इसलिए मृत्यु के बाद पढ़ा जाता है गरुड़ पुराण , गरुड़ के जन्म से जुड़ी है ये रहस्यमय कथा,
गरुड़ पुराण जिस भगवान गरुड़ पर हैं उनका जन्म कैसे हुआ था ?
आइए इस संशिप्त कथा के माध्यम से जानने की कोशिश करते है .....
परिचय ,,,
भगवान गरुड़ :- भगवान विष्णु के अवतार माने जाने वाले महान संत वेदव्यास ने कुल 18 पुराणों की रचना की थी, जिनके समग्र स्वरूप को अष्टदास महापुराण कहा जाता है। इन्हीं पुराणों में से एक है गरुड़ पुराण, जिसका पाठ मृत्यु के पश्चात किया जाता है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार ऐसा कहा जाता है गरुड़ पुराण के द्वारा ही आत्मा को इस संसार से मुक्ति मिलती है और वह निर्धारित स्थान की ओर प्रस्थान करती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गरुड़ पुराण जिस भगवान गरुड़ पर हैं उनका जन्म कैसे हुआ था?
कथा प्रारंभ ,,-
गरुड़ के जन्म की यह कहानी कश्यप ऋषि की दो पत्नियों विनता और कद्रु के साथ शुरू होती है। दरअसल एक बार ऋषि कश्यप ने अपनी पत्नी कद्रु से कहा कि वह संतानोत्पत्ति के लिए एक यज्ञ प्रारंभ करने जा रहे हैं ताकि उन्हें और अधिक पुत्रों की प्राप्ति हो सके। कश्यप ऋषि ने सबसे पहले कद्रु से पूछा कि उन्हें और कितने पुत्र चाहिए? इस सवाल के जवाब में कद्रु ने कहा कि उन्हें बहुत सारे पुत्र चाहिए ताकि वह उनकी आज्ञा का पालन करने के साथ-साथ उनकी हर इच्छा भी पूरी कर सकें।
ऋषि कश्यप ने जब अपनी दूसरी पत्नी विनता से किया तब विनता ने जवाब दिया कि वह मात्र 2 पुत्रों की कामना करती है, जो कद्रु के सभी पुत्रों की अपेक्षा ज्यादा ताकतवर हों। कश्यप ऋषि ने उन दोनों की इच्छा को स्वीकार कर लिया। कश्यप ऋषि ने यज्ञ प्रारंभ किया। यज्ञ पूर्ण होने के बाद कद्रु को हजार अंडज मिले जिनसे उन्हें हजार पुत्र उत्पन्न होने थे।
कद्रु ने सभी अंडों को गर्म पानी में रख दिया और उनकी देखरेख करने लगी। इसके बाद ऋषि कश्यप के बौने ऋषियों ने विनता के दो पुत्रों की उत्पत्ति के लिए यज्ञ प्रारंभ किया। इस यज्ञ के द्वारा उन्होंने एक ऐसे पुत्र का आह्वान किया जो इन्द्र देव से कहीं ज्यादा ताकतवर होता और साथ ही उसके भीतर अपने स्वरूप को बदलने के साथ-साथ भारी से भारी सामान उठाने की भी ताकत होती।
इन्द्र को यह भनक लगी कि इस यज्ञ के द्वारा एक नए और ताकतवर इन्द्र का जन्म होने वाला है तब वह अपने पिता ऋषि कश्यप के पास गए। जब ऋषि कश्यप को बौने ऋषियों की ये बात पता चली बहुत क्रोधित हुए। अपने पुत्र के सम्मान को बचाए रखने के लिए कश्यप ऋषि बौने ऋषियों के पास गए और उनसे कहा कि -उनके पुत्र से एक भूल हो गई है जिसके लिए वे माफी के हकदार है, आप जिस ताकतवर इन्द्र का आह्वान कर रहे हैं उसे देवताओं का नहीं बल्कि पक्षियों के इन्द्र के रूप में बुलाएं।
