य बहुत विशाल और गौरवमय है. वेदों के बाद पुराणों की ही मान्यता है. पुराणों को एक प्रकार से भारतीय सभ्यता, संस्कृति, राजनीति, भूगोल, इतिहास आदि का विश्वकोष कहा जा सकता है. चलिए जानते हैं पुराणों के बारे में. पुराणों के कितने भाग हे और उनकी संख्या कितनी हे । पुराणों के 18 भागों की संक्षिप्त चर्चा भी हम करेंगे. उपपुराण क्या है, ये भी जानेंगे ....!
रचनाकाल (Creation time) ,,,-
पुराणों की रचना काल विवादास्पद है. यद्यपि इनकी रचना छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व से ही आरम्भ हो गई थी, तथापि गुप्त-युग में परिवर्धित और सम्बंधित होकर वर्त्तमान रूप में आ चुके थे.
पुराणों की संख्या (Number of Puranas),,-
भारतीय परम्पराओं के अनुसार पुराणों की संख्या 18 है. पुराणों को दो भागों में बाँटा जा सकता है –
महापुराण :- महापुराणों की संख्या 18 है !
उपपुराण :- उपपुराण भी 18 हैं !
"महापुराण"
महापुराण तीन भागों में बाँटे गए हैं ,,
१. सात्विक पुराण ,– सात्विक पुराणों का सम्बन्ध विष्णु से है.
२. राजस पुराण ,– राजस पुराणों का ब्रह्मा से है और
३. तामस पुराण ,– तामस पुराणों का सम्बन्ध शिव से है.
"18 महापुराण"
सात्विक महापुराण के अंतर्गत 6 महापुराण
विष्णु पुराण
भागवत पुराण
नारद पुराण
गरुड़ पुराण
पदम पुराण
वराह पुराण
राजस पुराण महापुराण के अंतर्गत 6 महापुराण
ब्रह्म पुराण
ब्रह्मांड पुराण
ब्रह्मवैवर्त पुराण
मार्कण्डेयपुराण
भविष्य पुराण
वामन पुराण
तामस पुराण महापुराण के अंतर्गत 6 महापुराण
वायु पुराण
लिंग पुराण
स्कन्द पुराण
अग्नि पुराण
मत्स्य पुराण
कूर्म पुराण
इन 18 माहापुराणों के अतिरिक्त 18 उपपुराण लिखे गए थे. इनकी सूचियां दी गईं है ,
"18 उपपुराण"
आचार्य बलदेव उपाध्याय ने गरुड़ पुराण के आधार पर उपपुराणों की जो सूची दी है वह है –
सनत्कुमार पुराण
नरसिंह पुराण
कपिल पुराण
कालिका पुराण
साम्ब पुराण
पराशर पुराण
महेश्वर पुराण
सौर पुराण
नारदीय पुराण
शिव पुराण
दुर्वासा पुराण
मानव पुराण
अनुशासन पुराण
वरुण पुराण
भसिष्ठा पुराण
देवी-भागवत पुराण
नंदी पुराण
आदित्य पुराण
"महत्त्वपूर्ण पुराणों का संक्षिप्त विवरण"
विष्णु पुराण ,,--
इसमें विष्णु को अवतार मानकर उनकी उपासना की गई है. प्रमाणिकता और प्राचीनता की दृष्टि से यह सबसे प्रमुख है. यह वैष्णव दर्शन का प्रतिपादन पुराण है. इसमें छः अंश (खंड), 126 अध्याय और 23 हजार श्लोक हैं.
श्रीमद् भागवत् पुराण ,,--
भागवत् पुराण वैष्णवों का सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय puranaa है. वे इसे पंचम वेद मानते हैं. इसमें विष्णु के अवतारों का विस्तृत वर्णन है. दसवें अध्याय में कृष्ण की रास लीलाओं का विस्तृत वर्णन होते हुए भी राधा का नाम कहीं नहीं आया. इसमें सांख्यदर्शन के प्रवर्तक कपिल और महात्मा बुद्ध को भी विष्णु अवतार माना गया है. इसमें 12 स्कन्ध और 18 हजार श्लोक हैं.
नारद पुराण ,,--
इसे बृहद् नारदीय भी कहते हैं. इसके दो भागों में क्रमशः 125 और 82 अध्याय और 25 हजार श्लोक हैं. इसके पूर्व भाग में वर्णाश्रम के आचार, श्राद्ध, प्रायश्चित, व्याकरण, निरुक्त, छंद, ज्योतिष आदि का वर्णन है. इस वैष्णव purana का स्थान विश्वकोषात्मक पुराणों में अआता है. इसमें वैष्णवों के व्रतों और उत्सवों का वर्णन है. विष्णु भक्ति को ही मोक्ष का एकमात्र उपाय बतलाया गया है.
गरुड़ पुराण ,,--
इस पुराण में विष्णु ने गरुड़ को विश्व की सृष्टि बताई थी. इसमें दो खंड, 287 अध्याय और 18 हजार श्लोक हैं. पूर्वखंड में विष्णु के अवतारों का माहात्म्य है. इस purana का उत्तर-खंड प्रेतकल्प कहलाता है, जिसमें 45 अध्याय हैं. इसमें गर्भावस्था, नरक, यमनगर का मार्ग, प्रेतगण का वासस्थान, प्रेत-लक्षण और प्रेतयोनि से मुक्त, प्रेतों का रूप, मनुष्यों की आयु, यमलोक का विस्तार, सपिण्डीकरण की विधि, वृषोत्सर्ग विधान आदि का रोचक और विस्तृत वर्णन है. श्राद्ध के समय इस पुराण का पाठ किया जाता है.
पद्म पुराण ,,--
इसमें राधा का कृष्ण की प्रेयसी के रूप में उल्लेख है. मुख्य रूप से विष्णुपरक होते हुए भी यह purana ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन तीनों देवताओं में एकत्व की भावना स्थापित करना है. इस विशालकाय puranaa में 50 हजार श्लोक हैं.
वराह पुराण ,,--
इसमें 218 अध्याय व 24 हजार श्लोक हैं. इसमें विष्णु द्वारा वराह का रूप धारण कर पृथ्वी का उद्धार किये जाने का वर्णन है.
"पुराण-विवरण "
कुल पुरानों में 40,000 श्लोक हैं. पुराणों में विष्णु, वायु, मत्स्य और भागवत में ऐतिहासक वृत्त,, राजाओं की वंशावली आदि के रूप में बहुत कुछ मिलता है. विष्णु purana में सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर कलियुग के मौर्यवंश और गुप्तवंश तक का वर्णन मिलता है. पुराणों का उद्देश्य पुरानी कथाओं द्वारा उपदेश देना, देवमहिमा और तीर्थमहिमा का बखानकर जनसाधारण के हृदय में धर्म पर अडिग भावना बनाए रखना ही था.
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