सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत महापुराण ( दशम स्कन्धः - उत्तरार्ध ) का पचासवाँ, ईक्यावनवाँ, बावनवाँ, तिरपनवाँ व चौवनवाँ अध्याय [ Fifteenth, fifty-first, fifty-two, fifty-three and fifty-fourth chapters of the entire Srimad Bhagavat Mahapuran (Tenth wing) ]
(श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: पंचाशत्तम अध्याय श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद) {दशम स्कन्ध:} (उत्तरार्ध) …
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सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत महापुराण ( दशम स्कन्धः - पूर्वार्ध ) का सैतालीसवाँ, अड़ तालिसवाँ व उन्चासवाँ अध्याय [ Forty-seventh, Forty-eight and Forty-ninth chapters of the entire Srimad Bhagavat Mahapuran (Tenth wing) ]
सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत महापुराण ( दशम स्कन्धः - पूर्वार्ध ) का सैतालीसवाँ, अड़ तालिसवाँ व उन्चासवाँ अध्याय [ Forty-seventh, Forty-eight and Forty-ninth chapter…
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सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत महापुराण ( दशम स्कन्धः - पूर्वार्ध ) का बयालीसवाँ, तिरतालिसवाँ, चवालिसवाँ, पैतालीसवाँ व छयालिसवाँ अध्याय [ Forty-two, thirty-three, forty-four, forty-five and forty-six chapters of the entire Srimad Bhagavat Mahapuran (Tenth wing) ]
सम्पूर्ण श्रीमद्भागवत महापुराण ( दशम स्कन्धः - पूर्वार्ध ) का बयालीसवाँ, तिरतालिसवाँ, चवालिसवाँ, पैतालीसवाँ व छयालिसवाँ अध्याय [ Forty-two, thirty-three, forty…
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सभी अंश,खण्ड,पर्व के सभी अध्याय की मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये ..धन्यवाद (Note:- All chapters of all excerpts are machine typed, errors are possible in it, it should not be considered a part of the book.)। thanks
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- प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदय राखि कोसलपुर राजा। गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।। अर्थात ;- अयोध्याजी के राजा श्री रामचंद्रजी को मन में रख कर जो सब काम करता है उसके लिये विष भी अमृत बन जाता है, शत्रु मित्र बन जाते हैं, समुद्र गाय के खुर जितना छोटा हो जाता है, अग्नि में शीतलता आ जाती है। professional website click on this link. click here website demo
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