ऋषि कश्यप के आग्रह को मानकर बौने ऋषियों ने पक्षियों के ताकतवर इन्द्र का आह्वान कर यज्ञ से उत्पन्न हुए दो अंडे कश्यप ऋषि को सौंप दिए। अपनी पत्नी विनता को अंडे सौंपते हुए कश्यप ऋषि ने कहा कि इनका बहुत ध्यान रखना और कुछ भी हो जाए अपना धीरज मत खोना। इतना कहकर ऋषि कश्यप हिमालय पर तप करने के लिए प्रस्थान कर गए। आगे चलकर कद्रु के हजार अंडों में से हजार सांप निकले, जो बहुत ताकतवर थे। कद्रु उन्हें देखकर बहुत प्रसन्न होती और उनके साथ खेलती। लेकिन समय पूरा होने के बाद भी विनता के अंडों में से कुछ नहीं निकला।
कद्रु, विनता को ताना मारने का एक भी मौका नहीं छोड़ती थी। ऐसे में जलन में आकर उन्होंने अपना एक अंडा तोड़ दिया। यह देखने के लिए कि उसमें कुछ है भी या नहीं। अंडे के भीतर उसे अपना पुत्र दिखाई दिया जिसके शरीर का ऊपरी हिस्सा तो था लेकिन बाकी का हिस्सा मात्र मांस का लोथड़ा था।इस पुत्र का नाम अरुण था। अरुण ने अपनी मां से कहा-पिता के कहने के बाद भी आपने धैर्य खो दिया और मेरे शरीर का विस्तार नहीं होने दिया। इसलिए मैं आपको श्राप देता हूं कि आपको अपना जीवन एक सेवक के तौर पर बिताना होगा।
ऐसे हुआ गरुड़ का जन्म ,,-
विनता को कद्रु की सेविका बनना पड़ा और कुछ दिनों बाद अंडे में से निकले गरुड़, जिनका चेहरा, सिर और चोंच चील की तरह और शरीर इंसान का था, का जन्म हुआ। वह भी अपनी मां के साथ सेवक के तौर पर ही रहा। गरुड़ बहुत ताकतवर थे और अपनी इच्छानुसार अपना स्वरूप बदल सकता थे।ऐसा माना जाता है कि अगर मौत के बाद गरुड़ पुराण पढ़ी जाए तो मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति और धरती के बंधन से मुक्ति मिलती है।
गरुड़ पुराण जिस भगवान गरुड़ पर हैं उनका जन्म कैसे हुआ था ?
आइए इस संशिप्त कथा के माध्यम से जानने की कोशिश करते है .....
परिचय ,,,
भगवान गरुड़ :- भगवान विष्णु के अवतार माने जाने वाले महान संत वेदव्यास ने कुल 18 पुराणों की रचना की थी, जिनके समग्र स्वरूप को अष्टदास महापुराण कहा जाता है। इन्हीं पुराणों में से एक है गरुड़ पुराण, जिसका पाठ मृत्यु के पश्चात किया जाता है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार ऐसा कहा जाता है गरुड़ पुराण के द्वारा ही आत्मा को इस संसार से मुक्ति मिलती है और वह निर्धारित स्थान की ओर प्रस्थान करती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गरुड़ पुराण जिस भगवान गरुड़ पर हैं उनका जन्म कैसे हुआ था?
कथा प्रारंभ ,,-
गरुड़ के जन्म की यह कहानी कश्यप ऋषि की दो पत्नियों विनता और कद्रु के साथ शुरू होती है। दरअसल एक बार ऋषि कश्यप ने अपनी पत्नी कद्रु से कहा कि वह संतानोत्पत्ति के लिए एक यज्ञ प्रारंभ करने जा रहे हैं ताकि उन्हें और अधिक पुत्रों की प्राप्ति हो सके। कश्यप ऋषि ने सबसे पहले कद्रु से पूछा कि उन्हें और कितने पुत्र चाहिए? इस सवाल के जवाब में कद्रु ने कहा कि उन्हें बहुत सारे पुत्र चाहिए ताकि वह उनकी आज्ञा का पालन करने के साथ-साथ उनकी हर इच्छा भी पूरी कर सकें।
ऋषि कश्यप ने जब अपनी दूसरी पत्नी विनता से किया तब विनता ने जवाब दिया कि वह मात्र 2 पुत्रों की कामना करती है, जो कद्रु के सभी पुत्रों की अपेक्षा ज्यादा ताकतवर हों। कश्यप ऋषि ने उन दोनों की इच्छा को स्वीकार कर लिया। कश्यप ऋषि ने यज्ञ प्रारंभ किया। यज्ञ पूर्ण होने के बाद कद्रु को हजार अंडज मिले जिनसे उन्हें हजार पुत्र उत्पन्न होने थे।
कद्रु ने सभी अंडों को गर्म पानी में रख दिया और उनकी देखरेख करने लगी। इसके बाद ऋषि कश्यप के बौने ऋषियों ने विनता के दो पुत्रों की उत्पत्ति के लिए यज्ञ प्रारंभ किया। इस यज्ञ के द्वारा उन्होंने एक ऐसे पुत्र का आह्वान किया जो इन्द्र देव से कहीं ज्यादा ताकतवर होता और साथ ही उसके भीतर अपने स्वरूप को बदलने के साथ-साथ भारी से भारी सामान उठाने की भी ताकत होती।
इन्द्र को यह भनक लगी कि इस यज्ञ के द्वारा एक नए और ताकतवर इन्द्र का जन्म होने वाला है तब वह अपने पिता ऋषि कश्यप के पास गए। जब ऋषि कश्यप को बौने ऋषियों की ये बात पता चली बहुत क्रोधित हुए। अपने पुत्र के सम्मान को बचाए रखने के लिए कश्यप ऋषि बौने ऋषियों के पास गए और उनसे कहा कि -उनके पुत्र से एक भूल हो गई है जिसके लिए वे माफी के हकदार है, आप जिस ताकतवर इन्द्र का आह्वान कर रहे हैं उसे देवताओं का नहीं बल्कि पक्षियों के इन्द्र के रूप में बुलाएं।
ऋषि कश्यप के आग्रह को मानकर बौने ऋषियों ने पक्षियों के ताकतवर इन्द्र का आह्वान कर यज्ञ से उत्पन्न हुए दो अंडे कश्यप ऋषि को सौंप दिए। अपनी पत्नी विनता को अंडे सौंपते हुए कश्यप ऋषि ने कहा कि इनका बहुत ध्यान रखना और कुछ भी हो जाए अपना धीरज मत खोना। इतना कहकर ऋषि कश्यप हिमालय पर तप करने के लिए प्रस्थान कर गए। आगे चलकर कद्रु के हजार अंडों में से हजार सांप निकले, जो बहुत ताकतवर थे। कद्रु उन्हें देखकर बहुत प्रसन्न होती और उनके साथ खेलती। लेकिन समय पूरा होने के बाद भी विनता के अंडों में से कुछ नहीं निकला।
कद्रु, विनता को ताना मारने का एक भी मौका नहीं छोड़ती थी। ऐसे में जलन में आकर उन्होंने अपना एक अंडा तोड़ दिया। यह देखने के लिए कि उसमें कुछ है भी या नहीं। अंडे के भीतर उसे अपना पुत्र दिखाई दिया जिसके शरीर का ऊपरी हिस्सा तो था लेकिन बाकी का हिस्सा मात्र मांस का लोथड़ा था।इस पुत्र का नाम अरुण था। अरुण ने अपनी मां से कहा-पिता के कहने के बाद भी आपने धैर्य खो दिया और मेरे शरीर का विस्तार नहीं होने दिया। इसलिए मैं आपको श्राप देता हूं कि आपको अपना जीवन एक सेवक के तौर पर बिताना होगा।
ऐसे हुआ गरुड़ का जन्म ,,-
विनता को कद्रु की सेविका बनना पड़ा और कुछ दिनों बाद अंडे में से निकले गरुड़, जिनका चेहरा, सिर और चोंच चील की तरह और शरीर इंसान का था, का जन्म हुआ। वह भी अपनी मां के साथ सेवक के तौर पर ही रहा। गरुड़ बहुत ताकतवर थे और अपनी इच्छानुसार अपना स्वरूप बदल सकता थे।ऐसा माना जाता है कि अगर मौत के बाद गरुड़ पुराण पढ़ी जाए तो मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति और धरती के बंधन से मुक्ति मिलती है।
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